
राहुल गांधी के सावरकर की चिट्ठी को सार्वजनिक करने के तुरंत बाद उन पर हमले हुए। उस जमाने की कई चिट्ठियां भी सामने आईं। लक्ष्मी बाई और महात्मा गांधी के पत्रों में भी इस ‘Your obedient servant’ फ्रेज का इस्तेमाल हुआ है। यह और बात है कि इसका कतई मतलब नहीं था कि लक्ष्मी बाई और महात्मा गांधी अंग्रेजों के वफादार नौकर थे या बने रहना चाहते थे। जैसा कि राहुल गांधी ने सावरकर के मामले में कहा।
क्यों लिखते थे ‘Your obedient servant’?
उस जमाने में यह लिखत-पढ़त की भाषा थी। किसी का दूसरे से कितना भी मतभेद हो, लेकिन सम्मान दिया जाता था। लॉर्ड क्लेम्सफोर्ड को महात्मा गांधी का ऐसा ही एक लेटर पब्लिक डोमेन में है। इसमें राष्ट्रपिता ने लेटर के अंत में ‘Your obedient servant’ फ्रेज का इस्तेमाल किया है। हालांकि, खत में लगातार लॉर्ड क्लेम्सफोर्ड को अल्टीमेटम दिया गया है। इसमें ब्रिटिश हुकूमत के साथ असहयोग की बात की गई है।
1854 में रानी लक्ष्मी बाई ने ड्रॉक्ट्रीन ऑफ लैप्स पॉलिसी के तहत झांसी के जबरन अधिग्रहण का विरोध किया था। उनकी तरफ से एक याचिका की गई थी। ऑस्ट्रेलियाई वकील जॉन लैंग ने यह पेटिशन फाइल की थी। इसके अंत में भी ‘Your obedient servant’ लिखा गया था।
इन बातों से क्या होता है साबित?
इन बातों से साफ साबित होता है कि उस जमाने में यह शिष्टाचार की भाषा थी। जैसे आज हम ‘Warm Regards’ या ‘Best’ लिखने लगे हैं। तब वैसे ही ‘Your obedient servant’ लिखने का चलन था। यह कहीं से रत्ती भर भी साबित नहीं करता है कि सावरकर अंग्रेजों के लिए काम करते थे। महात्मा गांधी और सावरकर अकेले नहीं थे, दुनिया के बड़े-बड़े राजनेता भी इस भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे। 6 अप्रैल 1859 के एक लेटर में अब्राहम लिंकन ने इसी भाषा का इस्तेमाल किया था।