नई दिल्ली: आज पूरा देश सेना दिवस (Army Day 2025) मना रहा है। 15 जनवरी 1949 को (K.M. Cariappa) भारतीय थल सेना के कमांडर-इन-चीफ बने थे। इससे पहले कमान ब्रिटिश अफसरों के हाथ में ही थी। इसी वजह से हमारी सेना और पूरा देश हर साल 15 जनवरी (why is celebrated) को पूरे जोश से मनाता है। भारतीय सेना दिवस के इतिहास () की बात करें तो 1949 से पहले भारतीय सेना की कमान ब्रिटिश जनरल Sir Francis Robert Roy Bucher के हाथों में थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1947 में आजादी मिलने के बाद ही मंशा जाहिर कर दी थी कि अब सेना की कमान भी भारतीय अफसर के हाथों में होनी चाहिए। ब्रिटेन को यह संकेत साफ तौर पर दे दिए गए थे। इसी कड़ी में जनरल करियप्पा का नाम देश के पहले आर्मी चीफ के तौर पर तय हो गया। 15 जनवरी 1949 को उन्हें भारतीय सेना की कमान सौंप दी गई। बाद में उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया। इस खास दिन पर फील्ड मार्शल करियप्पा से जुड़ा एक किस्सा याद आता है, जब उन्होंने पाकिस्तान का मुंह बंद कर दिया था। जनरल करियप्पा के बेटे भी ने भी देश की सेवा जनरल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल के.सी.करियप्पा (K.C.Cariappa) भी देश सेवा में पीछे नहीं हटे। जनरल करियप्पा उन्हें ‘नंदा’ कहकर बुलाते थे। 1965 की जंग में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। आसमान से बम बरसाने वालों में के.सी.करियप्पा भी थे। वह 20 नंबर स्क्वाड्रन के स्क्वाड्रन लीडर थे। मगर दुश्मन के हमले में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और पाकिस्तान ने उन्हें कैदी बना लिया। ठीक वैसे ही जैसे कैप्टन अभिनंदन को 2019 में कैदी बना लिया गया था। एयर मार्शल करियप्पा उस घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं, ’22 सितंबर, 1965 को मुझे 4 विमानों का लीडर बनाकर भेजा गया। लेकिन 3 ही उड़ान भर सके। हमारा लक्ष्य लाहौर और दक्षिण पाकिस्तान में दुश्मन के कुछ ठिकाने थे। पाकिस्तानी सीमा में घुसते वक्त दो ही विमान रह गए थे। हमारा काम सिर्फ एक ही था दुश्मन को ढूंढना और उनके टैंक को नष्ट करना।’ उन्होंने अपनी एक किताब में जिक्र किया कि हमने जमकर बम बरसाए और लौटने लगे। इसी बीच हमें दुश्मन का एक और ठिकाना दिखा, उसने हमारे विमानों को लक्ष्य बनाकर हमला किया। हमने भी जवाबी अटैक किया। मगर इस दौरान उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में आग लग गई। उनके पास विमान से कूदने के अलावा कोई चारा नहीं था। पाकिस्तान ने बनाया युद्धबंदी एयर मार्शल के.सी. करियप्पा जैसे ही जमीन पर गिरे, उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने घेर लिया। उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि वह युद्धबंदी (Prisoner of War) बन चुके हैं। पाकिस्तानी सेना के आला अफसर यह बात जानते थे कि वह भारत के कमांडर-इन-चीफ रह चुके फील्ड मार्शल करियप्पा के बेटे हैं। जब के.सी. करियप्पा से पूछा गया कि उन्हें कुछ चाहिए तो उन्होंने बस यही कहा, ‘मुझे बाकी भारतीय कैदियों के पास जाना है।’ पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने किया जनरल करियप्पा से संपर्क तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे, जो आजादी से पहले जनरल करियप्पा के अंडर सेना में रह चुके थे। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान को जैसे ही इस बात का पता चला तो उन्होंने जनरल करियप्पा से संपर्क साधा। उन्होंने पाकिस्तानी उच्चायुक्त को भारत के पूर्व आर्मी चीफ को फोन करने को कहा। उन्होंने ऑफर दिया कि अगर वह चाहें तो पाकिस्तान उनके बेटे को रिहा कर सकता है। इस घटना का जिक्र करते हुए के.सी. करियप्पा ने अपनी किताब में लिखा है कि जिस वक्त वो जेल में बंद थे, तब अयूब खान की पत्नी और उनका बेटा उनसे मिलने आए थे। पूर्व आर्मी चीफ का जवाब सुन दंग रह गए पाकिस्तानी राष्ट्रपति भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति के ऑफर का जो जवाब दिया, उससे पूरा पाकिस्तान दंग रह गया। फील्ड मार्शल करियप्पा ने दो टूक कहा, ‘सभी हिंदुस्तानी कैदी मेरे बेटे हैं। रिहा करना है तो सभी को करो। तब तक सभी का अच्छे से ध्यान रखना।’ पाकिस्तान के राष्ट्रपति के लिए यह जवाब हैरान करने वाला था। वह कई महीनों तक पाकिस्तान में युद्धबंदी रहे। 22 जनवरी, 1966 को जाकर वह घर लौट सके।