नीतीश कुमार क्यों पड़ गए अकेले? खुद के बनाए कानून पर ये कैसी जिद

पटना: शराबबंदी को अपने तरीके से समझने और मुआवजा को लेकर जिद्द बांधकर नीतीश कुमार राजनीति के जिस ध्रुव पर चले गए हैं, वहां अचानक से अकेले दिखाई पड़ने लगे। विपक्ष ने तो उन्हें इस मामले पर जबरदस्त पटखनी दी है, हद तो ये हो गई कि महागंठबंधन में शामिल लगभग सभी दल परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विरोध में उतर आए हैं। बीजेपी तो नीतीश कुमार के इस वक्तव्य के विरुद्ध सदन से सड़क तक उतर गई, जिसमें नीतीश कुमार ने साफ कहा ‘जो पिएगा वो मरेगा ही, उसे मुआवजा क्या”। यहां तक कि भाकपा माले ने तो मुआवजे के मामले में विरोध प्रदर्शन पर उतर नीतीश कुमार को अलग-थलग कर दिया। उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस मामले पर साफ कटते दिखते हुए यही कहते हैं कि मंत्री ने तो जवाब दे ही दिया।

क्यों घिर गए नीतीश कुमार

सबसे पहले तो नीतीश कुमार ने जो शराबबंदी की नीति बनाई उस नीति में ही प्रावधान है कि कोई शराब के कारण मरता है तो उसके परिवार को आर्थिक सहायता के रूप में चार लाख रुपये दिया जाएगा। सच तो ये है कि यह मुआवजा कोई सरकार के खजाने पर बोझ नहीं है, बल्कि प्रावधान यह है कि यह राशि उन शराब कारोबारियों से लेनी है, जिसने जहरीली शराब बनाई। अब यह प्रशासन का मसला है कि जहरीली शराब कांड के उदभेदन में वह शराब माफिया तक कैसे पहुंचती है। इतना ही नहीं शराबबंदी के बाद गोपालगंज के खजूरबन्नी में मरे 19 लोगों के परिवार को मुआवजा की राशि मिली। तब मृतक के परिवार के नाम चार लाख के एफडी करा दिए गए और उन परिवारों को 9 सौ रुपए प्रति माह मिलते है। अब मुआवजा नहीं देने की जिद्द ने राजनीति के उस किनारे ला पटका है जहां से उनके साथ खड़ा कोई दल नहीं दिख रहा है। यहां तक की आरजेडी व जेडीयू के भीतर कई माननीय विधायक मुआवजा के पक्ष में हैं।

शराबबंदी क्यों असफल साबित हुई?

दरअसल, 2005 में सरकार में जब एनडीए आई तो शराब को घर घर तक पहुंचा दिया। और अचानक से 2016 में शराबबंदी की नीति लाई। शराब का बहुत आसानी से पंचायत लेवल पर मिलना ने शराब पीने वालों की एक बड़ी फौज खड़ी कर दी है। अब शराबबंदी तो कर दी परंतु प्रशासनिक स्तर पर वह सपोर्ट नहीं मिल पाया, जिसकी इस सरकार को उम्मीद थी। नतीजतन, शराब की सीमावर्ती राज्यों से तस्करी या फिर नकली शराब बनाने वाले माफियाओं की अचानक बढ़ोतरी हो गई। आप शराबबंदी तो कर दिए पर शराब पीने वालों की संख्या कम नहीं कर सके। अब इन तक शराब पहुंचाना बिहार में एक नया व्यवसाय बन गया। बीजेपी का यह आरोप है कि लगभग प्रति माह 13 हजार करोड़ के मुनाफा का यह वह व्यापार हो गया जो थानों के रहम-करम पर चलने लगा है। और यह पैसा ऊपर तक के अधिकारियों को जाता है आर ये पॉलिटिकल फंडिंग भी करते हैं।

बिहार के गली गली में यह चर्चा होती है कि शराबबंदी और बालू खनन पर लगी रोक के बाद उन थानों का बोली में प्रभाव बढ़ गया और ज्यादा पैसा देकर उन थानों में पोस्टिंग कराई जाने लगी। ऐसे अफसर अगर थाने में हैं तो उनसे शराबबंदी की मुहिम को सफल बनाने ही बेमानी है।

क्या कह गए कुशवाहा?

जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने तो बिहार में जहरीली शराब से मौत के मामले में विपक्ष की ओर से मुआवजे मांगने को बिल्कुल फिजूल करार दिया कि अब कोई व्यक्ति कानून तोड़ेगा, तो सरकार उसे मुआवजा क्यों देगी? उदहारण के लिए कोई व्यक्ति बम बनाने लगे और उस क्रम में हुए विस्फोट में किसी की मौत हो जाए तो क्या उसे मुआवजा देना चाहिए। विपक्ष की यह कहीं से भी उचित नहीं है।

क्या कहते हैं सुशील मोदी

पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने कहा कि जहरीली शराब से मरने वालों के गरीब आश्रितों को मुआवजा देने से बचने के लिए सरकार ने पहले नियम को लेकर झूठ बोला और अब बिहार में जहरीली शराब से मरने वालों के बारे में भी झूठे आंकड़े पेश कर चेहरा चमका रही है।

सुशील मोदी ने कहा कि जब सरकार ने कुबूल कर लिया कि जहरीली शराब से मौत के मामले में मुआवजा देने का प्रावधान है, तब अब पीड़ित परिवारों को पहले मुआवजा मिलना चाहिए। नियमानुसार मुआवजा राशि की वसूली जहरीली शराब बनाने-बेचने वालों से बाद में भी हो सकती है। उन्होंने कहा कि गरीबों मुआवजा देने को नीतीश कुमार अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनायें।

वाम दल क्या चाहते हैं?

भाकपा माले का मानना है कि मुआवजा देना न्यायपूर्ण कदम है। अगियांव के विधायक मनोज मंजिल और विधायक वीरेन्द्र गुप्ता समेत माले के अन्य विधायक ने मांग कि है कि शराब से मौत मामले में परिजनों को मुआवजा मिलना चाहिए। यह मांग माले ने उसके बाद की जब सदन में मुख्यमंत्री ने लेफ्ट नेताओं से सहयोग की अपील की। छपरा के मांझी से सीपीआई के विधायक सत्येन्द्र यादव ने सदन में पीड़ित परिजनों को मुआवजा देने की मांग की थी। इस पर नीतीश कुमार काफी बिफरे पड़े। यह पहला मौका था कि महागठबंधन के अन्य साथी उनके स्टेप से असहमति जता रहे थे।

क्या कहते है मांझी?

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम माझी ने भी मुआवजा की नीति का समर्थन करते हुए कहा कि पीड़ितों को मुआवजा मिलना चाहिए। ऐसा इसलिए कि उनका परिवार असमर्थ हो गया। बच्चों को पढ़ना लिखना एक जरूरी कार्य हो गया है जो अब तक इनके पिता के रहते हुआ करते थे।

क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ?

संविधान विशेषज्ञ डॉ. आलोक पांडे का कहना है आर्टिकल 36 में अनुच्छेद 47 में यह प्रावधान है कि किसी के जीवन स्तर को सुधारने के लिए पीड़ित परिवार को मदद किया जा सकता है। किसी भी वेलफेयर स्टेट की नीति के यह विरुद्ध है कि जिनका परिवार अभिभावक विहीन हो गया है उसे मुआवजा न दिया जाए। और जब खजूबन्ना में जहरीली शराब से हुई मौत की पीड़िता अनिल राम की पत्नी के साथ अन्य को 4 लाख का मुआवजा मिल सकता है तो फिर छपरा के पीड़ितों को क्यों नहीं? वैसे भी यह मुआवजा जहरीली शराब के कारोबारियों को आर्थिक दंड लगा कर देना होता है।