बस्तर में होली पर्व पर निभाई गई छह सौ साल पुरानी परंपरा

Raipur, 25 मार्च . बस्तर में माड़पाल में छह सौ साल से चली आ रही परंपरा के साथ बस्तर दशहरे की तर्ज पर रथ यात्रा निकाली गई और उसके बाद विधि विधान से होलिका दहन कर Sunday रात से होली के पर्व की यहां शुरुआत हुई. इस आयोजन में बस्तर राज परिवार के सदस्य शामिल हुए और उन्होंने बस्तर के देवी देवता की पूजा कर लोगों की सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा.
बस्तर के माड़पाल में विशाल रथ बस्तर दशहरे में तैयार किए जाने वाले रथ की तरह तैयार किया गया. बस्तर के इस होली उत्सव में बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने हिस्सा लिया. Sunday की रात होलिका दहन के वक्त चार चक्कों वाले विशालकाय रथ की परिक्रमा शुरू हुई. इस रथ पर बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव बैठे.दंतेवाड़ा में फाल्गुन पूर्णिमा के समय होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के बाद दंतेवाड़ा से आग के अंगार को माड़पाल लाया गया और रात के करीब 12 बजे राजपरिवार के सदस्य ने मावली देवी की पूजा की और माड़पाल में होलिका दहन किया. माड़पाल में होलिका दहन के बाद अंगार को जगदलपुर शहर में लाया गया. उसके बाद दंतेश्वरी मंदिर और मावली मंदिर के सामने होलिका विधि पूर्वक होलिका दहन किया गया. इस तरह रबस्तर में होली का पर्व शुरू हो गया.
होलिका दहन के पहले बस्तर के आराध्य देवियों की पूजा अर्चना की गई.इस दौरान परंपरा निभाने के लिए 12 परघना के देवी देवता भी शामिल हुए. इस होलिका दहन कार्यक्रम में रथ निर्माण समिति, मांझी चालकी, 12 परघना के लोग और होली समिति के लोगों ने अपना योगदान दिया.
बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने बताया कि परंपरा सन 1423 में शुरू हुई थी. यही कारण है कि 601 साल से यह परंपरा अनवरत रूप से चली आ रही है. हर साल होली के मौके पर बस्तर के राजा अपनी वेशभूषा में मड़पाल पहुंचते हैं और होलिका दहन के कार्यक्रम में शामिल होते हैं.
/केशव शर्मा