भोपाल : मध्य प्रदेश सरकार की अगली कैबिनेट बैठक [Cabinet Meeting in Pachmarhi] में मंगलवार को होगी। यह बैठक अब सिर्फ एक प्रशासनिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि इतिहास और आदिवासी शौर्य का जीवंत स्मरण बनने जा रही है।
मुख्यमंत्री [Mohan Yadav] की अध्यक्षता में यह बैठक पचमढ़ी के राजभवन में आयोजित होगी। इसकी खास बात यह है कि इसे गोंड शासक राजा भभूत सिंह की याद में समर्पित किया गया है, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla Warfare) में निर्णायक भूमिका निभाई थी।
राजा भभूत सिंह को मध्य भारत के [Tribal Freedom Fighter] के रूप में जाना जाता है। वे न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि आदिवासी समुदाय के संगठक और संरक्षक भी थे। उन्होंने जंगल, पानी और जमीन की रक्षा के लिए स्थानीय लोगों को एकजुट किया और ब्रिटिश सेना को सतपुड़ा की घाटियों में नाकों चने चबवा दिए।
सरकार का यह आयोजन आदिवासी नायकों को सम्मान देने की उसकी प्रतिबद्धता का हिस्सा है। अधिकारी बताते हैं कि यह बैठक [MP Government’s Tribute to Tribal Heroes] अभियान का एक अहम पड़ाव है। मुख्यमंत्री यादव ने कहा, “पचमढ़ी न केवल एक खूबसूरत [Hill Station in Madhya Pradesh] है, बल्कि यह हमारे आदिवासी इतिहास और विरासत की गहराई से जुड़ा है।”
पचमढ़ी का ऐतिहासिक कनेक्शन
पचमढ़ी सिर्फ पर्यटकों के लिए [Tourist Destination] नहीं, बल्कि एक रणनीतिक किला भी रहा है। सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ से सूर्योदय और सूर्यास्त के मनोरम दृश्य आज भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, लेकिन कभी ये पहाड़ियाँ अंग्रेजों की हार का गवाह रही हैं।
इतिहासकार बताते हैं कि राजा भभूत सिंह ने अपनी पहाड़ी रणनीति से अंग्रेजी सेनाओं को बार-बार चकमा दिया। उनकी सैन्य रणनीति को शिवाजी महाराज जैसी कुशलता से जोड़ा जाता है। [British Colonial Resistance], [Guerrilla Tactics in Satpura], और [Tribal Leadership] जैसे विषयों पर अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ उन्हें ‘सतपुड़ा का शिवाजी’ कहते हैं।
तात्या टोपे के साथ विद्रोह
1857 की क्रांति के समय, भभूत सिंह ने [Tatya Tope] के साथ मिलकर पचमढ़ी को क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बना दिया। कहा जाता है कि तात्या टोपे की सेना ने यहां आठ दिन तक डेरा डालकर योजनाएँ बनाईं। हर्राकोट के जागीरदार होने के नाते, भभूत सिंह का आदिवासी समाज पर खासा प्रभाव था, जिससे उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की।
ब्रिटिश इतिहासकार भी हुए मजबूर
ब्रिटिश लेखक एलियट ने लिखा है कि भभूत सिंह को पकड़ने के लिए Madras Infantry की तैनाती करनी पड़ी। फिर भी 1860 तक उनका विद्रोह जारी रहा और वे 1857 की क्रांति के सबसे प्रमुख [Unsung Heroes of Indian Freedom Struggle] में से एक बन गए।