बॉटनी का प्रोफेसर ऐसे बना बंगाल का ‘चाणक्य’, कौन हैं बीजेपी के सिपहसालार सुकांत मजूमदार?

कोलकाता: ‘ममता बनर्जी सभी के लिए नहीं, सिर्फ एक धर्म की मुख्यमंत्री हैं। तृणमूल कांग्रेस पुलिस को अपने कैडर की तरह इस्तेमाल कर रही है। अगर मेरे जाने से खतरा है तो मंत्री अरुप रॉय के जाने से कैसे नहीं हुआ? क्या उनके पास अतिरिक्त संवैधानिक अधिकार हैं?’ ये बेबाक बयान हैं पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के। 30 मार्च को हावड़ा में रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हिंसा भड़की। इसके बाद छह दिन से बंगाल में हालात तनावपूर्ण हैं। हावड़ा से लेकर हुगली तक सियासी घमासान मचा हुआ है। हुगली में सुकांत मजूमदार धरना देने वाले थे लेकिन उससे पहले ही मंच को हटा दिया गया। बंगाल बीजेपी चीफ लगातार ममता बनर्जी सरकार और तृणमूल कांग्रेस को निशाने पर ले रहे हैं। फायरब्रांड दिलीप घोष को हटाकर बीजेपी ने सुकांत मजूमदार को बंगाल बीजेपी की कमान सौंपी थी। आइए जानते हैं और क्या है उनकी सियासत? 2021 के चुनाव में हार के बाद सुकांत बने थे अध्यक्ष43 साल के सुकांत मजूमदार बंगाल बीजेपी के 10वें अध्यक्ष हैं। 20 सितंबर 2021 को सुकांत ने दिलीप घोष की जगह बंगाल बीजेपी का प्रभार अपने हाथों में लिया। उस वक्त बीजेपी को 2021 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त मिले चंद महीने बीते थे। बीजेपी के सामने तृणमूल कांग्रेस की उग्र राजनीति का जवाब देने के लिए पूरे बंगाल में धारदार अभियान की जरूरत थी। ऐसे में सुकांत मजूमदार के सामने बड़ी चुनौती थी। दिलीप घोष के उग्र तेवरों के उलट सुकांत मजूमदार की गिनती बंगाल बीजेपी के शांत नेताओं में होती रही है। आरएसएस के वह सक्रिय कार्यकर्ता भी रह चुके हैं। बॉटनी के प्रोफेसर भी हैं सुकांत मजूमदार2019 के लोकसभा चुनाव में सुकांत मजूमदार ने बालूरघाट सीट से चुनाव जीता था। टीएमसी की अर्पिता घोष को सुकांत ने 33,293 वोटों से शिकस्त दी थी। सुकांत मजूमदार को 5,39,317 और अर्पिता घोष को 5,06,024 वोट हासिल हुए थे। सिलीगुड़ी की नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी से उन्होंने बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) में पीएचडी की है। उनके पास बीएड की भी डिग्री है। साथ ही सुकांत गौर बंग यूनिवर्सिटी में बॉटनी के प्रोफेसर हैं। नबन्ना मार्च में दिखी सुकांत की कुशल रणनीति पिछले साल 13 सितंबर को नबन्ना मार्च के दौरान जिस तरह बीजेपी ने ममता सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, उससे सुकांत मजूमदार की सांगठनिक क्षमता साबित हुई। विधानसभा चुनाव में हार के बाद से सुस्त पड़ी बीजेपी में इस मार्च ने एक नई जान फूंक दी। ममता बनर्जी की सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ बंगाल में इस मार्च का ऐलान किया गया था। राज्य के कोने-कोने से बीजेपी कार्यकर्ता इसमें पहुंचे। एक तय रणनीति के साथ हर इलाके में कार्यकर्ताओं को जुटाया गया और फिर कोलकाता कूच के लिए कहा गया। इस अभियान की कामयाबी ने सुकांत का कद और बढ़ा दिया। ‘सुकांत-सुवेंदु की जोड़ी नई संभावनाएं जगा रही है’बंगाल की राजनीति पर पकड़ रखने वाले पत्रकार वीके शर्मा कहते हैं, ‘दिलीप घोष का अपनी भाषा पर नियंत्रण नहीं था, लेकिन सुकांत मजूमदार की पहचान एक पढ़े-लिखे बंगाली के रूप में है। बंगाल में शिक्षकों का सम्मान बहुत ज्यादा किया जाता रहा है। उन्हें मास्टर मोशाय के रूप में इज्जत दी जाती है। टीएमसी में जिस तरह सौगत रॉय की छवि है, उसी तरह सुकांत मजूमदार का भी सम्मान होता है। छात्र राजनीति के दौर से सुकांत का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव रहा। गौर बंग यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के दौरान उनकी सियासत में रुचि बढ़ी। अर्पिता घोष जैसी सेलिब्रिटी को उन्होंने बालूरघाट सीट से हराया। उनके नेतृत्व में पिछले साल नबन्ना घेराव में भी बीजेपी का अच्छा रेस्पॉन्स रहा। दिलीप घोष जैसे तेवरों की बजाए वह एक तार्किक बातें करने वाले लीडर हैं। जबसे उन्हें सुवेंदु अधिकारी का साथ मिला, बंगाल में बीजेपी ने पकड़ फिर से मजबूत की है। सुकांत और सुवेंदु की जोड़ी बंगाल में नई संभावनाएं जगा रही है।’ सुकांत मजूमदार को 2 साल पहले क्यों मिली कमान? सुकांत मजूमदार को जब बंगाल बीजेपी की जिम्मेदारी मिली उस वक्त उनकी उम्र 41 साल थी। वह सबसे कम उम्र के प्रदेश अध्यक्ष हैं। दरअसल 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को काफी उम्मीदें थीं। दिलीप घोष के नेतृत्व में पार्टी मैदान में उतरी लेकिन टीएमसी के 213 के मुकाबले उसे सिर्फ 77 सीटें ही मिल सकीं। हालांकि मुख्य विपक्षी पार्टी बनना भी बीजेपी के लिए बड़ी उपलब्धि थी। विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी के कई विधायकों ने पालाबदल कर लिया और टीएमसी में चले गए। दिलीप घोष ने बंगाल में बीजेपी के विस्तार में अहम भूमिका अदा की लेकिन इस दौर में पार्टी को गुटबाजी भी झेलनी पड़ी। विधानसभा चुनाव से पहले मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी के बीजेपी में आने के बाद बंगाल बीजेपी में कई खेमे बन रहे थे। मुकुल रॉय और बाबुल सुप्रियो चुनाव के बाद टीएमसी में चले गए। बीजेपी से एक के बाद एक नेता छोड़कर जाने लगे। ऐसे में पार्टी का बैलेंस बनाने के लिए सुकांत मजूमदार को मौका दिया गया। बीजेपी के स्थापना दिवस तक हिंसा की साजिश: सुकांत2021 विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रैलियों के मंच पर उनकी मौजूदगी दिखती थी। आरएसएस का पुराना बैकग्राउंड और हाईकमान की गुडबुक में होने की वजह से सुकांत मजूमदार को पार्टी ने बंगाल में बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। रामनवमी पर पहले हावड़ा और अब हुगली में हिंसा के बाद सुकांत मजूमदार लगातार ममता सरकार को घेर रहे हैं। टीएमसी की सरकार से वह तीखे सवाल कर रहे हैं। हुगली हिंसा के बाद सुकांत ने कहा,’उनको मालूम है कि 6 अप्रैल को बीजेपी का स्थापना दिवस है। ममता बनर्जी की सरकार चाहती है कि बीजेपी इस कार्यक्रम को भव्य तरीके से न आयोजित कर पाए। इसलिए बंगाल में लगातार हमले हो रहे हैं।’ बीजेपी के मिशन बंगाल के सपने को जमीन पर उतारने के लिए सुकांत मजूमदार सबसे बड़े सिपहसालार हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में पिछले प्रदर्शन को बरकरार रखना भी उनके लिए चैलेंज है।