हाशिए पर चले जाएंगे उद्धव ठाकरे या बचा है कोई रास्ता? शिवसेना विवाद पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट

मुंबई: निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को ‘शिवसेना’ नाम और इसका चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ आवंटित किया है। उद्धव ठाकरे ने इस फैसले को लोकतंत्र की हत्या करार दिया है और वह इसे चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की घोषणा कर चुके हैं। इस विवाद से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस)’ के शोध कार्यक्रम ‘लोकनीति’ के सह-निदेशक संजय कुमार ने बात की-सवाल: शिंदे नीत गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दिए जाने पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है?जवाब: निर्वाचन आयोग के इस फैसले पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं है। मुझे लगता है कि यह कानूनी तौर पर लिया गया फैसला है। उद्धव ठाकरे गुट दावा करता रहा है कि भले ही निर्वाचित विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हों लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता और पार्टी उनके साथ है। इस दावे के लिए प्रमाण की जरूरत थी लेकिन देखा यह गया कि निर्वाचित विधायक किसके साथ खड़े हैं। स्पष्ट है जिस तरीके से पार्टी में विभाजन हुआ है, ज्यादातर विधायक शिंदे के साथ हैं और इसी वजह से वह सरकार भी बना पाए हैं। इसलिए निर्वाचन आयोग के फैसले पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं है।सवाल: यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में आयोग पर सवाल उठ रहे हैं कि उसे इस प्रकार का फैसला नहीं करना चाहिए था?जवाब: मुझे नहीं लगता कि निर्वाचन आयोग कोई असंवैधानिक फैसला लेगा। असंवैधानिक होता तो निर्वाचन आयोग कभी यह निर्णय नहीं लेता। हां, लेकिन यह सवाल जरूर है कि जब मामला शीर्ष अदालत में है तो आयोग की ओर से नैतिक रूप से ऐसा फैसला लिया जाना चाहिए या नहीं। मुझे लगता नहीं है कि निर्वाचन आयोग ने नियमों को ताक पर रखकर कोई फैसला लिया होगा। मौजूदा सबूतों के आधार पर जाएं तो आयोग ने सही फैसला दिया है।सवाल: महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार को बड़ी ताकत माना जाता है, ऐसे में इस फैसले का वहां की राजनीति पर आप क्या असर देखते हैं?जवाब: महाराष्ट्र की राजनीति तो उसी दिन बदल गई थी जब शिवसेना में विभाजन हुआ था। भले ही उद्धव ठाकरे उस पर पर्दा डालने की बार-बार कोशिश कर रहे थे। एक राजनीतिक विश्लेषक के रूप में मेरा यह मानना रहा है कि असल शिवसेना अब शिंदे समूह की हो गई है। इतनी बड़ी संख्या में विधायक उनके साथ हैं तो असली समूह वही है। समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए भले ही उद्धव ठाकरे कहते रहें कि यह पार्टी उनकी है। अब जो कुछ भी शेष उद्धव ठाकरे के पास है, वह भी आने वाले समय में खिसकता हुआ दिखाई पड़ेगा। क्योंकि अब आयोग ने भी असली शिवसेना शिंदे गुट को मान लिया है। अब शिंदे गुट के पास शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न दोनों हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे नीत गुट के हाशिए पर जाने का खतरा है।सवाल: असली-नकली शिवसेना की लड़ाई आगे किस ओर जाती दिख रही है?जवाब: मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है। दोनों पक्षों की ओर से अदालत में यह लड़ाई लड़ी जाएगी। सबकी नजरें उस पर टिकी हैं। इस पर कोई प्रतिक्रिया देना अनुचित होगा।सवाल: उद्धव ठाकरे गुट के लिए आप आगे की राजनीतिक राह कैसी देखते हैं?जवाब: अभी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और अन्य नगर निकायों के चुनाव होने हैं। फिर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव भी होंगे। इन चुनावों में उद्धव गुट यदि अच्छा प्रदर्शन करता है और किसी कारणवश शिंदे गुट हाशिए पर चला जाता है तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक और बड़ा उलटफेर होगा। उद्धव गुट ने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया तो महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से उसकी वापसी हो सकती है। अच्छा प्रदर्शन नहीं हुआ तो महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का दखल समाप्त हो जाएगा। निर्वाचन आयोग ने भले ही फैसला दे दिया। हो सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ जाए…लेकिन इस पर विराम तो चुनाव ही लगा सकता है। जनता की अदालत में इस बारे में असली फैसला होगा। इसलिए उद्धव के पास बालासाहेब ठाकरे की विरासत को बचाने का एक ही तरीका है कि वह जनसमर्थन हासिल करें।