पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने मंगलवार को कहा कि वह राज्य सरकार के साथ हमेशा सहयोग करेंगे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह उसके ‘‘हर एक काम में’’ सहयोग करेंगे।
बोस ने ‘पीटीआई-भाषा’ से विशेष साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में राज्य में सामने रहने वाला चेहरा मुख्यमंत्री का होता है, मनोनीत राज्यपाल का नहीं, लेकिन हर एक को अपनी-अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ के संवैधानिक प्रावधानों के दायरे में रहना होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री राज्यपाल के सम्मानित संवैधानिक सहयोगी हैं। लोकतंत्र में सरकार का सामने का चेहरा निर्वाचित मुख्यमंत्री होता है, मनोनीत राज्यपाल का नहीं।’’
बोस ने कहा, ‘‘राज्य सरकार जो (काम) करती है, मैं उसमें राज्यपाल के तौर पर सहयोग करूंगा, लेकिन मैं उसके ‘हर एक काम में’ सहयोग नहीं करूंगा।’’
राज्यपाल ने कहा, ‘‘प्रत्येक को अपने दायरे में रहकर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। हर किसी की एक ‘लक्ष्मण रेखा’ है। इस ‘लक्ष्मण रेखा’ को पार न करें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि किसी दूसरे के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ खींचने की कोशिश न करें। यही सहकारी संघवाद की भावना है।’’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को आरोप लगाया था कि राज्यपाल बोस संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन कर रहे हैं और वह उनकी ‘‘असंवैधानिक गतिविधियों’’ का समर्थन नहीं करतीं।
मुख्यमंत्री ममता ने राज्यपाल का जिक्र करते हुए कहा था, ‘‘निर्वाचित सरकार के साथ पंगा नहीं लें। मैं पद का सम्मान करती हूं, लेकिन एक व्यक्ति के तौर पर उनका सम्मान नहीं कर सकती, क्योंकि वह संविधान का अपमान करते हैं। वह अपने मित्रों को विश्वविद्यालयों के कुलपति नियुक्त कर रहे हैं।’’
राज्यपाल बोस ने कहा कि विश्वविद्यालय संबंधी कानूनों में यह नहीं कहा गया है कि कुलपतियों को आवश्यक रूप से शिक्षाविद ही होना चाहिए।
बोस ने कहा कि उन्होंने एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश और एक सेवानिवृत्त आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी को उनकी योग्यता के कारण कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया है और ‘‘किसी को भी अंतरिम कुलपति के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।’’
पश्चिम बंगाल के राज्य-संचालित या राज्य-समर्थित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल ने कर्नाटक के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस के मुखर्जी को रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एम वहाब को आलिया विश्वविद्यालय का अंतरिम कुलपति नियुक्त किया है।
राज्यपाल ने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा है कि कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल को राज्य सरकार से परामर्श लेने की आवश्यकता है, लेकिन उसने यह भी कहा है कि उन्हें (राज्यपाल को) कुलपतियों की नियुक्ति करते समय राज्य सरकार की सहमति की जरूरत नहीं है।’’
बोस ने कहा, ‘‘प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों, आईआईएम (भारतीय प्रबंधन संस्थान) और आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) में शीर्ष शैक्षणिक पदों पर पश्चिम बंगाल के कई ऐसे लोग हैं जिनकी राज्य की सेवा करने में रुचि है। हम गौर करेंगे कि हम राज्य को एक बड़ा शैक्षणिक केंद्र कैसे बना सकते हैं।’’
उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा की घटनाओं के अलावा यादवपुर विश्वविद्यालय के एक छात्र की कथित तौर पर रैगिंग के कारण हुई मौत के हालिया मामले की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, ‘‘हमारे विश्वविद्यालयों का अत्यधिक राजनीतिकरण हो गया है। राजनीतिक दलों के लिए विश्वविद्यालयों को नियंत्रित करने की इच्छा रखना स्वाभाविक है लेकिन हमें हमारी शैक्षणिक प्रणाली की कुछ शुचिता बनाए रखने की जरूरत है।’’
उन्होंने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहा कि कोई भी पार्टी नहीं चाहेगी कि ‘‘विश्वविद्यालयों पर किसी अन्य पार्टी का नियंत्रण हो, लेकिन मेरा मानना है कि वे भी विश्वविद्यालयों के लिए वास्तविक स्वायत्तता पर आपत्ति नहीं जताएंगे’’।
बोस ने कहा,‘‘ विश्वविद्यालय भी गुंडागर्दी के शिकार हैं जिसे बाहरी लोग परिसर में लाए हैं, इसलिए बाहरी तत्वों की मौजूदगी पर नजर रखने की आवश्यकता है।’’
यादवपुर विश्वविद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्र की कथित रैगिंग और उसके बाद हुई उसकी मौत के मामले में इस प्रमुख संस्थान के कई पूर्व छात्र शामिल पाए गए हैं। ये पूर्व छात्र परिसर के छात्रावास में रह रहे थे, जबकि छात्रावास में रहने की उनकी निर्धारित अवधि समाप्त हो चुकी है।
बोस ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालय छात्रों के हैं। इनके परिसर नयी पीढ़ी के लिए हैं। विश्वविद्यालय के प्रत्येक शिक्षक, प्रत्येक पदाधिकारी को यह एहसास होना चाहिए कि उनका पहला कर्तव्य छात्र के प्रति, दूसरा कर्तव्य छात्र के प्रति और तीसरा कर्तव्य भी छात्र के प्रति है।’’
उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘‘हमें ऐसी भूमि का सपना दिया, जहां मन भय से मुक्त हो और सिर ऊंचा हो, जहां ज्ञान मुक्त हो।’’
बोस ने कहा, ‘‘लेकिन परिसरों में बढ़ती हिंसा और उपद्रवियों की मौजूदगी के कारण हमारे विश्वविद्यालय ऐसे स्थान बन गए हैं जहां मन भय से भरा और सिर झुका हुआ होता है।’’
उन्होंने कहा कि इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है।