देश की अर्थव्यवस्था से तेज रफ्तार… तो पहले विकास के रास्ते से क्यों भटका बिहार? समझें पूरी बात

पूनम गुप्ता : बिहार की इकॉनमी पिछले दो दशकों में नैशनल इकॉनमी की तुलना में तेजी से बढ़ी है। 2000 के दशक में इसकी एनुअल ग्रोथ रेट औसतन 7% रही। तब नैशनल इकॉनमी 6.3% की औसत दर से बढ़ रही थी। इसी तरह 2010 के दशक में साल 2019-2020 तक बिहार ने 7.5% की औसत वार्षिक वृद्धि दर को हासिल किया। वहीं, इसी दौरान राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था सालाना औसतन 6.6% की दर से आगे बढ़ी।कई मानकों में सुधार : बिहार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के अंतर को पाटने में भी प्रगति की है। Gross enrolment ratio, जन्म के समय लिंग अनुपात, Life expectancy, शिशु मृत्यु दर, बिजली और पेयजल की उपलब्धता में सुधार हुआ है। इनमें बिहार अब राष्ट्रीय औसत से थोड़ा ही नीचे है। आबादी का दुष्प्रभाव छइन उपलब्धियों के बावजूद प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार अब भी भारत का सबसे गरीब राज्य बना हुआ है। इसकी वजह है विकास में तेजी आने के पहले शुरुआती आय का बेहद कम स्तर और उच्च जनसंख्या वृद्धि दर। इनकी वजह से अधिक GDP ग्रोथ के बावजूद प्रति व्यक्ति आय में उतनी बढ़ोतरी नहीं हुई। कम कमाई की वजह: बिहार में प्रति महिला प्रजनन दर है तीन, जो देश में सबसे ज्यादा है। राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर है 1.5% सालाना, जबकि राष्ट्रीय औसत है 0.9%। ज्यादा जनसंख्या का नतीजा यह हुआ कि बिहार में प्रति व्यक्ति आय एक औसत भारतीय की कमाई का लगभग 30% ही है। राज्य में प्रति व्यक्ति आय लगभग 66 हजार रुपये ही है। विश्व बैंक के पैमाने के अनुसार, बिहार अब भी कम आय वाली अर्थव्यवस्था में आता है। उच्च जनसंख्या वृद्धि के अलावा कई अन्य वजहें भी हैं, जिनसे यहां प्रति व्यक्ति आय निचले स्तर पर बनी हुई है। खेती पर निर्भरता : एक बड़ी वजह है कृषि, निर्माण और Non-tradable services पर निर्भरता। ये सभी कम प्रोडक्टिविटी वाले सेक्टर हैं। बिहार की GDP और रोजगार का बड़ा हिस्सा इन्हीं सेक्टर से आता है। GDP में कृषि का योगदान लगभग एक चौथाई है और रोजगार में करीब आधा। मैन्युफैक्चरिंग की रोजगार में हिस्सेदारी महज 6% है, जबकि इसके तीन गुना लोग कंस्ट्रक्शन में लगे हुए हैं। कम शहरीकरण :बिहार की केवल 12% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। वहीं, राष्ट्रीय औसत 35 है। इसी तरह, साल 2023 में बिहार में केवल 22% महिलाएं नौकरीपेशा थीं। ज्यादातर या तो अपना रोजगार कर रही थीं या कैजुअल वर्कर थीं। पढ़ाई में पीछे: देश की साक्षरता दर 73% है और बिहार की 61%। प्राथमिक और मिडल स्कूल में Gross enrolment ratio में सुधार हुआ है। लेकिन, सेकेंडरी स्कूल और उसके ऊपर प्रदर्शन कमजोर है। बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर अधिक है। प्रति लाख आबादी पर कॉलेजों की संख्या का अनुपात देश में सबसे कम है। खर्च में आगे: बिहार का टैक्स और नॉन-टैक्स कलेक्शन कम है, राज्य की GDP का केवल 7%। इसके बावजूद सार्वजनिक व्यय के मामले में बाकी राज्यों से बिहार आगे है। अपनी GDP का 30 फीसदी वह सार्वजनिक खर्च कर देता है। इसका ज्यादातर हिस्सा केंद्र से ग्रांट और टैक्स शेयर के रूप में मिलता है। बिहार के लिए रास्ता : राज्य के सामने और भी चुनौतियां हैं, मसलन – लेबर फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी और डिजिटल इकॉनमी की पहुंच कम है। इन वजहों से बिहार के लिए निकट भविष्य में मध्यम आय वाला राज्य बनने का रास्ता साफ नहीं है। लेकिन, भारत ने 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है और बड़ी आबादी को देखते हुए इस लक्ष्य को पाने में बिहार की भूमिका अहम हो जाती है। तो जानते हैं कि बिहार क्या कर सकता है।तकनीकी ज्ञान चाहिए : डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाने के लिए जरूरी है कि बिहार अपनी आबादी को एक संसाधन में बदले। 12 करोड़ से ज्यादा लोग बिहार में रहते हैं। आबादी के लिहाज से यह दुनिया का 10वां सबसे बड़ा देश होता। राज्य को प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य को मजबूत करने के साथ अपने लोगों को युद्ध स्तर पर टेक्निकल और प्रफेशनल रोल के लिए भी तैयार करना चाहिए। राज्य को ऐसे लोग तैयार करने चाहिए, जिनकी देश और दुनिया की कंपनियों को जरूरत हो। प्रवासियों से फायदा : बिहार उन कुछ राज्यों में है, जिसने GDP या वर्कफोर्स में कृषि का अपना हिस्सा नहीं छोड़ा है। प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए कृषि सेक्टर की समीक्षा की जा सकती है। इसके अलावा, बिहार को मैन्युफैक्चरिंग में निवेश के लिए प्रवासियों और निवेशकों का लाभ उठाना चाहिए। उसे उन उद्योगों पर भी ध्यान देना होगा, जहां काम करने वाले लोगों की काफी जरूरत पड़ती है।पब्लिक फाइनैंस की समीक्षा: बिहार को आमदनी बढ़ाने के तरीके खोजने चाहिए। सरकारी खर्च की जवाबदेही तय करनी होगी। इसके लिए खर्च की समीक्षा की जाए। डिजिटल तरीका अपनाने से आसानी होगी। इस तरह के कदमों से विकास को नई गति मिल सकती है, राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या वृद्धि दर धीमी हो सकती है और अन्य राज्यों द्वारा बिहार को लगातार सबसिडी देने की जरूरत कम हो सकती है। 2047 तक विकसित भारत के लिए बिहार को और अधिक विकसित बनना होगा।(लेखिका National Council of Applied Economic Research की महानिदेशक हैं)