आपने तिल का ताड़ बना दिया… खुद को ‘मृतक’ बताने वाले लाल बिहारी को कोर्ट ने खूब सुनाया

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने ‘मृतक’ के नाम से चर्चित लाल बिहारी को 25 करोड़ रुपये मुआवजा दिलवाने से मना करते हुए कोर्ट का समय बर्बाद करने पर 10 हजार रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि लाल ने तिल का ताड़ बनाया है, जबकि सरकार ने उसे कहीं मृतक दर्ज नहीं दिखाया। यह आदेश जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस मनीष कुमार की पीठ ने लाल बिहारी ‘मृतक’ की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। कोर्ट ने कहा कि याची के मामले में सच तक पहुंचने में काफी वक्त बर्बाद हुआ है। यह सब इसलिए क्योंकि याची का कहना था कि उसे राज्य सरकार ने मृतक घोषित किया हुआ था, जबकि सरकार ने कभी भी याची को मृतक घोषित नहीं किया था।कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि याची का यह दावा झूठ है कि राजस्व रेकॉर्ड में मृतक घोषित कर दिए जाने के कारण उसे अपने अधिकारों की लड़ाई में इतना व्यस्त होना पड़ा कि वह साड़ी के अपने व्यवसाय में ध्यान नहीं दे पाया। कोर्ट ने कहा कि याची 1972 से अपने गांव में रह रहा है और सभी अधिकारों का प्रयोग कर रहा है, उसने जमीनें भी खरीदीं और उसका एक बेटा गैस एजेंसी चलाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याची को कभी ‘भूत या गोस्ट’ कहकर संबोधित करने का भी कोई साक्ष्य नहीं है।टाइम मैग्जीन में प्रकाशित हुआ था केसहाई कोर्ट ने कहा कि मामले को सबसे पहले विधानसभा में एक विधायक ने उठाया और उसके बाद टाइम मैगजीन ने इसे प्रकाशित किया। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि याची का दावा है कि राजस्व रिकॉर्ड में उसे मृतक घोषित कर दिए जाने के कारण उसे अपने अधिकारों की लड़ाई में इतना व्यस्त होना पड़ा कि वह बनारसी सिल्क साड़ी के अपने व्यवसाय पर ध्यान नहीं दे पाया, यह कहानी भी पूरी तरह झूठ है। कोर्ट ने कहा कि याची के अपने रिश्तेदारों ने उसकी गैर मौजूदगी का फाएदा उठाते हुए, राजस्व रिकॉर्ड में अपने नाम चढ़वा लिए।मुआवजे की मांग कर रहे थे लाल बिहारीयाचिकाकर्ता लाल बिहारी ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि राजस्व रिकॉर्ड में मृत के रूप में दर्ज होने के कारण उन्हें 18 साल तक पीड़ा हुई और इसलिए उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए। राज्य के आजमगढ़ जिले के किसान लाल बिहारी, जिन्हें 1975 और 1994 के बीच आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर दिया गया था। उन्होंने वर्षों तक यह साबित करने के लिए संघर्ष किया कि वे जीवित हैं। उन्होंने अपने नाम के आगे ‘मृतक’ जोड़ लिया और मृतक संघ की स्थापना भी की थी।