हमारे दुखों को किलोमीटर में नापा जा सकता है… सड़कों के अभाव में उत्तरकाशी के परिवार दशकों से कर रहे पलायन

कौटिल्य सिंह/अभ्युदय कोटनाला, उत्तरकाशी: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सेकू गांव में मुख्य रूप से रावत (ठाकुर) और कुछ अनुसूचित जाति समूहों के परिवार बसे हैं। टिहरी लोकसभा क्षेत्र में आने वाला सेकु गांव अब तक सही तरीके से सड़क से नहीं जुड़ा है। गांव में रहने वाले लोगों का दु:ख 64 साल के भगवत सिंह रावत जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘हमारे दु:खों को किलोमीटर में नापा जा सकता है।’रावत कहते हैं, सबसे नजदीक गाड़ी चलने वाली सड़क 3 किलोमीटर दूर है। इसका नाम संगमचट्टी-गंगोरी रोड है। इंटर कॉलेज भनखोली में है जो 7 किमी दूर है। पब्लिक हेल्थ सेंटर गजोली गांव में है, लगभग 4 किमी दूर है। रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खरीदने के लिए चीवन बाजार जाना पड़ता है, जो घर से 5 किलोमीटर दूर है।’ अस्सी गंगा घाटी में मौजूद भटवारी ब्लॉक के तहत आने वाले सेकु गांव ने कई दशकों में स्थीय और अस्थायी पलायन देखा है।’एक सड़क की जरूरत है’ भगवत सिंह ने कहा, ‘हम सभी की एक ही शिकायत है। हमें संगमचट्टी-गंगोरी रूट तक सड़क की जरूरत है। मैंने हमेशा वोट दिया है लेकिन एक समय आता है जब आपको अपने परिवार, आने वाली पीढ़ियों और गांव के बारे में सोचना पड़ता है। अगर हम आज दबाव में आ गए, तो हमारे बच्चों को सड़क के अभाव में परेशानी होगी।’’कांग्रेस-बीजेपी दोनों को देखा’ 2014 के चुनाव पहले भागवत और उनके परिवार ने कांग्रेस का समर्थन किया था। पिछले एक दशक से वे BJP का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि चाहे कांग्रेस हो या BJP साल 2000 में नया राज्य बनने के बाद से कोई भी सांसद हमारे गांव में नहीं आया है।भागवत के बड़े बेटे मनोज 5 बीघा जमीन पर खेती करते हैं। छोटे बेटे सुनील ऋषिकेश में टूर गाइड है। ऑफ-सीजन के दौरान गांव आते हैं। सेकु में स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण मनोज और सुनील के परिवार उत्तरकाशी शहर में रहते हैं।चुनाव प्रचार से गायब हैं स्‍थानीय मुद्दे भागवत की पत्नी जयेंद्री देवी के लिए मुख्य चिंता के प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दों और महिलाओं से संबंधित मामलों की रहस्यमय तरीके से गायब होना है। हमारे सामने आने वाली रोज की समस्याओं के बारे में कहां बात हुई? अगर हमारी राय और मुश्किलें मायने नहीं रखतीं तो हमसे वोट क्यों मांगे जा रहे हैं। पहाड़ों में महिलाओं का जीवन बेहद कठिन है, लेकिन कोई भी उम्मीदवार इस पर चर्चा करने को तैयार नहीं है।’’मुश्किल है पहाड़ों में जीवन’ मनोज ने कहा, ‘जो लोग बाहर नहीं निकलते, उनके लिए पहाड़ों में जीवन मुश्किल है। आने-जाने में हमें बहुत समय लगता है और ऊर्जा बर्बाद होती है। सरकार को पहाड़ों में बुनियादी ढांचे- सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों पर देने पर विचार करना चाहिए।’’कनेक्टिविटी सभी चिंताओं की जड़ है’सुनील इससे सहमत हुए कहते हैं, ‘हमारे गांव को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कनेक्टिविटी हमारी सभी चिंताओं की जड़ है। हम जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर हैं। अधिकांश युवा पास के शहरों में चले गए हैं, क्योंकि खेती हमारी कमाई का मुख्य स्रोत है लेकिन उपज अक्सर जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं। अगर हमें अच्छी सड़कें मिलें तो हमारी अधिकांश समस्याएं हल हो सकती हैं। इससे न केवल पर्यटकों आएंगे, बल्कि खेती के उत्पाद दूसरे बाजारों तक पहुंचाने में भी मदद मिलेगी।’परिवार के सामने क्या हैं चुनौतियां- हमारे गांव को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कनेक्टिविटी हमारी सभी चिंताओं की जड़ है।- खेती हमारी कमाई का मुख्य स्रोत है लेकिन उपज अक्सर जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं।- कई दशकों से गांव से स्थायी और अस्थायी पलायन हुआ है। लोग शहरों में रहने चले गए हैं।- पहाड़ों में महिलाओं का जीवन बेहद कठिन है, लेकिन कोई भी उम्मीदवार इस पर चर्चा करने को तैयार नहीं है।सरकार से क्या हैं उम्मीदें- सरकार को पहाड़ों में बुनियादी ढांचे- सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों पर देने पर विचार करना चाहिए।- हमें अच्छी सड़कें मिलें तो हमारी अधिकांश समस्याएं हल हो सकती हैं। इससे न केवल पर्यटकों आएंगे, बल्कि खेती के उत्पाद दूसरे बाजारों तक पहुंचाने में भी मदद मिलेगी।- महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं का हला निकाला जाना चाहिए।