नई दिल्ली: शिवसेना के विभाजन से महाराष्ट्र में पैदा हुए राजनीतिक संकट से जुड़ी याचिकाओं पर आज से सुप्रीम कोर्ट सुनवाई शुरू करेगा। इसमें दो गुट शामिल हैं। एक खेमा उद्धव ठाकरे का है। दूसरा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का। दोनों की ओर से दायर याचिकाओं के बैच की सुनवाई को 14 फरवरी के लिए स्थगित कर दिया गया था। पांच जजों की पीठ इसकी सुनवाई करेगी। इनमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ सहित जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत सबसे पहले दलीलें सुनकर यह तय करेगी कि सुनवाई सात जजों की पीठ को भेजें या फिर इसकी सुनवाई पांच जजों की पीठ करे। सुप्रीम कोर्ट में उद्धव गुट की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए थे। उन्होंने कहा था कि वह नबाम रेबिया जजमेंट केस में दलील पेश करेंगे। उन्होंने गुहार लगाई थी कि मामले को सात जजों की बेंच को रेफर किया जाना चाहिए। इसके पहले भी सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा था कि मामले को सात जजों को रेफर किया जाना चाहिए। नबाम रेबिया केस में क्या आया था फैसला? 2016 में पांच जजों की संविधान पीठ ने नबाम रेबिया मामले पर फैसला दिया था। उसमें उसने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं, यदि स्पीकर को हटाने की पूर्व सूचना सदन में लंबित है। दूसरे शब्दों में कहें तो स्पीकर तब अयोग्यता की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ा सकता है जब स्पीकर को हटाने के लिए कोई प्रस्ताव पेंडिंग हो। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह पांच जजों की बेंच तय करेगी कि मामले को क्या सात जजों को भेजा जाना चाहिए? पूरे मामले में अब तक क्या हुआ? इसके पहले महाराष्ट्र सियासी संकट से उपजे सवालों पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर किया था। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमण की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने 23 अगस्त 2022 को इस संबंध में अपना फैसला सुनाया था। बेंच ने तब कहा था कि संवैधानिक बेंच जरूरी मुद्दे को तय करेगा कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का अधिकार क्या है। खासकर तब जब उनके खिलाफ कार्रवाई लंबित हो। पिछले साल शिवसेना विधायक शिंदे और 39 अन्य विधायकों ने पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी। इसके बाद राज्य में ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी। इसमें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल थीं। इसके बाद ठाकरे के नेतृत्व में एक गुट और शिंदे की अगुआई में दूसरा खेमा बन गया।