प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया है कि ‘‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?’’ प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर मुसलमानों को उकसाया जा रहा है। मोदी ने कहा कि विपक्ष समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को यह समझना होगा कि कौन-से राजनीतिक दल उन्हें भड़का कर उनका फायदा लेने के लिए उनको बर्बाद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे के लिए दूसरा, तो क्या वह परिवार चल पाएगा। फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? उन्होंने कहा है कि हमें याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है।क्या इसी सत्र में आयेगा विधेयक?इस बीच, रिपोर्टों के मुताबिक, प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद सरकार में उच्च स्तर पर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस संबंध में कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल से चर्चा भी की है। इस तरह की भी खबरें हैं कि समान नागरिक संहिता संबंधी विधेयक संसद के मॉनसून सत्र में लाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो निश्चित ही यह सत्र हंगामेदार रहेगा।भ्रम का माहौल बनाने का काम शुरूदूसरी ओर, प्रधानमंत्री के बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आना भी शुरू हो गयी हैं। कोई समर्थन कर रहा है तो कोई विरोध। लेकिन सबसे नायाब बात कही है एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने। उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री ‘‘हिन्दू नागरिक संहिता’’ लाना चाहते हैं। संसद के सदस्य बैरिस्टर ओवैसी शायद यह नहीं जानते कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां हिंदू, मुस्लिम या कोई अन्य संहिता नहीं हो सकती। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां किसी धर्म के लॉ बोर्ड का शासन नहीं चल सकता। भारतीय संविधान में जो कुछ लिखा है उसी के मुताबिक देश का शासन चल सकता है। ओवैसी को यह भी पता होना चाहिए कि समान नागरिक संहिता कानून हो या कोई अन्य कानून, सभी कानून भारतीय संविधान की मूल भावना और उसमें किये गये प्रावधान के मुताबिक ही बनाये जा सकते हैं। ऐसे में ओवैसी जैसे लोगों को भ्रम फैलाने और लोगों को भड़काने के प्रयासों से बाज आना चाहिए।इसे भी पढ़ें: भाजपा ने समान नागरिक संहिता के लिए जो तैयारियां की हैं उसे जानकर चौंक जायेगा विपक्षचिदम्बरम से कुछ सवालइसके अलावा पूर्व गृह मंत्री पी. चिदम्बरम का यह कहना चौंकाता है कि ‘एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार’ समान नागरिक संहिता को लोगों पर थोप नहीं सकती क्योंकि इससे लोगों के बीच ‘विभाजन’ बढ़ेगा। चिदम्बरम देश के वित्त और गृह मंत्री रहे हैं, उच्चतम न्यायालय में वकालत भी करते रहे हैं ऐसे में सवाल उठता है कि उन्हें यह बात आखिर कैसे नहीं पता होगी कि संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता की वकालत की थी? चिदम्बरम कैसे नहीं जानते होंगे कि उच्चतम न्यायालय समान नागरिक कानून बनाने के लिए कह चुका है? चिदम्बरम भारत की सरकार को बहुसंख्यक सरकार कह कर मतदाताओं के जनादेश का भी अपमान कर रहे हैं। जिन बहुसंख्यकों ने आज भाजपा को वोट दिया वह पहले कांग्रेस को भी देते रहे हैं। क्या जब बहुसंख्यक कांग्रेस को वोट देते थे तब चिदम्बरम उन्हें एजेंडा को समर्थन देने वाले मतदाता कहते थे? चिदम्बरम कह रहे हैं कि समान नागरिक संहिता आने से लोगों के बीच विभाजन बढ़ेगा। क्या चिदम्बरम को पता नहीं कि दुनिया के अधिकतर देशों में समान नागरिक कानून हैं? क्या जिन देशों में समान नागरिक कानून हैं वहां समाज में विभाजन देखने को मिलता है? चिदम्बरम कह रहे हैं कि थोपी गयी समान नागरिक संहिता विभाजन को और बढ़ायेगी। यह सुन कर ऐसा लगता है कि चिदम्बरम को पता ही नहीं है कि विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर देशवासियों से सुझाव और विचार आमंत्रित किये हैं और उसे भेजने की अंतिम तिथि 14 जुलाई है। जब किसी कानून के निर्माण से पहले सभी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा है तब वह थोपा हुआ कैसे कहा जा सकता है?मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से सवालसमान नागरिक संहिता को लेकर राजनेताओं के अलावा भ्रम फैलाने के काम में जो संगठन सबसे आगे है उसका नाम है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड। इस बोर्ड की सुनी जाती तो मुस्लिम महिलाओं को कभी तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति नहीं मिलती। इस बोर्ड की सुनी जाती तो मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश नहीं मिलता। अब यह बोर्ड समान नागरिक संहिता लाये जाने के खिलाफ अपना झंडा बुलंद किये हुए है। हालांकि यह अच्छी बात है कि बोर्ड ने यह तय किया है कि वह अपने विरोध के पक्ष में विधि आयोग के समक्ष दलीलें और तर्क प्रस्तुत करेगा। देखा जाये तो लोकतंत्र में यह आवश्यक है कि अपने रुख पर अड़े रहने या बहिष्कार करने की बजाय प्रक्रियाओं में भाग लिया जाये। वैसे जिस तरह लॉ बोर्ड इस बात की रट लगाये हुए है कि समान नागरिक संहिता न सिर्फ नागरिकों के धार्मिक अधिकारों का हनन है बल्कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के भी खिलाफ है, उसको देखकर लगता यही है कि यही सब वह विधि आयोग के समक्ष भी कहेगा।ओवैसी के तर्क तथ्यों से परेजहां तक धर्म की राजनीति करने वालों का समान नागरिक संहिता के बारे में मत है तो हम आपको बता ही चुके हैं मुस्लिमों के सबसे बड़े हितचिंतक होने का दावा करने वाले ओवैसी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री देश में हिंदू नागरिक संहिता लाना चाहते हैं। उन्होंने सवाल किया है कि क्या आप समान नागरिक संहिता के नाम पर बहुलवाद, विविधता को छीन लेंगे?” ओवैसी का आरोप है कि प्रधानमंत्री समान नागरिक संहिता नहीं, बल्कि हिंदू नागरिक संहिता की बात कर रहे हैं और वह सभी इस्लामी प्रथाओं को अवैध करार दे देंगे तथा कानून के तहत हिंदू प्रथाओं की रक्षा करेंगे। ओवैसी का आरोप है कि प्रधानमंत्री का असल मकसद भारत के मुसलमानों को निशाना बनाना और उन्हें अपमानित करना है।विश्व हिन्दू परिषद का पक्षदूसरी ओर, विश्व हिन्दू परिषद ने समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन करते हुए कहा है कि एक समान कानून 1400 साल पुरानी स्थिति से वर्तमान में लायेगा। विहिप ने समान नागरिक संहिता के विषय को नारी सम्मान से जोड़ते हुए सवाल किया कि जब आपराधिक कानून, संविदा कानून, कारोबार से जुड़े कानून एक समान हैं तब परिवार से जुड़े कानून अलग क्यों हों? विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में सभी सरकारों को यह निर्देश दिया गया है कि वह एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करें। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे आश्चर्य है कि संविधान बनने के 73 साल बाद जो सांसद और विधायक संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा रखने की शपथ लेते हैं, वे इसका पालन नहीं कर सके।’’ विहिप के कार्याध्यक्ष ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी सरला मुद्गल एवं अन्य के मुकदमे में कहा कि अलग-अलग नागरिक संहिता ठीक नहीं है।आलोक कुमार ने कहा कि जब देश में आपराधिक कानून एक हैं, भारतीय संविदा कानून (कॉन्ट्रैक्ट लॉ) एक हैं, वाणिज्यिक कानून एक हैं, कारोबार से जुड़े कानून एक हैं, तब परिवार संबंधी कानून अलग-अलग क्यों हैं? उन्होंने कहा कि 1400 साल पुरानी स्थिति अलग थी और उस समय की परिस्थिति में बहु विवाह की प्रथा आई, वह तब की जरूरत हो सकती है। ‘‘समय बदला है। नारी की गरिमा और समानता की बात सभी को स्वीकार करनी चाहिए। वह (नारी) पुरुष की सम्पत्ति नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे में किसी तरह के भेदभाव को समान नागरिक संहिता से दूर किया जा सकता है। आलोक कुमार ने कहा कि तलाक के नियम सभी के लिए एक से हों और केवल मौखिक कह देने से तलाक नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तलाक की स्थिति में गुजारा भत्ता की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा बच्चों की परवरिश की चिंता की जानी चाहिए। आलोक कुमार ने कहा कि एक समान कानून हमें 1400 साल पुरानी स्थिति से वर्तमान में लायेगा। उन्होंने कहा ‘‘ऐसी अपेक्षा की जाती है कि सभी धर्मों से अच्छी बातें ले कर एक ऐसा कानून बनेगा जो सभी के लिए जो अच्छा होगा।’’पीआईएल मैन की चुनौतीबहरहाल, ओवैसी जैसे लोग जो समान नागरिक संहिता को लेकर भ्रम फैला रहे हैं उन्हें आड़े हाथ लेते हुए उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने इस मुद्दे पर बहस की खुली चुनौती दी है। उनका यह भी कहना है कि संविधान अर्थात सम विधान अर्थात समान विधान। उपाध्याय ने समान नागरिक संहिता की बजाय भारतीय नागरिक संहिता नाम भी सुझाया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से विवाह की न्यूनतम उम्र समान होगी, तलाक का आधार एक समान होगा, तलाक की प्रक्रिया एक समान होगी, गुजारा भत्ता का अधिकार सबको मिलेगा, बच्चा गोद लेने का अधिकार सबको मिलेगा, भरण-पोषण का अधिकार भी सबको मिलेगा और विरासत-वसीयत का अधिकार भी सबको मिलेगा।