ओपिनियन: लोकसभा चुनाव में क्या कर्नाटक असेंबली चुनाव परिणाम को जनता रिपीट कर पाएगी?

ओमप्रकाश अश्क, पटना: कर्नाटक विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस की शानदार जीत को विपक्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल मान रहा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। आमतौर पर हर विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल बताने की पुरानी परंपरा रही है। अभी तो कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव हुए हैं। कुछ दिलों बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। उसके परिणामों को भी यकीनन लोकसभा चुनाव से जोड़ कर जरूर देखा जाएगा।कर्नाटक-राजस्थान में पलटते रहते हैं नतीजेकर्नाटक विधानसभा के तकरीबन चार दशक के इतिहास को देखें तो यही पता चलेगा कि हर बार वहां सत्ता पलटती रहती है। इस बार कांग्रेस तो अगली बार बीजेपी की सरकार बनती रही है। राजस्थान के बारे में भी यही बात लागू होती है। 1980 के पहले तो कांग्रेस का राजस्थान में एकछत्र राज रहा है। उसके बाद बीजेपी का उभार शुरू हुआ। 1990 से तो यह परंपरा ही बन गई है कि इस बार कांग्रेस तो अगली बार बीजेपी। ऐसे में यह कहना कि विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव के सेमी फाइनल होते हैं, उचित नहीं होगा। राजस्थान विधानसभा के 2018 में हुए चुनाव में 200 सीटों वाले सदन के लिए 199 पर चुनाव हुए थे। कांग्रेस 99 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। तब बीजेपी को 73 सीटें आई थीं। बाकी सीटें निर्दलीय या दूसरी पार्टियों के खाते में गई थीं। कांग्रेस ने सरकार बना ली थी।बिहार में भी दिखा चुनाव परिणामों में फर्कबिहार में 2019 में लोकसभा के चनाव हुए तो कुल 40 सीटों में 39 सीटें एनडीए के खाते में आईं। यानी स्ट्राइक रेट 99 प्रतिशत रहा। लेकिन 2020 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो 16 सीटें जीतने वाले जेडीयू को 110 सीटों पर लड़ कर विधानसभा में महज 43 सीटें ही मिलीं। आरजेडी का 2019 के लेकसभा चुनाव में खाता नहीं खुल पाया था, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक सीटों के साथ वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। यह अलग बात है कि बीजेपी और एनडीए के दूसरे घटक दलों के साथ रहने से नीतीश कुमार सीएम बन गए थे। इसलिए किसी को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि विधानसभा चुनाव परिणाम की पुनरावृत्ति लोकसभा में हो ही जाएगी।पिछले नतीजे भी स्थिति स्पष्ट कर देते हैंकर्नाटक के अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव 2015 में हुए तो आम आदमी पार्टी ने बीजेपी का सूबे से सफाया कर दिया। लेकिन 2019 के लोकसभा के चुनाव में पूरा दृश्य बदल गया। दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर कमल खिल गया। आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और उसने सरकार भी बना ली थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे कैसे रहे, यह सबको पता है। राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में 24 तो अकेले भाजपा ने जीती थी और एक सीट उसकी सहयोगी पार्टी को मिली थी। बंगाल विधानसभा के 2016 में हुए चुनाव में बीजेपी इकाई अंक में सिमट गई थी, लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की कुल 43 सीटों में 18 पर झटके में कब्जा जमा लिया।क्या रहेगा 2024 में चुनाव का परिणामविपक्ष को अब लगने लगा है कि अगर वे एकजुट हो गए तो बीजेपी को परास्त करना आसान है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद विपक्ष मानने लगा है कि यह पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति जनता के गुस्से का प्रतिफल है। बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद भी ऐसा ही माना जाने लगा था। ऐसा सोचने की वजह थी पीएम नरेंद्र मोदी की अत्यधिक सक्रियता। बंगाल में भी नरेंद्र मोदी ने दर्जन बार से अधिक दौरे किए, सभाएं की थीं। कर्नाटक में भी चुनाव का रुख मोदी बनाम विपक्ष बन गया था। मोदी ने चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में 19 रैलियां और 6 रोड शो किए थे। मोदी ने कर्नाटक में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बावजूद बीजेपी सत्ता में पुनर्वापसी नहीं कर सकी। इसीलिए कर्नाटक चुनाव परिणाम को विपक्ष मोदी की व्यक्तिगत हार मानने पर आमादा है। इसे ही देख कर 2024 के लोकसभा चुनाव का अनुमान भी विपक्षी दल लगाने लगे हैं। लेकिन विपक्ष का यह अनुमान अतीत के अनुभव को देखते हुए फेल भी हो सकते हैं।विपक्ष मोदी विरोधी लहर मान रहा हैकर्नाटक के नतीजों को विपक्षी दल सत्ता विरोधी लहर मान रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि मोदी के खिलाफ यह जन उबाल है। महंगाई, बेरोजगारी से परेशान लोगों के गुस्से का यह इजहार है। यही कारण है कि विपक्ष एकजुटता प्रयास के प्रति उत्साहित है। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है। जल्दी ही वे पटना में विपक्षी दलों की बैठक बुलाने वाले हैं, जिसमें 2024 की रणनीति तय की जाएगी। सीट शेयरिंग का फार्मूला क्या हो, पीएम का फेस कौन बने जैसे मुद्दों पर विपक्ष मंथन करेगा। हालांकि यहां भी अतीत के अनुभव यही बताते हैं कि पूरी तरह 1977 और आंशिक तौर पर 1989 के बाद विपक्ष कभी एकजुट नहीं हो पाया। हालांकि इसकी कोशिश 2019 में भी चंद्रबाबू नायडू ने की थी। कोलकाता में विपक्षी दलों के नेताओं का महाजुटान भी हुआ था, लेकिन चुनाव आते-आते सभी छिटक गए। इस बार भी विप7 एकता मूर्त रूप ले ले तो यह आश्चर्य की बात होगी।विपक्षी एकता में एक नहीं, कई लोचेविपक्षी एकता में कई लोचे हैं। पहला कि सबको एक साथ लाना ही कठिन काम है। दूसरा, सीट शेयरिंग के फार्मूले पर पेंच फंस सकता है। तीसरा यह कि पीएम फेस को लेकर बवाल हो सकता है। इसलिए कि विपक्ष में इनकार के बावजूद नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसी राव, एमके स्टालिन, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव जैसे कई नाम प्रधानमंत्री के रेस में गिने जा रहे हैं। नीतीश के ना कह देने के बाद तो बाकी लोगों की महत्वाकांक्षा और जोर मारने लगी है। अभी कांग्रेस ने अपना पत्ता खोला ही नहीं हैं, जिसकी बेगानी शादी को लेकर विपक्ष दीवाना बना हुआ है।(ये लेखक के निजी विचार हैं)