यूक्रेन के साथ जारी जंग के दौरान यूरोप ने जिस तरह से दोहरा चरित्र दिखाया, उस पर एक बार फिर जयशंकर ने जमकर हमला बोला है। एक इंटरव्यू में जयशंकर ने बताया कि कैसे भारत की तुलना में यूरोप ने रूस से छह गुना ज्यादा ऊर्जा का आयात किया और कैसे अपने फैसले को सही ठहराया है। इससे पहले भी जयशंकर ने तेल आयात के मसले पर यूरोप को जमकर धोया है।
अपनी सुविधा देखता यूरोप जयशंकर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि फरवरी 2022 से यूरोप ने अपने आयात को कम किया है लेकिन अपनी सुविधा के लिहाज से। जयशंकर ने कहा कि अगर 60,000 यूरो वाली प्रति व्यक्ति आय वाली अर्थव्यवस्था पर वह इतना परेशान है तो फिर भारत की आबादी तो दो हजार डॉलर ही कमा रही है। उस आबादी को भी ऊर्जा चाहिए। तेल की कीमतें ज्यादा हो गई हैं। ऐसे में भारत की प्राथमिकताएं भी अलग हैं। यूरोप को दो हजार डॉलर वाले प्रति व्यक्ति आय वाले समाज से रुकने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
इसके अलावा यूरोप मिडिल ईस्ट की तरफ रुख कर रहा है। वह तेल का उत्पादन अपने मिडिल ईस्ट से अपनी तरफ कर रहा है और तेल की कीमतों को बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रहा है। जयशंकर ने कहा कि यूरोप की वजह से बाजार पर दबाव बढ़ है। यह वह मसला है कि यूरोपियन नेताओं का समझना होगा।
इसलिए रूस की आलोचना नहीं
जयशंकर ने रूस की आलोचना पर भी सधा हुआ जवाब दिया। उनसे पूछा गया था कि क्या भारत सिर्फ इसलिए रूस की आलोचना नहीं करना चाहता है क्योंकि उसकी सेनाओं को वहां से हथियार मिलते हैं? इस पर भी जयशंकर ने यूरोप और अमेरिका को आईना दिखाया। उन्होंने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते ऐतिहासिक हैं। किसी को भी इन रिश्तों का इतिहास देखना होगा। यह रिश्ता उस समय शुरू हुआ था जब पश्चिमी लोकतांत्रिक देश, पाकिस्तान को हथियार देकर उसे ताकतवर बना रहे थे। वो भारत को रक्षात्मक कदम उठाने और हथियार खरीदने से रोक रहे थे।
क्यों शुरू हुआ रिश्ता
जयशंकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सोवियत संघ के साथ भारत का रिश्ता इसलिए शुरू हुआ क्योंकि पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों ने तय कर लिया था कि तानाशाह देश पाकिस्तान उनका साथी बनेगा। जयशंकर से पूछा गया था कि क्या रूस, भारत का दोस्त है? इस पर जयशंकर ने कहा कि यह शब्द काफी पश्चिमी है। भारत एक स्वतंत्र देश है और वह खुद को गठबंधन जैसे शब्दों से दूर रखता है। यह पश्चिमी देशों की तरफ से प्रयोग होने वाला शब्द है और हम इसमें यकीन नहीं रखते हैं।