को जगाने का प्रयास बीजेपी की बढ़ती सीमा को कम करने के उद्देश्य से अचानक नहीं कर डाला है। यह मनसा दूर की कोड़ी की तरह बिहार के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार की राजनीति के साथ-साथ चल रहा था। लेकिन एनडीए की राजनीति में किसी विशेष प्रयास की ज़रूरत इसलिए नहीं पड़ी कि नरेंद्र मोदी के प्रभाव में जरासंघ को अपना पूर्वज मानने वाला चंद्रवंशी समाज पहले से ही था। लेकिन जबसे महागठबंधन के साथ राजनीतिक भागीदारी करने को नीतीश जी ने बीजेपी का दामन छोड़ा तबसे इस वोट को अपनी तरफ मोड़ने के लिए प्रयास शुरू कर दिया। सो, इतिहास के इस पात्र नीतीश कुमार ने वर्तमान से जोड़ने की वजह वह भी अनुठे अंदाज में बना ली।
कैसे जरा राक्षसी ने जरासंघ को किया जीवितजरासंघ के बारे में यह कहा जाता है कि राजा वृहदर्थ को पुत्र नहीं होता था। राजा वृहदर्थ ने यह गुहार एक ऋषि के सामने लगाई। ऋषि ने उन्हें एक फल देकर यह कहते विदा किया कि रानी को खिला देना। राजा ने यह फल काट कर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया। नतीजतन जब दोनों पत्नियों को जो बच्चा हुआ वह मिरर इमेज की तरह बंटा हुआ मिला। घबराकर दोनों रानियों ने इस टुकड़े को बाहर फेंक दिया। उस समय उस रास्ते से जरा नाम की एक राक्षसी गुजर रही थी जिसने माया से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ा और जुड़ते ही वह दो टुकड़ा मिलकर एक मुकव्वल बच्चे की तरह होकर रोने लगा। रोने की आवाज सुनकर रानी बाहर निकली और उस बच्चे को गोद ले लिया जिसका नाम जरासंघ रखा गया।
इस बहाने अतिपिछड़ा वोट बैंक है निशाना
दरअसल, जरासंघ के स्मारक बनाने के पीछे नीतीश कुमार का निशाना नरेंद्र मोदी के अतिपिछड़ा वोट बैंक, विशेषकर चंद्रबंशी (कहार) को महागठबंधन की राजनीत से जोड़ना है। एक तो अतिपिछड़ा में कई छोटी छोटी जाति हैं। इन छोटी छोटी जातियों को जोड़कर एनडीए की राजनीति का मुकाबला करना उनका मकसद है। जरासंध के उदाहरण के साथ बतौर रणनीतिकार नीतीश कुमार इन छोटी-छोटी को जोड़कर एक बड़ा वोट बैंक चंद्रवंशी के नेतृत्व में आगामी किसी भी चुनाव को प्रभावित करने के लिए तैयार कर रहे हैं। अब उन्हें इस प्रयास में कितनी सफलता मिलती है यह तो आगामी चुनाव में साबित होगा। परंतु बीजेपी नीतिश कुमार के इस प्रयास से परेशान तो है।
मध्य बिहार की राजनीति में हो सकते हैं निर्णायक
दरअसल, मध्य बिहार की राजनीत में अतिपिछड़ा में शामिल विशेषकर चंद्रवंशी ( कहार) का अपना एक दखलंदाजी है। इसमें गया, नालंदा, औरंगाबाद, नवादा, अरवल जिला के साथ राज्य के लगभग शहरी क्षेत्र में इनका दबदबा है। इसके अलावा शाहबाद का भी बड़ा हिस्सा निर्णायक की भूमिका में रहा है। लेकिन नीतीश कुमार संघ की उत्पत्ति की तरह कहार के नेतृत्व में तमाम अतिपिछड़ा जातियों को जरासंघ के बहाने जोड़ने का एक महती प्रयास की शुरुआत जरासंध का स्मारक बनाकर करना चाहते हैं।
यह इसलिए भी कि इसका तात्कालिक लाभ नगर निकाय के चुनाव में तो होगा ही। आगामी 2024 के लोक सभा चुनाव और 2025 के विधान सभा चुनाव में भी लाभ लेने के लिए इस मुहिम को नीतीश कुमार के नेतृत्व में धार देने की शुरुआत इसी बहने करने जा रहे हैं।
क्या कहती है बीजेपी
बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि जो जरासंध लगातार यदुवंशियों से लड़ते रहे हैं और जो यदुवंशी के प्रभाव में उनका राजपाट गया आज महागठबंधन की सरकार में रहकर यदुवंशी और चंद्रबंशी को एक साथ लाने का प्रयास सफल नहीं होगा। राज्य की जनता जानती है कि वोट की महत्ता को देखते नीतीश कुमार इस बहाने लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। पर अतिपिछड़ा उनके बहकावे में नहीं आने जा रहा है। सबका साथ, सबका विकास के तहत बीजेपी ने अतिपिछड़ों के लिए जो किया है वह उन्हें याद है।
पटेल करते हैं कि जरासंध के बहाने सनातन संस्कृति के करीब आए तो। धीरे धीरे अब वह भी संतान संस्कृति के प्रभाव में आते जायेंगे तो यह बीजेपी के साथ रहने के वजह से हो रहा है। परंतु राज्य में एक नई राजनीत का जो संकेत दे रहे हैं उसे मोकामा विधान सभा उप चुनाव में नकार दिया है और कुढ़नी में भी नकारने जा रही है इसलिए आनन फानन में जरा संघ का मुद्दाउठा कर कुढ़नी के वोटर को भी प्रभावित करना चाहते हैं। परंतु राज्य की जनता झांसे में नहीं आयेगी।