इंटरव्यू में अमृतपाल ने बताया कैसे बदल गई उसकी जिंदगी? क्यों गया भिंडरावाले के गांव?

चंडीगढ़: अमृतपाल सिंह। यह नाम इन दिनों अमृतसर से लेकर दिल्ली तक चर्चा में है। दुबई में ट्रांसपोर्ट का कारोबार संभाल रहे अमृतपाल की जिंदगी में कैसे नया मोड़ आया? भारतीय संविधान के बारे में अमृतपाल क्या सोचता है? दुबई से लौटने के बाद जरनैल सिंह भिंडरावाले के गांव रोडे में वह क्यों गया? खालिस्तान और पंजाबियत के बारे में उसकी क्या सोच है? ऐसे कई सवालों के जवाब वारिस पंजाब दे के अध्यक्ष अमृतपाल सिंह ने दिए हैं।

एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उसने बताया है कि कैसे कॉलेज लाइफ में मन नहीं लगने के बाद वह दुबई गया और फिर एक घटना ने उसकी जिंदगी बदल डाली। ‘केश का कत्ल करवा दिया था मैंने’अमृतपाल करीब 11 साल पहले दुबई गया था। उस वक्त तक वो एक आम यूथ की तरह जिंदगी गुजार रहा था। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में अमृतपाल ने बताया, ‘2012 में जब मैं दुबई गया था तो वहां पर मेरा फैमिली बिजनस है ट्रांसपोर्टेशन का। पंजाब में एजुकेशन में था लेकिन मुझे बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। कॉलेज एजुकेशन के दौरान इंजिनियरिंग की पढ़ाई के लिए मैं गया था। घरवालों ने सोचा कि अपना वहां पर बिजनस है तो क्यों नहीं वहां पर जाकर कुछ सीखना चाहिए। अपना बिजनस मैनेज कैसे करते हैं। तो मैं वहां पर चला गया। फरवरी 2012 में मैं दुबई गया। मूल रूप से बचपन में मैं सिख ही था। मतलब केश रखे हुए थे। जब मैं कॉलेज जाने लगा तब पंजाब में एक आबोहवा ऐसी थी कि हमारे अंदर एक इंफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स था। बहुत से यूथ में था कि ये लुक ऐसा होता है, वैसा होता है। केश का कत्ल करवा दिया था मैंने। जब मैं बाहर गया तो मैंने देखा कि पंजाब में जो कुछ हो रहा है हमारे साथ वह कई बार वहां पर रहकर नजर नहीं आता है। बचपन में धर्म में रुचि थी थोड़ा जवानी में दूर गए लेकिन फिर वापस आ गए।’

इस इंटरव्यू के दौरान वारिस पंजाब दे चीफ ने बताया कि कैसे उसकी जिंदगी बदल गई। अमृतपाल ने इसका जिक्र करते हुए कहा, ‘जब 2015 में बरगाड़ी की घटना हुई तो यह मेरा जीवन बदल देने जैसा था। उसके बाद मेरी जिंदगी का तरीका बदल गया। वहां पर बेअदबी हुई, उसके बाद रिऐक्शन हुआ और वहां पर गोलियां चलीं। एक घटनाओं का सिलसिला चल पड़ा और गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी भी लगातार होती रही। सिख धर्म में बेअदबी सबसे बड़ा अपराध माना जाता है। उसने मेरा अकेले का नहीं बहुत से यूथ का लाइफ बदल दिया। 21 अगस्त 2022 को मैं भारत आया और फिर आनंदपुर साहिब में 25 सितंबर को अमृत छका। बड़ा इवेंट था, हजारों लोगों ने मेरे साथ अमृत छका। मैं बाहर था जब मुझे दीप सिद्धू के जत्थेबंदी की जिम्मेदारी मिली। सिख धर्म में एक परंपरा है दस्तारबंदी। यानी किसी दूसरे को जिम्मेदारी देना। हिंदुओं में तिलक प्रथा भी एक चीज होती है। दस्तारबंदी जब करनी थी तो हम एक जगह तलाश कर रहे थे। हमने कोशिश की कि दीप सिद्धू के गांव में हो, लेकिन कुछ तकनीकी वजहों से वह नहीं हो पाई। फिर हमने फैसला किया कि रोडे गांव में यह होनी चाहिए। संत भिंडरावाले के गांव में। वहां पर पहलेमैं एक बार गया था, जब दस्तारबंदी की बात हुई तो दो दिन पहले चला गया। लोगों ने वहां पर बहुत प्रेम दिया।’

वारिस पंजाब दे के पिछले चीफ दीप सिद्धू तो खालिस्तान की बात नहीं करते थे, फिर कहां से खालिस्तान की बातें आने लगीं? इस सवाल पर अमृतपाल ने इंटरव्यू में कहा, ‘दीप सिद्धू ने दिल्ली के किसान आंदोलन के मंच पर खालिस्तान का नारा लगाया था। 26 जनवरी 2022 को लाल किले की घटना होती है, उससे पहले 25 जनवरी को दीप का एक वीडियो भी आया था। आप स्टेट (व्यवस्था) को चैलेंज क्यों देते हैं, इस पर अमृतपाल ने कहा, ‘बात यह नहीं कि वहां पर क्या हुआ। बात यह है कि जस्टिस हुआ कि नहीं हुआ। हमारा एक निर्दोष बंदा जेल में था। हम पर्याप्त सबूत पेश कर चुके थे। ये चीजें राजनीति से प्रेरित हैं जो नहीं होना चाहिए थीं। किसी एक के बयान के आधार पर आप पब्लिक फिगर पर केस डाल देंगे। मैं तो यहीं कहूंगा कि पहले आप जांच कीजिए। अजनाला थाने पर हजारों लोग थे। हमारे जितने समर्थक थे, उसमें से दस प्रतिशत वहां पहुंचे थे। हमारे साथ दो नाइंसाफी हुई। पहले तो एफआईआर, फिर हमारे साथी को ऐसे उठाना। आठ दिन का उसका बच्चा है छोटा सा। दो-तीन सौ पुलिस वाले जाते हैं और उसे घर से उठाते हैं। उसको टॉर्चर किया जाता है। जो कुछ हुआ उसमें हाइलाइट हुआ आठ सेकेंड का वीडियो दिखाया जा रहा है बैरिकेड उठाने का। थाने के अंदर जाकर भी बातचीत हुई। हमारे सैकड़ों लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया।’

आप भारतीय संविधान को मानते हैं या नहीं, इस सवाल पर अमृतपाल सिंह ने इंटरव्यू के दौरान जवाब दिया, ‘भारतीय संविधान मेरी पहचान में भरोसा करता है या नहीं करता है? भारतीय संविधान का अनुच्छेद-25 (बी) कहता है कि सिख धर्म हिंदू धर्म की एक शाखा है। गुरु गोविंद सिंह कहते हैं कि न हम हिंदू न मुसलमान। वो साफ कहते हैं कि हम हिंदू भी नहीं हैं और मुसलमान भी नहीं हैं। भारतीय संविधान मेरी पहचान को मानता ही नहीं है तो यह तो मेरा लोकतांत्रिक अधिकार भी हो सकता है कि मैं उसको मानूं या न मानूं। मैं भारतीय संविधान को तब मानना शुरू करूंगा, जब भारतीय संविधान मुझे मानना शुरू कर दे।’

खालिस्तान के मुद्दे पर अमृतपाल ने कहा कि यह मांग पहले दबी हुई थी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि खत्म हो गई। अमृतपाल ने इंटरव्यू में कहा, ‘मैं आपने आपको पंजाबी मानता हूं। पंजाबी मेरी नस्ल है और पंजाबी मेरी नैशनैलिटी भी हो सकती है। ट्रैवल डॉक्यूमेंट पर आप आएंगे। पंजाब तो पाकिस्तान में भी है। पंजाब को कैप्चर कर लिया गया दोनों तरफ से। पंजाब एक आइडेंटिटी है। पंजाबी लैंग्वेज भी है, पंजाबी कल्चर भी है और पंजाबी फूड भी है। 1947 में बंटवारा हुआ। सिखों ने तय किया भारत में आना। उसके बाद भाषा के आधार पर राज्य बने। गुजरात बना महाराष्ट्र बना। 20 साल हमारे लोगों ने पंजाबी सूबा मूवमेंट चलाया। स्टेट को तीन हिस्सों में फिर डिवाइड किया गया। कैपिटल को विवादित रख दिया गया- चंडीगढ़। यूनियन टेरिटरी बना दिया उसको। सिख हिंदुस्तान में गुलाम हैं। खालिस्तान की मांग पंजाब में दबी हुई थी। जमीन के नीचे लावा हो, ऊपर तो सरफेस (सतह) नॉर्मल लगती है। हम इस भ्रम में रहें कि कुछ नहीं हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है 2006 में कि खालिस्तान के बारे में साहित्य लिखना या कॉन्फ्रेंस करना कोई जुर्म नहीं है। सिमरनजीत सिंह मान एक सांसद हैं, जिनकी पार्टी है शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर), जो खालिस्तान के नाम पर इलेक्शन लड़ती है, वो एमपी बन गए। तो फिर क्राइम कैसे हो गया। उनको लोगों ने चुनकर भेजा है।’