दिल्ली MCD चुनाव में क्यों हारी BJP? 5 पॉइंट में समझें पूरा समीकरण

नई दिल्ली: MCD में भी केजरीवाल… आम आदमी पार्टी का यह नारा चल निकला। एमसीडी में बीजेपी के 15 साल के सफर पर AAP ने ब्रेक लगा दिया है। दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी की यह जीत कई मायनों में खास है। एक ओर AAP जीत का जश्न मना रही है और पार्टी के सभी बड़े नेता यह कहकर बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं कि केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की पूरी फौज उतारने के बाद भी वह हार गई। निगम में भ्रष्टाचार और सफाई के मुद्दे पर लगातार आम आदमी पार्टी बीजेपी पर हमालवर थी साथ ही उसकी ओर से यह कहा जा रहा था कि दिल्ली विधानसभा के बाद निगम में भी उसकी सत्ता होगी तो काम बेहतर तरीके से होगा। विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी के लिए राहत की बात थी कि एमसीडी में उसकी सत्ता है लेकिन अब यहां से भी वह दूर हो गई है। एमसीडी में बीजेपी की हार के पीछे कई कारण हैं लेकिन उनमें कई अहम जिसको समझने की जरूरत है।

सवाल बड़ा… बीजेपी की ओर से चेहरा कौन

एमसीडी चुनाव में भले ही दिल्ली में बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्रियों समेत सांसदों की टीम प्रचार में उतरी लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं समेत मतदाताओं के बीच एक बड़ा सवाल यह था कि आखिर दिल्ली में बीजेपी की अगुवाई कौन कर रहा है। आदेश गुप्ता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भले ही हैं लेकिन उनकी लोकप्रियता उतनी अधिक नहीं है कि वह ब्रांड केजरीवाल का मुकाबला कर सकें। दिल्ली में लंबे समय से बीजेपी को ऐसे नेता की तलाश है जो दिल्ली में पार्टी की अगुवाई कर सके। पूर्व के विधानसभा चुनाव में भी यह देखने को मिला जब पार्टी इस असमंजस की स्थिति में थी कि वह किस चेहरे के साथ आगे बढ़े।
दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर बीजेपी के ही सांसद हैं। मनोज तिवारी, गौतम गंभीर, हर्ष वर्धन, मीनाक्षी लेखी, रमेश विधूड़ी, प्रवेश वर्मा। समय-समय पर यह केजरीवाल सरकार की अलग-अलग मुद्दों पर आलोचना करने के लिए सामने आते हैं लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से किसी एक नेता को आगे नहीं बढ़ाया गया जिसके चेहरे पर पार्टी आगे बढ़ सके।

समय-समय पर पार्टी की ओर से कुछ प्रयोग किए गए लेकिन वह कारगर नहीं रहा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की ओर से यह सवाल उठाया गया कि सीएम का चेहरा बीजेपी की ओर से कौन। यह सवाल बार-बार पूछे जाने के बाद आखिरी वक्त में किरण बेदी का नाम आगे बढ़ा दिया गया। पार्टी का यह फैसला कारगर नहीं साबित हुआ। इसके साथ ही पार्टी कभी बिना चेहरे के ही चुनाव में आगे गई। दिल्ली में बीजेपी काफी समय से निगम के नेताओं को प्रमोट करती रही है लेकिन उसका उसे बड़े लेवल पर फायदा नहीं मिला है। इस चुनाव में कहीं न कहीं उसे इसका भी खामियाजा उठाना पड़ा है।

निगम में रहते बीजेपी की ओर से वार पर नहीं किया गया ‘प्रहार’

दिल्ली नगर निगम में पिछले 15 साल से बीजेपी सत्ता पर काबिज थी। 15 साल का कार्यकाल कोई छोटा नहीं होता है। इसी दौरान दिल्ली में कांग्रेस की शीला सरकार भी रही और उसके बाद केजरीवाल सरकार भी। आम आदमी पार्टी ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में आई। आम आदमी पार्टी की जीत बड़ी थी और बीजेपी, कांग्रेस दोनों के सामने बड़ी चुनौती। कांग्रेस जहां शून्य पर पहुंच गई वहीं बीजेपी दहाई के आंकड़े से भी पीछे पिछले दोनों चुनावों में रह गई। भारतीय जनता पार्टी के सामने दिल्ली में चुनौती बड़ी थी और उसके पास दिल्ली एमसीडी थी जिसके जरिए वह आगे बढ़ सकती थी। एक ओर जहां आम आदमी पार्टी जहां निगम में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाती रही लेकिन एमसीडी की तरफ से कोई ऐसी योजना या कोई ऐसा काम नहीं सामने आया जिससे कि वह दिल्ली की जनता के बीच अपनी बात मजबूती से रख सकती थी। दिल्ली नगर में बीजेपी सत्ता में थी यहां से वह यह संदेश दे सकती थी कि वह भी दिल्ली में बेहतर कर सकती है और यह केजरीवाल के सामने चुनौती होती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। निगम के काम पर बार-बार उंगली उठी लेकिन उसका कोई माकूल जवाब निगम की ओर से नहीं दिया जा सका।

सफाई का मुद्दा जिसका हल नहीं खोजा गया

में इस बार आम आदमी पार्टी ने सफाई का मुद्दा मजबूती के साथ उठाया। पार्टी के नेताओं ने वॉर्ड-वॉर्ड जाकर यह बताया कि यदि निगम में उनको मौका मिलेगा तो इससे दिल्लीवालों को इस दिक्कत से निजात मिलेगी। एक ओर AAP इस मुद्दे पर बीजेपी पर हमलावर थी तो वहीं बीजेपी इस मुद्दे पर बैकफुट पर थी। बीजेपी को इस मुद्दे पर बैकफुट की बजाय फ्रंटफुट पर खेलने की जरूरत थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान की देशव्यापी शुरुआत की। इसकी तारीफ देश-विदेश में हुई। निगम पर बीजेपी का कब्जा था इस दिशा में निगम की ओर से सही काम किया जाता तो आज उसे बचाव की मुद्रा में नहीं आना पड़ता। आम आदमी पार्टी की ओर से लगातार यह कहा जाता रहा कि वह निगम को पैसा दे रही है लेकिन पैसे के दुरुपयोग हो रहा है और साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। निगम चुनाव में सफाई के अहम मुद्दा रहा जिस पर बीजेपी, आम आदमी पार्टी से पिछड़ती नजर आई।

एंटी इनकंबेंसी का चक्कर पड़ गया भारी

एंटी इनकंबेंसी, इस फैक्टर को नकारा नहीं जा सकता है। निगम में पिछले 15 साल से बीजेपी सत्ता में है और यह समय कम नहीं होता है। जाहिर सी बात इतने वर्षों से सत्ता में रहने पर लोगों की उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं। जिस प्रकार से दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार अरविंद केजरीवाल ने बदलाव की बात की और यह काम आया। ठीक उसी प्रकार इस बार भी आम आदमी पार्टी की ओर से बार-बार यह कहा गया कि निगम में बदलाव के बाद चीजें बदल सकती हैं। इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार, विधायक और दूसरे नेताओं की ओर से यह बार-बार इलाके में कहा गया कि वह कई सारी दिक्कतों को इसलिए दूर नहीं कर पाते क्योंकि निगम में बीजेपी की सत्ता है। यदि निगम में बीजेपी रहेगी तो दिक्कत दूर नहीं होगी। आम आदमी पार्टी के नेता काफी हद तक जनता के बीच अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे। दिल्ली के पिछले नगर निगम चुनाव को देखा जाए तो उस वक्त भी एंटी इनकंबेंसी का बड़ा खतरा था लेकिन पार्टी ने उस खतरे को भांपते हुए बड़ा फैसला किया। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने सभी मौजूदा पार्षदों के टिकट काट दिए और यह कारगर भी रहा। पार्टी वह चुनाव जीत गई लेकिन इस बार ऐसा कोई ऐसा फैसला नहीं हुआ। एंटी इनकंबेंसी के चलते भी पार्टी को नुकसान इस चुनाव में उठाना पड़ा है।

BJP के विधायक कम लेकिन सांसदों से बढ़ी दूरी

दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा में विधायकों की संख्या सिर्फ 8 है। ऐसी स्थिति में जब विधायक की संख्या जहां दस से भी कम हैं ऐसे में सांसदों की जिम्मेदारी कहीं अधिक बढ़ जाती है। दिल्ली की सातों सीट पर बीजेपी के ही सांसद हैं और इनमें कई बड़े चेहरे हैं। पार्टी कार्यकर्ता से लेकर आम जनता जहां विधायक उनकी पार्टी के हैं नहीं सांसदों से भी उनका जुड़ाव नहीं हो पाता है। पार्टी के जिस सांसद की ओर से लगातार इलाके में बेहतर कार्य किए गए और जनता से जुड़ाव रहा वहां पार्टी को फायदा हुआ। इसका सीधा उदाहरण गौतम गंभीर हैं। गौतम गंभीर के इलाके में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। गौतम गंभीर की ओर से इलाके में 1 रुपये में पेट भर खाना खिलाया जाता है और इसकी काफी चर्चा होती है। गौतम गंभीर इसके अलावा कई मौकों पर केजरीवाल सरकार पर हमलावर भी रहते हैं। पार्टी के विधायक न होने और सांसदों की दूरी की वजह से पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा।