
आप और असंतुष्टों से वोटिंग घटी
गुजराती न्यूज पेपर सौराष्ट्र हेडलाइन के चीफ एडीटर
जगदीश मेहता कहते हैं कि आम आदमी पार्टी पहले जितनी सक्रिय थी, उनती अंत में नहीं दिखी। उसका प्रचार आखिर में आकर थाेड़ा फीका पड़ गया। दूसरी तरफ सत्तापक्ष के काफी नेता उतने सक्रिय नहीं दिखे, जितने कि वे सक्रिय होते थे। इन चीजों का असर भी मतदान पर पड़ा। मेहता कहते हैं कि इस मतदान को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है, क्योंकि तीनों पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं। बीजेपी का कहना है कि जो वोटिंग हुई है उसमें पेज कमेटी की अहम भूमिका है। कांग्रेस का कहना है कि एंटी इनकमबेंसी के वोट पड़े हैं। तो वहीं अरविंद केजरीवाल भी ट्वीट कर करते हैं कि कमाल हो गया है। मेहता मानते हैं कि बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं ने वोटिंग के प्रेरित नहीं किया। इसका असर माना जा सकता है।
कौन ज्यादा वोट डलवा पाया?
स्वतंत्र पत्रकार हिमांशु भायाणी कहते हैं कि गुजरात में इस बार ज्यादा वोटिंग की उम्मीद थी, क्योंकि गुजरात में इस बार 13 फीसदी मतदाता बढ़े थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भायाणी कहते हैं कि यह देखना दिलचस्प होगा कि जिन 63 फीसदी लोगों ने मतदान किया। उनमें सत्तारूढ़ पक्ष के समर्थक वोटर अधिक थे या फिर परिवर्तन के लिए वोट करने वाले अधिक रहे। क्या बीजेपी अपने वोटर को मोबालाइज कर पाई? यह काफी अहम है। भायाणी कहते हैं कि आठ दिसंबर को नतीजे दिलचस्प हो सकते हैं। तो वहीं वरिष्ठ पत्रकार
दीपल त्रिवेदी कहती हैं कि चुनाव में उत्साह नहीं दिखा। कम मतदान के पीछे की सबसे बड़ी वजह नीरसता हो सकती है। इसी के चलते वोट डालने नहीं निकले। यह निष्क्रियता सभी स्तर पर रही। इसका नुकसान किसको ज्यादा होगा, यह देखने वाली बात होगी।
अनदेखी के चलते कम पड़े वोट
अहमदाबाद बेस्ड वरिष्ठ पत्रकार
दिलीप गोहिल कहते हैं वोटिंग कम होने के पीछे निष्क्रियता और अदंरूनी कारण जिम्मेदार हैं। जिन्हें टिकट नहीं मिला वे निष्क्रिय हो गए इसका असर वोटिंग पड़ा। गोहिल कहते हैं कि आप वोटिंग को नहीं बढ़ा सकती थी। वह तो फ्लोटिंग वोटर्स को लुभा रही थी। वोटिंग बढ़ाने की क्षमता बीजेपी और कांग्रेस के पास थी। गोहिल कहते हैं कि कम वोटिंग प्रतिशत का असर जरूर दिखेगा। जीत का मार्जिन जरूर घटेगा। मेहता कहते हैं कि इन चुनावों में कार्यकर्ताओं की अनदेखी भी सामने आई, जबकि ये कार्यकर्ता ही वोट डलवाते हैं तो ऐसे में कुछ स्पष्टता नहीं है, यह तय है सत्ताधारी बीजेपी जिसके पास वोटर को बाहर लाने की व्यवस्था है उसकी अपील के बाद अगर मतदान घटा है तो अंदरुनी कारण जिम्मेदार हो सकते हैं।
19 जिलों में कहां कितनी वोटिंग?
पहले चरण में आने वाले कच्छ जिले में 59.80, सुरेंद्र नगर में 62.46, मोरबी में 69.95, राजकोट में 60.45, जामनगर में 58.42, देवभूमि द्वारका में 61.71, पोरबंदर में 59.51, जूनागढ़ में 59.52, गिर सोमनाथ में 65.93, अमरेली में 57.59, भावनगर में 60.82, बोटाद में 57.58, नर्मदा में 78.24, भरूच में 66.31, सूरत में 62.27, तापी में 76.91, डांग में 67.33, नवसारी में 71.06, वलसाड में 69.40 फीसदी वोट दर्ज की गई।
वोटिंग और सीटों का कनेक्शन?
2017 के चुनावों में पहले चरण में 67.2 प्रतिशत वोट पड़े थे तो वहीं दूसरे चरण को मिलाकर वोटिंग का औसत 69.01 रहा था। तब भी 2012 के मुकाबले 3.01 फीसदी कम वोट पड़े थे। आमने सामने के मुकाबले में सत्तारूढ़ बीजेपी की 16 सीटें घटी थी और पहली पार्टी सिर्फ 99 सीटें जीत पाई थी। 2012 की बात करें तो 72.02 फीसदी वोट पड़े थे। इन चुनावों में बीजेपी की 2 सीटें कम हुई थी और पार्टी 117 से 115 पर आ गई थी। कांग्रेस की दो सीटें बढ़ी थीं। 2007 के चुनाव में भी बीजेपी को नुकसान हुआ था, हालांकि तब भी वोटिंग कम रही थी और पूरे प्रदेश में 60 फीसदी के नीचे मतदान हुआ था। केवल 59.77 फीसदी वोट पड़े थे।
2002 में बढ़ी थीं सीटें
गुजरात दंगों के आठ महीने पहले चुनाव में बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ था। इन चुनावों में वोटिंग प्रतिशत 1998 के मुकाबले बढ़ा था और 61.54 फीसदी मतदान हुआ था। तो बीजेपी को 127 सीटें हासिल हुई थीं। यह बीजेपी का गुजरात में अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन है। तो वहीं कांग्रेस को दो सीटें घट गई थी और वह 53 से 51 पर आ गई थी। बीजेपी ने 12 सीटें ज्यादा जीती थीं।