मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जैन धर्म की संथारा रस्म के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें 18 साल से कम उम्र के बच्चों और मानसिक रूप से कमजोर लोगों के लिए इस रस्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। यह याचिका 3 साली की एक बच्ची की मौत के मामले में दायर की गई है, जिसके परिवार ने कथित तौर पर उसे जबरन संथारा करवाया था।
संथारा जैन समाज की एक प्रथा है जिसमें स्वेच्छा से मृत्यु तक उपवास किया जाता है। इस प्रथा के अनुसार, एक व्यक्ति आध्यात्मिक शुद्धि और दुनिया से अलगाव प्राप्त करने के साधन के रूप में मृत्यु तक धीरे-धीरे भोजन और पानी का सेवन कम करता है।
याचिका में कहा गया है कि इस प्रथा में भोजन और पानी से परहेज करना होता है, जो अंततः मृत्यु की ओर ले जाता है। इसलिए, इसे एक वयस्क जैन व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जिसे इस प्रथा और इसके निहितार्थों की स्पष्ट समझ हो।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह जनहित याचिका 3 साल की एक बच्ची की मौत के मामले में दायर की गई है, जिसके परिवार ने कथित तौर पर उसे जबरन संथारा करवाया था।
जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि रिट याचिका में लगाए गए आरोपों के आधार पर नाबालिग मृतक लड़की के माता-पिता को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता को यह भी बताने का निर्देश दिया जाता है कि वह कौन सी संस्था है, जिसने नाबालिग मृतक लड़की के माता-पिता को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का उत्कृष्टता प्रमाणपत्र दिया है।
कोर्ट याचिकाकर्ता प्रांशु जैन की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता बताए जाते हैं। उन्होंने इंदौर में जैन समुदाय से जुड़े परिवार द्वारा की गई क्रूर हरकतों पर प्रतिवादियों की निष्क्रियता को चुनौती दी है।
आरोप है कि इस परिवार ने 3 साल की बच्ची को संथारा लेने के लिए मजबूर किया, जिसके कारण उसकी मौत हो गई। याचिका में प्रतिवादी भारत संघ हैं, जिनका प्रतिनिधित्व गृह मंत्रालय और विधिक मामलों के मंत्रालय के माध्यम से किया जाता है।
इसके अलावा, राज्य के मुख्य सचिव, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, राज्य के डीजीपी, इंदौर के संभागीय आयुक्त, इंदौर के पुलिस आयुक्त और जिला कलेक्टर भी प्रतिवादी हैं।
याचिका में कहा गया है कि संथारा की प्रक्रिया के लिए इसे अपनाने वाले व्यक्ति की सहमति की जरूरत होती है। आरोप है कि नाबालिग लड़की को मरने तक भूखे रहने के लिए एक कमरे में छोड़ दिया गया। जबकि उसे यह भी नहीं पता था कि वह किस प्रक्रिया से गुजर रही है और क्यों। याचिका में दावा किया गया है कि जैन समुदाय में प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार, जो व्यक्ति संथारा प्रक्रिया को समझने और अपनी सहमति देने में सक्षम है, वही संथारा प्रक्रिया से गुजर सकता है।
इसमें कहा गया है कि संथारा प्रक्रिया को किसी व्यक्ति पर उसकी सहमति के बिना जबरदस्ती लागू नहीं किया जा सकता है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि नाबालिग लड़की की मौत के तुरंत बाद माता-पिता और परिवार के सदस्यों ने गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स से संपर्क किया और संथारा प्रक्रिया से गुजरने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति के प्रमाणीकरण के लिए आवेदन किया। याचिका में दावा किया गया है कि इसके बाद नाबालिग मृत लड़की के माता-पिता को प्रमाण पत्र भी जारी किया गया।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने पहले भी नाबालिग लड़की के परिवार के सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रतिवादियों से संपर्क किया था ताकि ऐसी क्रूर प्रथाओं को रोका जा सके, लेकिन प्रतिवादियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसलिए, याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष प्रतिवादियों को 18 साल से कम आयु के बच्चों और अस्वस्थ दिमाग वाले व्यक्तियों के लिए संथारा की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। साथ ही ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की प्रार्थना की गई है जो नाबालिग बच्चों और अस्वस्थ दिमाग वाले व्यक्तियों को संथारा के लिए मजबूर करते हैं।