जब तक पूरे ना हों फेरे सात तब तक…हिंदू शादी को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की महत्वपूर्ण टिप्पणी

प्रयागराज: 41 साल पहले एक सुपरहिट फिल्‍म आई थी। नाम था ‘नदिया के पार’। पूर्वी उत्‍तर प्रदेश की ग्रामीण पृष्‍ठभूमि पर बनी इस फिल्‍म को जनता ने खूब प्‍यार दिया था। इसके गाने लोगों की जुबान पर चढ़ गए थे। इन्‍हीं में एक गाने के बोल थे- ‘जब तक पूरे ना हों फेरे सात, तब तक दुलहिन नहीं दुलहा की, रे तब तक बबुनी नहीं बबुवा की, ना जब तक पूरे ना हों फेरे सात।’ आसान भाषा में कहें तो हिंदू धर्म में जब तक लड़का और लड़की सात फेरे साथ में न ले लें तब तक उनकी शादी नहीं मानी जाती है। अपने एक महत्‍वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। अदालत का स्‍पष्‍ट कहना है कि सभी रीति रिवाजों के साथ हुए विवाह समारोह को ही कानून की नजर में वैध विवाह माना जा सकता है। अगर ऐसा नहीं है तो कानून की नजर में विवाह वैध नहीं माना जाएगा। हिंदू विवाह में वैधता स्‍थापित करने के लिए सप्‍तपदी जरूरी है। सप्‍तपदी मतलब पवित्र अग्नि के चारो तरफ घूमकर सात फेरे लेना। हाइकोर्ट ने मिर्जापुर की स्‍मृति सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। जस्टिस संजय कुमार सिंह ने स्‍मृति के खिलाफ दर्ज शिकायत और उस पर निचली अदालत के समन को रद कर दिया है। ये है पूरा मामला याचिकाकर्ता स्मृति सिंह की शादी वर्ष 2017 में सत्यम सिंह से हुई थी, लेकिन दोनों साथ नहीं रह सके। संबंध खराब होने के बाद स्‍मृति सिंह मायके में रहने लगीं। उन्‍होंने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्‍पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया। जांच के बाद पुलिस ने अदालत में पति और ससुराल वालों के खिलाफ चार्जशीट पेश किया। स्‍मृति सिंह ने भरण पोषण की याचिका भी लगाई। मिर्जापुर फैमिली कोर्ट ने 11 जनवरी, 2021 को सत्‍यम सिंह को हर महीने चार हजार रुपये भरण पोषण के नाम पर देने का आदेश दिया। यह पैसा उन्‍हें स्‍मृति सिंह को तब तक देने का आदेश दिया गया जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेतीं। सत्‍यम ने लगाया दूसरी शादी करने का आरोप इसके बाद सत्‍यम सिंह ने अपनी पत्‍नी के ऊपर बगैर तलाक दूसरी शादी करने का आरोप लगाते हुए वाराणसी जिला अदालत में परिवाद दाखिल किया। 20 सितंबर, 2021 को दाखिल इस याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने 21 अप्रैल 2022 में स्‍मृति सिंह को समन जारी कर पेश होने के लिए कहा। इसके बाद स्‍मृति सिंह ने हाई कोर्ट का रुख किया, जिस पर हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 क्‍या कहती है? हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह ने अपने फैसले में कहा-, यह अच्छी तरह से तय है कि शादी के संबंध में समारोह शब्द का अर्थ है, ‘उचित समारोहों और उचित रूप में शादी का जश्न मनाना’। जब तक विवाह को उचित समारोहों और उचित रूप के साथ नहीं मनाया जाता है या किया जाता है, तब तक इसे ‘संपन्न’ नहीं कहा जा सकता है। यदि विवाह वैध नहीं है तो यह कानून की नजर में विवाह नहीं है। हिंदू कानून के तहत विवाह के लिए सात फेरे आवश्‍यक है। अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 पर भरोसा किया, जिसमें यह प्रावधान है कि हिंदू विवाह को किसी भी पक्ष के प्रथागत संस्कारों और समारोहों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है। दूसरा, ऐसे संस्कारों में ‘सप्तपदी’ शामिल है, जो सात फेरे के बाद ही पूरा होता है।