बिहार की राजनीति के सबसे धुरंधर खिलाड़ी अपनी ही राजनीति से घिरे, आखिर ये प्लान किसका है?

पटना: इन दिनों बिहार की राजनीति में बिल्कुल घिरे हुए नजर आ रहे हैं, जिसकी वजह वह खुद भी हैं। उनके लिए गए फैसले ही उनके लिए समस्या बन रहे हैं। अब वह समाधान यात्रा पर निकले हैं। वहीं एक तरफ आरजेडी के विधायक और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मोर्चा खोला हुआ है। बीजेपी भी कोई मौका छोड़ने के मूड में नजर नहीं आती है। नीतीश कुमार ने बीजेपी की नाक के नीचे से सत्ता की कुर्सी खींच ली। यह कुर्सी भले अब आरजेडी के विधायकों में बांट दी हो लेकिन आरजेडी 2017 भूली नहीं है। भले तेजस्वी यादव बिहार के डिप्टी सीएम बन गए हो। वो बिहार की सत्ता का सुख भोग रहे हैं लेकिन आरजेडी के विधायक से लेकर कार्यकर्ता तक नीतीश कुमार के भरोसे से नहीं जुड़ पाए हैं। उन्हें नीतीश कुमार पर भरोसा तो बिल्कुल भी नहीं है लेकिन फिलहाल जो मिल रहा है उतना ही काफी मानकर सत्ता के साथ बने हुए हैं।

अब न घर के न घाट के, आश्रय केवल जनता के!

इस बार बीजेपी का दामन छोड़कर आरजेडी का दामन थामने की दो बार की राजनीति अब नीतीश कुमार पर ही भारी पड़ रही है। राजनीतिक गलियारों में बीजेपी का मन टटोलने के बाद यह कहा जा सकता है कि बीजेपी अब नीतीश कुमार से किसी कीमत पर समझौता नहीं करने वाली है। वजह साफ है, इस दल बदल और उलटफेर को जनता भी देख रही है। लिहाजा जनता का भरोसा भी टूट चुका है। अभी हाल में हुए कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में जनता की नाराजगी साफ देखने को मिली। वहीं जमीनी स्तर पर यह भी जानकारी मिली कि यदि तेजस्वी यादव अकेले चुनाव लड़ते तो जनता उन्हें जीत दिला देती। लेकिन वहां कैंडिडेट नीतीश कुमार की पार्टी का था और कैंडिडेट के प्रति भी जनता की नाराजगी बहुत ज्यादा थी।

दरअसल बीजेपी का हाथ थामने से पहले 2017 में नीतीश कुमार ने आरजेडी का हाथ झटका था। इसके बाद नीतीश 2022 के 9 अगस्त को बीजेपी से हाथ छुड़ाकर आरजेडी की गोद में चले गए। जिसका नतीजा यह है कि अब बिहार की दोनों प्रमुख पार्टियों का भरोसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से टूट चुका है। बीजेपी से हाथ छुड़ाकर आरजेडी के साथ सरकार बनाने और फिर बीजेपी का हाथ झटक कर आरजेडी के गोद में बैठने का नतीजा है कि वह दोनों ही पार्टी का भरोसा खो चुके हैं।

ऐसे ही नहीं बोल रहे हैं सुधाकर सिंह

राजनीति के जानकारों की माने तो राजनीति में कोई भी चीज बगैर फायदे के नहीं होती है। हर कदम का राजनीतिक मतलब होता है। इसके दूरगामी परिणाम पहले से सुनिश्चित होते हैं। राजनीति के शतरंज में हर प्यादे का काम सुनिश्चित होता है। ऐसे में सुधाकर सिंह के मुखर तेवरों और तीखे हमलों को देखा जाए तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि सुधाकर सिंह ऐसे ही नहीं बोल रहे। दरअसल सुधाकर सिंह वो परफेक्ट प्यादे हैं जो बीजेपी में भी रह चुके हैं और नीतीश कुमार से पुरानी अदावत भी रखते हैं। ऐसे में आरजेडी के पास नीतीश कुमार को समझाने के लिए एक एक्सक्यूज जरूर है। आरजेडी यह कह कर खुद को बचा सकती है कि सुधाकर सिंह और नीतीश कुमार की नाराजगी पुरानी है लिहाजा सुधाकर सिंह व्यक्तिगत रूप से नीतीश कुमार पर हमले कर रहे हैं।

तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने के परफेक्ट प्यादे सुधाकर!

बिहार की राजनीति को माइक्रोस्कोप से देखा जाए तो यह बात यहां समझ में आ जाएगी कि नीतीश कुमार के पास फिलहाल कोई चारा नहीं है। जिसका नतीजा है कि वह आरजेडी के विधायक और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह से लगभग 1 महीने से हर रोज कुछ ना कुछ सुनने के बावजूद भी आरजेडी पर सुधाकर सिंह का मुंह बंद करवाने के लिए दबाव ठीक से नहीं बना पा रहे हैं। सुधाकर सिंह ने इन 1 महीनों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए ना जाने क्या-क्या शब्द कहे हैं। कभी उन्हें हिटलर कहा, कभी भिखमांगा, कभी बेशर्म तो कभीसत्ता का लालची। यह बात तो हम उनके कठोर शब्दों की कर रहे हैं। लेकिन इससे पहले भी वह लगातार नीतीश कुमार को हर मुद्दे पर घेरते हैं, चाहे वह शराबबंदी हो चाहे विमान खरीद का फैसला। चाहे सदन में नीतीश कुमार के गुस्से और शब्दों के प्रयोग पर उनके बयान। दरअसल, 2010 नीतीश कुमार ने उन्हें विधानसभा चुनाव हरवाया। 2005 बीजेपी से उनका टिकट नहीं मिला जिसके पीछे नीतीश कुमार की मर्जी थी। आरजेडी के टिकट पर वह 2020 का चुनाव लड़े और जीत भी गए। परिस्थितियां ऐसी बनी कि नीतीश कुमार को आरजेडी के साथ आना पड़ा। सुधाकर सिंह कृषि मंत्री बन गए तब कृषि मंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव नीतीश कुमार की तरफ से ही दिया गया। सुधाकर सिंह का दावा है कि सारी घटना के पीछे नीतीश कुमार का हाथ है। लिहाजा नीतीश कुमार के खिलाफ आरजेडी के पास अब सबसे घातक हथियार सुधाकर सिंह ही हैं। जिसके पास वाजिब वजह भी है। लेकिन इसमें मकसद आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का पूरा हो सकता है।

मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहा है यह खेल!

इस बात में कोई शक नहीं कि बिहार की राजनीति के सबसे बड़े धुरंधर नीतीश कुमार हैं। जिनके पास सबसे ज्यादा समय तक बिहार की गद्दी पर बने रहने का रिकॉर्ड है। और सबसे ज्यादा बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का भी रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है। लेकिन बिहार का विकास पुरुष और राजनीति का सबसे बड़ा खिलाड़ी भी अब तीन तरफ से घिर चुका है। राजनीति के जानकारों की माने तो इस मौके का फायदा तेजस्वी यादव और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव उठाने की फिराक में है। सुधाकर सिंह के जरिए दबाव इतना बनाना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी घोषित करें। इस राजनीतिक आकलन पर बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी भी दावा कर चुके हैं। बीजेपी की रणनीति को देखा जाए तो 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव की पूरी रणनीति तैयार है। यह बात तो तय है कि नीतीश कुमार और बिहार के अगले मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे तो निश्चित तौर पर जनता की नाराजगी और दलबदल की राजनीति उन पर ही भारी पड़ने वाली है। जिसका नतीजा तेजस्वी यादव को भी भुगतना पड़ेगा। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि ऐसे में 2025 का विधानसभा चुनाव भी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंचा पाएगा। यह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी बखूबी जानते और समझते हैं। खुद तेजस्वी यादव इस बात का आकलन कर चुनाव के दौरान देख चुके हैं। अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि बिहार की राजनीति का सबसे तेजतर्रार नेता लालू और तेजस्वी की रणनीति के आगे हार मानता है या नहीं।

रिपोर्ट- सुमन केशव सिंह