लोकसभा चुनाव में बढ़ी मुसलमानों की संख्या! घट गए हिंदू, जनसंख्या में बदलाव का घुसपैठ कनेक्शन

पटना: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों में 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव के अध्ययन की रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में भारत का भी जिक्र है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 और 2015 के बीच भारत में हिन्दुओं की आबादी 7.82 प्रतिशत घट गई, जबकि इसी अवधि में मुसलमानों की आबादी में 43.15 प्रतिशत का इजाफा हुआ। लोकसभा के चुनाव की जारी प्रक्रिया के बीच इस रिपोर्ट के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद जाहिरा तौर पर लोगों के कान खड़े हो गए हैं। विपक्षी इसे जान-बूझ कर चुनावी लाभ के लिए भाजपा की चाल के रूप में देखेंगे। हालांकि इस रिपोर्ट के आंकड़े इसलिए चिंता पैदा करते हैं कि भारत को इस्लामिक देश बनाने की साजिशें रचने में कुछ ताकतें शिद्दत से लगी हुई हैं।बदलाव पर सियासी बवालधार्मिक आधार पर भारत में जनसांख्यिकीय बदलाव के आंकड़े को लेकर बिहार में सियासी बवाल मचा हुआ है। बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि जो जनगणना साल 2021-22 में होनी चाहिए थी, वह तो हुई नहीं। देश की जनता को भ्रम में डालने और लोगों के बीच नफरत फैलाने के लिए इस तरह के आंकड़े जारी किए गए हैं। इंडी अलायंस की घटक विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी ने तो इस पर और भड़काऊ बयान दिया है। इसे ऊटपटांग बयान भी कह सकते हैं। सहनी ने कहा कि अगर मुसलमानों की आबादी बढ़ी है और हिन्दुओं की घटी है तो पीएम और उनके मंत्री हिन्दू आबादी बढ़ाएं। उनके इस बयान का क्या असर होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन इसे अतार्किक ही माना जाना चाहिए।इस्लामी राष्ट्र की मंशा देश के कई मुस्लिम संगठन लगातार यह कहते रहे हैं कि भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना अब दूर की बात नहीं है। जाकिर नाइक तो यह भी कहते हैं कि भारत में हिन्दुओं की आबादी 60 प्रतिशत ही रह गई है। इसलिए इस्लामी राष्ट्र का सपना सच होना दूर की बात नहीं। पीएफआई ने तो संकल्प ही ले रखा है कि हर हाल में 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है। ऐसे तत्व तो जनसांख्यिकी के इन आंकड़ों से खुश ही हो रहे होंगे, लेकिन सेकुलरिज्म के नाम पर हिन्दू नेताओं ने भी इसे हल्के में लिया तो सच में 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनने से शायद ही कोई रोक पाए। इसकी सुनियोजित कोशिशें लगातार हो रही हैं।जनसांख्यिकी बदलाव की वजहसिर्फ बच्चे पैदा करने की होड़ ही मुसलमानों की आबादी बढ़ने की वजह नहीं हो सकती। इसकी एक बड़ी वजह पड़ोसी मुल्कों से बड़े पैमाने पर घुसपैठ है। आश्चर्य यह कि जो लोग कभी इस घुसपैठ पर लाल-पीले होते थे, आज उन्हें ही इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती। पहले जनसांख्यिकी के आंकड़ों पर गौर करें। वर्ष 1951 में भारत में हिन्दू आबादी 84.10 प्रतिशत थी और मुस्लिम आबादी 9.80 प्रतिशत थी। 1971 में हिन्दू आबादी घट कर 82.73 प्रतिशत रह गई, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़ कर 11.21 प्रतिशत हो गई। 2015 में हिन्दू घट कर 77.52 प्रतिशत पर आ गए तो मुस्लिम लगातार बढ़ते हुए 14.02 प्रतिशत हो गए। बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ भारत की जनसांख्यिकी बदलाव का बड़ा कारण इसलिए कहा जा सकता है कि 2022 के अंत तक भारत में घुसपैठ कर भारत पहुंचे लोगों की संख्या तकरीबन पांच करोड़ थी। इनकी बड़ी आबादी ने उत्तर-पूर्व के राज्यों और पश्चिम बंगाल में स्थायी ठिकाना बना लिया है। बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से भी बड़े पैमाने पर शरणार्थी भारत में बस गए हैं। राजनीतिक नफा-नुकसान को देखते हुए कई पार्टियों ने घुसपैठ और शरणार्थियों पर चुप्पी ही साध ली है।घुसपैठियों का ठिकाना बना बंगालदूसरे मुल्कों से घुसपैठ करने वालों पर राजनीति करने वाले भारतीय राजनीतिज्ञों की नीति भी ढुलमुल रही है। आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का खुला विरोध करती हैं। ये वही ममता बनर्जी हैं, जिन्होंने बंगाल में लेफ्ट की सरकार के समय इसे लेकर संसद में हड़बोंग मचा दिया था। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं- ‘चार अगस्त 2005 को तत्कालीन सांसद ममता बनर्जी ने नाटकीय अंदाज में लोकसभा के स्पीकर के टेबल पर कागज का पुलिंदा फेंका था। उसमें अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत यानी पश्चिम बंगाल में मतदाता बनाए जाने के सबूत थे। वाम मोर्चा शासन काल में उनके नाम पश्चिम बंगाल में भी गैरकानूनी तरीके से मतदाता सूची में शामिल करा दिए गए थे। बांग्लादेश की मतदाता सूची में भी उनके नाम थे। इसी का कागजी सबूत ममता के पास था। ममता ने कहा था कि घुसपैठ की समस्या राज्य में महाविपत्ति बन चुकी है। इन घुसपैठियों के वोट का लाभ सत्ताधारी वाम मोर्चा उठा रहा है। ममता ने उस पर सदन में चर्चा की मांग की। चर्चा की अनुमति न मिलने पर ममता ने सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे देने के अपने निर्णय की घोषणा कर दी थी। घुसपैठियों पर ममता बनर्जी का रवैया अब पूरी तरह बदल चुका है। क्योंकि अब वे ममता के लिए ‘‘संपत्ति’’ बन चुके हैं। ममता बनर्जी ने तो घुसपैठियों के वोट के लिए अपने रुख में परिवर्तन कर लिया।मुस्लिम आबादी बढ़ने के कारण वर्ष 2017 के आंकड़े बताते हैं कि इस देश में पांच करोड़ बांग्लादेशी-रोहिंगिया घुसपैठिए थे। अब तक तो इनकी संख्या दोगुनी हो ही चुकी होगी। धर्म परिवर्तन और लव जेहाद के जरिए भी हिन्दुओं की संख्या घटाई जा रही है। इसके लिए विदेशों से पैसे आ रहे हैं। घुसपैठ में बार्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) भी कम जिम्मेदार नहीं है। बीएसएफ के घूसखोर कुछ पैसे लेकर लोगों को बार्डर क्रास करा देते हैं। मोदी सरकार अगर सीएए, एनआरसी और यूसीसी की बात कह रही है तो इसके पीछे उसका मकसद यही है कि भारत में आजादी के पहले से ही बसे मुसलमानों को कोई आंच न आए, बल्कि घुसपैठियों पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। बीजेपी का इस बारे में कहना है कि कुछ पार्टियों की मुस्लिम तुष्टिकरण वाली नीतियों का यह नतीजा है। कांग्रेस का कहती है कि बेरोजगारी, किसान, महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह भाजपा का शिगूफा है।