नीतीश क्यों लगाए हैं समय से पहले जल्द चुनाव की रट, विपक्ष और BJP में किसका नफा, किसका नुकसान?

ओमप्रकाश अश्क, पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को दूसरी बार कहा कि लोकसभा चुनाव समय से पहले हो सकते हैं। डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि ऐसा संभव है। बार-बार नीतीश कुमार के मुंह से यह बात क्यों निकल रही है। या तो उनका कोई बहुत ही करीब का आदमी बीजेपी के नीति निर्धारक लोगों में शामिल है, जो बीजेपी की योजनाएं उन तक पहुंचा रहा है या फिर नीतीश कुमार खुद बीजेपी के संपर्क में हैं, जिससे बीजेपी के भीतरखाने की बातें उन्हें मालूम हैं। हालांकि पहली बार जब उन्होंने यह बात कही तो उनका मकसद राज्य सरकार की योजनाओं को समय से पहले पूरा करने के लिए अफसरों पर दबाव बनाना था। उन्होंने कहा भी था कि कब चुनाव हो जाए, कहना मुश्किल है। चुनाव में जाएंगे तो लोग काम के बारे में पूछेंगे। इसलिए समय से पहले काम पूरा कीजिए। लोगों को बताइए कि कितना काम राज्य सरकार ने किया है।समय से पहले चुनाव की बात क्यों?दरअसल, नीतीश कुमार के ऐसा कहने के तीन प्रमुख कारण दिखते हैं। पहला कारण कि विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़ने के बाबत फैसले लेने में देरी न करे। पटना में 23 जून को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में बड़े मुद्दों पर फैसला हो जाए। फैसले लेने में देरी विपक्षी एकता को नुकसान पहुंचा सकती है। दूसरा कारण, राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे कामों में तेजी लाने के ख्याल से उन्होंने यह बात कही हो। तीसरा कि कहीं लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी में तो नीतीश नहीं हैं ? चूंकि बिहार में विधानसभा का चुनाव 2025 में होना है। नीतीश कुमार चाहेंगे कि विपक्षी एकता बनने की स्थिति में विधानसभा का चुनाव कराने पर अधिक फायदा हो सकता है।नीतीश कुमार का जनाधार भी घटा हैनीतीश कुमार को अच्छी तरह पता है कि उनके जनाधार में गिरावट आई है। उनका लव-कुश समीकरण छिन्न-भिन्न हुआ है तो मुसलमानों का जेडीयू से अधिक आरजेडी पर भरोसा है। बीजेपी ने दलित नेताओं की गोलबंदी कर दी है। यानी नीतीश कुमार के जेडीयू को दो लोकसभा चुनावों में जो औसतन 18-19 प्रतिशत वोट मिले थे, अब उसमें कमी आई है। इसलिए किसी गठबंधन या दल के साथ की अभी सर्वाधिक जरूरत नीतीश को ही है, जो विपक्षी एकता के बहाने पूरी की जा सकती है।समय से पहले चुनाव क्यों नहीं ?लोकसभा का चुनाव बीजेपी समय से पहले नहीं कराएगी। इस बात के संकेत इससे भी मिलते हैं कि दिसंबर तक अयोध्या में राम मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी को 22 जनवरी को राम लला के पूजन का न्यौता भी भेज दिया गया है। राम मंदिर बनाने का बीजेपी का पुराना संकल्प है। बीजेपी भी जानती है कि राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर ही उसकी सीटें लोकसभा में दो से बढ़ कर 303 तक पहुंची हैं। दूसरा कारण यह कि केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता (Common Civil Code) के लिए जो रायशुमारी का प्रयास शुरू किया है, उसका लाभ भी बीजेपी लेना चाहेगी। सच कहें तो बीजेपी की कोशिश होगी कि इसी बहाने वोटर दो खेमों में बंट जाएं और हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की उसकी मुराद पूरी हो जाए। यह काम जल्दबाजी का नहीं है। इसमें कम से कम 6-8 महीने का समय तो लगेगा ही। रायशुमारी से ही पता चल जाएगा कि भाजपा अपने मकसद में कामयाब होती दिख रही है या नहीं। अटल जी ने पहले कराया था चुनावअटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते विकास के जो काम किये थे, उससे उन्हें भ्रम हुआ कि समय से पहले चुनाव करा लिए जाएं तो फायदा होगा। परिणाम फायदे के बजाय नुकसान के रूप में सामने आया। इसलिए भी यह मानना उचित नहीं होगा कि पुराने अनुभवों को भुला कर बीजेपी कराने का जोखिम मोल लेगी। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि समय से पहले 2004 का लोकसभा चुनाव कराने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को पछताना पड़ा था। दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है। इसलिए भाजपा शायद ही समय से पहले चुनाव कराने का जोखिम मोल ले। नीतीश कुमार ने समय से पहले लोकसभा चुनाव की संभावना यदि जाहिर की है तो इसके दूसरे कारण भी तो हो सकते हैं। नीतीश की चेतावनी सामयिक हैसुरेंद्र किशोर कहते हैं- मेरी समझ से यह चेतावनी उन नेताओं के लिए अधिक है, जो 23 जून को पटना में जुट रहे हैं। उनसे नीतीश जी की इस बयान के जरिए यह अघोषित अपील है कि वे आपसी चुनावी एकता करने में जल्दीबाजी करें। नीतीश की यह बात मान कर प्रतिपक्षी दल चलें कि कभी भी चुनाव हो जाएगा तो उन्हें आपसी तालमेल कर लेने की जल्दबाजी होगी। पर, चुनाव पहले नहीं होने वाला हैसुरेंद्र किशोर ऐसा कहते समय दो बातों का उल्लेख करते हैं। पहला यह कि साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी समय से पहले चुनाव करवा दिया था। परिणाम जो हुआ, वह सभी जानते हैं ? दूध का जला हुआ, मट्ठा भी फूंक कर पीता है। बीजेपी शायद ही उस अनुभव को भुला पाएगी। दूसरा, धारा-370, राम मंदिर, तीन तलाक के बाद मोदी सरकार की नजर समान नागरिक संहिता पर है। समान नागरिक संहिता पर उठने वाले भीषण विवाद से अगले एक साल में देश पूरी तरह गरमा जाएगा। लोहा जब गरम हो, तभी मोदी हथौड़ा चलाते हैं। उधर कर्नाटक की नवगठित कांग्रेसी सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून को रद करने जा रही है। उस कानून को पिछली भाजपा की राज्य सरकार ने बनाया था। रद हो जाने से पीएफआई का काम आसान हो जाएगा। पीएफआई का लक्ष्य हथियारों के बल पर भारत को 2047 तक इस्लामिक देश बनाना है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पीएफआई ने ही कांग्रेस को अधिकतर मुस्लिम वोट दिलवा कर सत्ता दिलवाई। पीएफआई वाला हथियार भी तब भाजपा के पास होगा। इस तरह के अन्य हथियार भी होंगे। साल 2024 से पहले 8 दलों के 32 नेताओं को जेल भिजवाने की योजना है, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं। इसलिए कहीं से ऐसा नहीं लगता कि लोकसभा के चुनाव समय से पहले होंगे।