भारतीय मन, मानस और संस्कृति का पुनर्बोध : गांधी का ‘हिंद स्वराज’ आज भी प्रासंगिक
केवल अंग्रेजों के हटने से स्वराज नहीं मिलेगा, बल्कि हमें अंग्रेजियत (अर्थात उनकी सोच और जीवनशैली) भी छोड़ना होगी। गांधीजी ने अपने विचारों में बदलाव लाते हुए यह भी माना कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति ही हमारे संविधान में स्वराज की सच्ची परिभाषा हो सकती है।