नर्मदा के लिए जब वर्ल्ड बैंक ने नहीं दिया कर्ज, तो गुजरात के इस सीएम ने लोगों से जुटा लिए थे 450 करोड़ रुपये

अहमदाबाद: गुजरात के दो बार मुख्यमंत्री रहे () की आज 29वीं पुण्यतिथि है। उनके समर्थकों और चाहने वालों ने गांधीनगर स्थित नर्मदा घाट पर उन्हें याद किया और नया गुजरात बनाने की नींव डालने के लिए कृतज्ञता भी व्यक्त की। छोटे कद के चिमनभाई पटेल अपने अंदाज के अनूठे राजनेता था। वे विद्यार्थी जीवन में छात्र नेता रहे तो इसके बाद कई सालों तक उन्होंने जेवियर्स कॉलेज में बतौर प्रोफेसर अध्यापन भी किया। इसके बाद वे राजनीति में आए। 1967 में संखेड़ा से चुनाव जीतकर सबसे हितेंद्र देसाई की कैबिनेट में सबसे पहले मंत्री बने। इसके बाद 17 मार्च, 1972 को राज्य के पहले डिप्टी सीएम बने। मुख्यमंत्री के साथ काम करने का मौका मिला। सवा साल बाद उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। पहले कार्यकाल में वे 207 दिनों तक सीएम रहे। इसके उन्हें एक छात्रा आंदोलन के चलते पद छोड़ना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी 17 साल के लंबे अंतरात के बाद उन्होंने एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद पर वापसी की। जनता दल के नेता और कांग्रेस के समर्थन से वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए। चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) ने दूसरे कार्यकाल में नया गुजरात की आधारशिला रखी। गुजरात का समवेशी विकास कैसे हो? इसकी चिंता की। गुजरात में शिक्षा की चिंता और 1973 से लेकर 1994 तक बीच उन्होंने 150 से अधिक शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए। लेकिन दूसरे कार्यकाल में चिमनभाई पटेल गुजरात के कोने-कोने तक पानी पहुंचाना चाहते थे, सामाजिक कार्यकर्ताओं के आंदोलन करने के चलते जब ने सरदार सरोवर परियोजना के लिए स्वीकृत 450 करोड़ की धनराशि देने से मना कर दिया था, तो चिमनभाई पटेल झुके नहीं। उन्होंने वर्ल्ड बैंक से दो टूक कहा पिछली शर्तों पर अगर कर्ज देना है तो दीजिए, नहीं तो मैं लोगों से धनरशि इकट्‌ठा कर लूंगा। नर्मदे सर्वदे का सपना बुनने वाले चिमनभाई पटेल ऐसा ही किया। इतनी बड़ी धनराशि उन्होंने लोगों से जुटाकर अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया। इसके बाद उन्हें छोटे सरदार की उपाधि मिली। नहीं पूरा कर पाए कार्यकालगुजरात की दिनरात चिंता करने वाले चिमनभाई पटेल के आलोचक कुछ भी कहें लेकिन उन्होंने राज्य के हित के केंद्र से भी दो-दो हाथ किए। चाहे वह किसी भी सरकार क्यों न हो? बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने गुजरात के साथ अन्याय नहीं होने दिया। इंटरनेट पर मेधा पाटकर के उनकी एक तस्वीर मौजूद हैं। वे पाटकर से खूब मतभेद थे, लेकिन वे इसके बाद भी आलोचकों से मिलने में परहेज नहीं करते थे। आज नर्मदा का पानी अगर आज गुजरात के तमाम जिलों और गांवों में पहुंचा है तो पहला श्रेय चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) को है। गुजरात का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर जामनगर में रिफाइनरी की स्थापना उन्हीं की पहल पर हुई थी। 25 अक्तूबर, 1990 को मुख्यमंत्री की शपथ लेकर दूसरी पारी खेल में चिमनभाई पटेल दुर्भाग्य से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। 17 फरवरी, 1994 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। वे दूसरे कार्यकाल में 3 साल 350 दिन मुख्यमंत्री रहे, हालांकि इस कार्यकाल में उन्हीं अपने दूरदर्शी विजन को स्थापित कर दिया। संतुलित विकास चाहते थे चिमनभाई गुजरात के संखेड़ा से ताल्लुक रखने वाले चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) राज्य का संतुलित विकास चाहते थे। वे चाहते थे कि अगर बड़े उद्योग लगें तो छोटे उद्योगों की भी चिंता हो। किसानों को भी अच्छी आय हो। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए बहुत सारे ट्रस्ट को प्रोत्साहित करके शिक्षण संस्थान खुलवाए। इसका नतीजा यह हुआ कि जिस गुजरात के पास 1960 में गिने-चुने स्कूल कॉलेज थे। उनकी संख्या अच्छा खासी हो गई।कर्मचारी को बुलाया और मिले चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) के जीवन से वैसे तो कई वाकए जुड़े हुए है। एक बार वे नामांकन के लिए जा रहे थे तो उन्हें एक कर्मचारी रोक दिया और कहा कि अंदर दूसरे प्रत्याशी का नामांकन चल रहा है। चिमनभाई पटेल ने अपनी बारी का इंतजार किया और नामांकन किया। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्होंने उस कर्मचारी को बुलाया और उसके काम की तारीफ की। चिमनभाई पटेल के बेटे सिद्धार्थ पटेल अपने पिता को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने नया गुजरात की नींव रखी थी गुजरात ने जो तरक्की की है। उसमें उनका विजन शामिल है। पटेल कहते हैं कि 24 घंटे जनहित कि चिंता करते थे। छोटे से छोटे व्यक्ति से मिलना उसको सुनना उनकी आदत थी।