बच्चे को छूट नहीं रही खांसी, कहीं अस्थमा तो नहीं? 70% मामले आ रहे देरी से पकड़ में

मुंबई: दो सप्ताह से अधिक बच्चे को खांसी आना न केवल टीबी, बल्कि अस्थमा का भी संकेत हो सकता है। अस्थमा रोग विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी को लेकर अब भी लोगों में जानकारी का अभाव है। यही कारण है कि अब 60 से 70 फीसदी बच्चों में अस्थमा की पहचान औसतन एक वर्ष देरी से होती है। जेजे अस्पताल में अस्थमा के लिए विशेष ओपीडी चलाने वाले एसोसिएट प्रो. डॉ. सुशांत माने ने बताया कि जेजे अस्पताल में 2013 से अस्थमा के लिए विशेष ओपीडी चलाई जा रही है। मेरे प्रैक्टिस में मैंने यह अनुभव किया कि अस्थमा को लेकर अभिभावकों में लक्षण को लेकर जानकारी का अभाव है। जेजे रेफरल सेंटर हैं।डॉ. ने बताया कि संदिग्ध अस्थमा के 90 फीसदी बच्चे किसी न किसी अस्पताल से रेफर होकर आते हैं। इनमें से 60 से 70 फीसदी अस्थमा के बच्चे कम से कम एक वर्ष देरी से हमारे पास पहुंचते हैं। लोग यह सोचते हैं कि सांस लेने में दिक्कत होगी, तो ही अस्थमा होगा, लेकिन यह तब होता है जब बीमारी बढ़ जाती है।शुरुआत खांसी से होती है।लोकल ट्रीटमेंट पड़ रहा भारीबच्चे को अगर दो सप्ताह से अधिक खांसी आ रही है और जल्द ठीक नहीं हो रही है या खांसी ठीक होने के बाद फिर लौट आती है, तो बच्चे को अस्थमा होने की आशंका है। देर रात या तड़के सुबह सूखी खांसी का लगातार आना अस्थमा के संकेत हैं। मेरे पास कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो पिछले 5 वर्ष से अस्थमा से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्हें पता ही नहीं है कि वे लोकल डॉक्टर से खांसी का ट्रीटमेंट ले रहे हैं। नेबुलाइजेशन ले रहे हैं और दवा खा रहे हैं। यहां तक के एडमिट भी हो गए हैं, लेकिन पता नहीं है कि बच्चे को अस्थमा है। इस बीमारी में सांस की नली में जलन, सिकुड़न या सूजन की स्थिति होती है।ये लक्षण हों, तो रहें सतर्क1. देर रात में खांसी आना (सोने के बाद), भोर में खांसी आना (4 से 6 बजे के बीच), दो सप्ताह तक लगातार आना, ठीक होने के बाद फिर आना2. सांस लेते वक्त या खांसते वक्त घरघराहट3. दम लगना, यानी सांस लेने में दिक्कत4. रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में बार-बार इंफेक्शन होना इनहेलर है कारगरपुणे की वरिष्ठ बाल अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ. बरनाली भट्टाचार्य ने बताया कि अस्थमा के इलाज के लिए इनहेलर ही सबसे कारगर उपचार है। सिरप और गोली का डोज हाई रहता है। इसके साइड इफेक्ट भी होते हैं, लेकिन इनहेलर की मदद से दवा वहां पहुंचती है, जहां उसे काम करना है। डॉ. माने ने बताया कि गोली, सिरप लिवर में जाकर फिर रक्त के जरिए श्वसन नली तक पहुंचती है, ऐसे में दवा उतनी असरदार नहीं होती है। इनहेलर की मदद से दवा की छोटी मात्र से काम हो जाता है। जल्द इलाज शुरू हो, तो जिंदगी भर इनहेलर की जरूरत नहीं पड़ती है। यहां चूकते हैं डॉक्टरडॉ. माने ने बताया कि वैसे तो लोग पहले लोकल डॉक्टर के पास जाते हैं। उसके बाद पीडिअट्रिशन के पास पहुंचते हैं। अब ओपीडी में 60 से 70 बच्चे होते हैं। पहली बार डॉक्टर आम खांसी समझकर कुछ एंटीबायोटिक लिख कर दे देता है जिससे बच्चे को आराम भी हो जाता है, लेकिन एक महीने बाद फिर वहीं समस्या शुरू हो जाती है। डॉक्टर भी दवा बदलकर दे देता है। ऐसे कई बार डॉक्टर यह ध्यान नहीं देते कि बच्चे को खांसी बार-बार रिपीट हो रही है।अस्थमा की वजह-यदि परिवार में किसी को अस्थमा, एलर्जी है (खांसी) तो बच्चों में बीमारी होती है। -20% में प्रदूषण से होती है बीमारी। वाहन या फैक्ट्री के धुएं, कंस्ट्रक्शन साइट पर निकले धूल-कण के कारण भी होती है बीमारी।-घर के अंदर यदि फंगस है, तो यह बीमारी हो सकती है।देश में 10 फीसदी बच्चे ग्रस्तडॉ. भट्टाचार्य ने बताया कि देश में करीब 10 फीसदी बच्चे अस्थमा से ग्रसित हैं। सालाना में लगभग 250 नए अस्थमा के मरीज देखती हूं।कोविड के बाद बढ़े मामलेडॉ. माने ने बताया कि कोविड के पहले जेजे अस्पताल में 2 से 3 नए मामले साप्ताहिक ओपीडी में आते थे, लेकिन अब 5 से 6 नए मामले आ रहे हैं। प्रचलित मिथक -अस्थमा है, तो दही, केला, संतरा आदि नहीं खाएं-स्पोर्ट्स में भाग नहीं ले सकते बच्चे-बच्चे मैदान में खेल नहीं सकतेइन बातों का रखे ध्यान:- घर में साफ-सफाई रखें-फंगल इंफेक्शन से बचें-वाहन, फैक्ट्री, कंट्रक्शन से निकले कणों से बचें-मौसम में बदलाव के समय ध्यान रखें-परफ्यूम, अगरबत्ती से एलर्जी है, तो उपयोग न करें