Apple का अभागा को-फाउंडर… रद्दी के भाव बेच दी थी 10% हिस्सेदारी, आज होते दुनिया के सबसे बड़े रईस

नई दिल्ली: आईफोन (iPhone) और आईपैड (iPad) बनाने वाली अमेरिका की दिग्गज टेक कंपनी ऐपल (Apple) आज दुनिया की दूसरी सबसे वैल्यूबल कंपनी है। इसका मार्केट कैप 2.831 ट्रिलियन डॉलर है जो ब्राजील, इटली और कनाडा जैसे कई देशों की जीडीपी से अधिक है। अगर किसी के पास इसके एक परसेंट शेयर भी होंगे तो वह 28.3 अरब डॉलर का मालिक होगा। लेकिन एक ऐसा भी शख्स था जिसके पास इस कंपनी की 10% थी। अगर उसने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बरकरार रखी होती तो वह आज दुनिया का सबसे अमीर शख्स होता। उनकी नेटवर्थ 283 अरब डॉलर होती। ब्लूमबर्ग बिलिनेयर इंडेक्स के मुताबिक इस समय फ्रांस के बर्नार्ड अरनॉल्ट की नेटवर्थ 218 अरब डॉलर है। लेकिन उस शख्स ने ऐपल में अपनी 10 फीसदी हिस्सेदारी मात्र 800 डॉलर में बेच दी। इस शख्स का नाम है रोनाल्ड वेन (Ronald Wayne)। वह ऐपल के तीन को-फाउंडर्स में से एक हैं। मगर उनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है।वेन ने स्टीव जॉब्स (Steve Jobs) और स्टीव वॉज्नियाक (Steve Wozniak) के साथ मिलकर ऐपल बनाई थी। तब वॉज्नियाक 21 साल और जॉब्स 25 साल के थे जबकि वेन की उम्र 42 साल थी। यानी वह कंपनी के को-फाउंडर्स में सबसे अनुभवी व्यक्ति थे। उन्हें कंपनी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग और डॉक्युमेंटेशन की जिम्मेदारी मिली थी। इसके बदले में वेन को कंपनी में 10 फीसदी हिस्सेदारी मिली थी। एक अप्रैल 1976 को वेन ने टाइपराइटर उठाया और हर आदमी की जिम्मेदारी तय करते हुए एक एग्रीमेंट बनाया। कंपनी का पहला लोगो भी उन्होंने ही तैयार किया था। इसमें आइजक न्यूटन की तस्वीर थी। इसमें वह सेब के पेड़ के नीचे बैठे थे। यह लोगो उस घटना को बयां कर रहा था जिसने न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए प्रेरित किया था। घरबार लुटने का डरमगर जल्दी ही वेन का मन कंपनी से ऊब गया। उन्हें लगा कि कंपनी ने बिजनस के लिए कर्ज लिया है, वह उन्हें ही चुकाना पड़ेगा। जॉब्स ने 15,000 डॉलर का लोन ले रखा था ताकि कंपनी के पहले कॉन्ट्रैक्ट के लिए सप्लाई खरीदी जा सके। कंपनी को पहला कॉन्ट्रैक्ट बे एरिया कंप्यूटर स्टोर द बाइट शॉप (The Byte Shop) से मिला था। उसने ऐपल को करीब 100 कंप्यूटर का ऑर्डर दिया था। लेकिन The Byte Shop बिल न देने के लिए बदनाम थी। वेन को चिंता थी कि ऐपल को पैसे नहीं मिलेंगे। उस समय जॉब्स और वॉज्नियाक तो फकीर थे लेकिन वेन के पास घर के साथ-साथ बाकी एसेट्स भी थे। उन्हें लगा कि अगर कंपनी नहीं चली तो उनका घरबार बिक जाएगा। इसलिए महज 12 दिन बाद ही वेन ने कॉन्ट्रैक्ट से अपना नाम हटवा लिया और अपने हिस्से के शेयर जॉब्स और वॉज्नियाक को महज 800 डॉलर में बेच दिए।वेन का यह फैसला उन्हें बहुत भारी पड़ा। अगर आज उनके पास कंपनी के 10% शेयर होते तो उसकी कीमत करीब 283 अरब डॉलर होती। इस तरह वेन दुनिया के सबसे अमीर शख्स होते। हैरानी की बात है कि वेन को अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं है। उन्होंने कुछ साल पहले बिजनस इनसाइडर से एक इंटरव्यू में यह बात कही थी। उनका कहना था कि ऐपल में उनके लिए कोई खास संभावनाएं नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘अगले 20 साल में डॉक्यूमेंटेशन डिपार्टमेंट में पेपर्स देखते रहता। मैं 40 साल से ऊपर का था और वे 20-22 साल के थे। मेरे लिए यह शेर की पूंछ जैसी थी। अगर में ऐपल में टिका रहता तो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में मेरा नाम होता।’ दूसरी बार गंवाया मौकामगर उन्हें एक बात का मलाल जरूर है। वेन ने 1976 के ओरिजिनल कॉन्ट्रैक्ट को कई साल तक सहेज कर रखा और फिर 1990 की शुरुआत में इसे 500 डॉलर में बेच दिया। उन्होंने कहा, ‘ऐपल का कॉन्ट्रैक्ट मेरी अलमारी में पड़ा धूल फांक रहा था। मैंने सोचा कि मैं इसका क्या करूंगा।’ साल 2011 में यह कॉन्ट्रैक्ट एक नीलामी में 15.9 लाख डॉलर में बिका। यानी वेन ने दूसरी बार ऐपल से पैसा कमाने का मौका गंवा दिया। जॉब्स और वॉज्नियाक ने एक साल तक वेन का बनाया लोगो चलाया और फिर कटा हुआ सेब कंपनी का लोगो बनाया गया। इसमें समय-समय पर बदलाव किए गए। आज माइक्रोसॉफ्ट के बाद ऐपल दुनिया की दूसरी सबसे वैल्यूबल कंपनी है।