अखिलेश के साथ क्या बिगड़ गई बात… BSP पर डोरे डालने को क्यों मजबूर हुई कांग्रेस

नई दिल्ली: पांच महीने पहले जब कर्नाटक में सत्तारूढ़ होने जा रही थी, तब शपथ ग्रहण समारोह के लिए उसने BSP चीफ मायावती को न्योता देने की जरूरत नहीं समझी। हालांकि अखिलेश यादव को इस समारोह में शामिल होने के लिए खासतौर से आमंत्रित किया गया। यह वही समय था, जब मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन आकार ले रहा था, जिसे बाद में I.N.D.I.A. नाम मिला। उस वक्त कांग्रेस को लग रहा था कि यूपी में BSP के मुकाबले समाजवादी पार्टी को साथ रखने में ज्यादा फायदा है। यूपी की पॉलिटिक्स में SP और BSP दो ऐसी तलवारें हैं, जो एक म्यान में नहीं रखी जा सकती हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव का जो अनुभव रहा है, या फिर 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के जो नतीजे रहे हैं, उसमें अखिलेश यादव BSP के साथ किसी भी तरह के गठबंधन को राजी नहीं दिखे हैं।BSP को साथ लेने का मतलब SP के छिटकने का खतरा था, सो कांग्रेस की प्राथमिकता SP थी। लेकिन मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्तों में ऐसी खटास आई है, जिसके बाद इस बात की संभावना न्यूनतम हो गई है कि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी I.N.D.I.A का हिस्सा भी रहेगी। अखिलेश यादव के जो हालिया बयान हैं, उन पर अगर ध्यान दें तो साफ है कि I.N.D.I.A उनकी कोई मजबूरी नहीं है। एक बात तो उन्होंने यह कही कि गठबंधन में वह सीट लेने वाले नहीं, बल्कि देने वाले हैं। दूसरी बात उन्होंने कही कि अगर गठबंधन होता भी है तो समाजवादी पार्टी यूपी की कम से कम 65 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। समाजवादी पार्टी के दूसरे नेताओं ने भी कांग्रेस के खिलाफ सार्वजनिक रूप से अपना मोर्चा खोल रखा है।BSP की जरूरतयहीं से कांग्रेस के लिए यूपी में BSP की जरूरत महसूस हुई है। पार्टी के कई नेता सार्वजनिक रूप से BSP को I.N.D.I.A. में शामिल किए जाने की पैरोकारी करने लगे हैं। BSP के खिलाफ एकतरफा ‘सीजफायर’ का एलान हो गया है। कांग्रेस का जो दलित संवाद कार्यक्रम चल रहा है, उसमें भी BSP और मायावती के खिलाफ कुछ भी बोलने से बचा जा रहा है, जबकि पार्टी नेतृत्व को पता है कि कांग्रेस के पाले में उसका परंपरागत वोट उसी सूरत में वापस आ सकता है, जब वह खुद को BSP के विकल्प के रूप में पेश कर सके। कांग्रेस को आज की तारीख में अगर BSP की जरूरत महसूस हो रही है तो उसकी दो वजहें हैं। पहली वजह तो यह है कि यूपी में उसे वजूद बचाए रखने के लिए किसी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन में जाना ही होगा। अकेले उसका इस प्रदेश में कोई वजूद नहीं है। अगर SP नहीं तो BSP ही सही। दूसरी, उसे लगता है कि अगर BSP को अपने पाले में कर लिया जाए या करने की कोशिश दिखाई जाए तो समाजवादी पार्टी को दबाव में रखा जा सकता है। कांग्रेस के कुछ नेताओं की यह सोच है कि BSP को I.N.D.I.A. में आने से रोकने के लिए अखिलेश यादव नरम पड़ सकते हैं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता ‘ऑफ द रेकॉर्ड’ बातचीत में स्वीकारते हैं कि मध्य प्रदेश को लेकर बात ज्यादा बिगड़ गई, वरना यूपी को लेकर समाजवादी पार्टी के साथ कोई बहुत बड़ा मसला नहीं था। समाजवादी पार्टी स्वाभाविक रूप से सीट शेयरिंग में ‘बिग ब्रो’ के रोल में रहती। अगर अखिलेश नरम पड़ते हैं और वह I.N.D.I.A. में रहना चाहते हैं, तो फिर से स्थितियां ठीक हो सकती हैं। कांग्रेस स्वाभाविक रूप से उन्हीं सीटों पर अपना दावा करेगी, जहां के समीकरण वह अपने अनुकूल पाती है। उधर, लालू यादव को लेकर भी कहा जा रहा है कि वह कांग्रेस पार्टी के कई राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में हैं और कांग्रेस-SP के रिश्तों को बहाल करवाना चाहते हैं।मायावती कितनी तैयार?समाजवादी पार्टी के साथ रिश्तों में आई खटास के बाद कांग्रेसी नेताओं की तरफ से BSP को I.N.D.I.A. में शामिल करने की पैरोकारी तो शुरू हुई है, लेकिन वह एकतरफा है। अभी तक BSP चीफ की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है, जिससे लगे कि वह I.N.D.I.A. में शामिल होना चाहती हैं। वह अपने इस बयान पर कायम हैं कि BSP न तो NDA का हिस्सा होगी, और न ही I.N.D.I.A का। कांग्रेस के खिलाफ उनके तीखे बयानों में भी कोई कमी नहीं आई है। 1996 विधानसभा चुनाव का उनका अनुभव भी बहुत अच्छा नहीं रहा है। तब कांग्रेस और BSP मिलकर चुनाव लड़ी थीं। BSP को एक भी सीट का फायदा नहीं हुआ लेकिन कांग्रेस की सीट और वोट प्रतिशत दोनों बढ़ गए थे।BSP ने उस समय आरोप लगाया था कि उसका वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफर हो गया था लेकिन कांग्रेस का वोट उसे ट्रांसफर नहीं हुआ। मायावती की कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर इसलिए भी कोई रुचि नहीं दिखाई पड़ती है क्योंकि कांग्रेस यह साबित नहीं कर पा रही है कि आज की तारीख में उसका बेस वोट है कौन सा? कांग्रेस यूपी में सिर्फ संभावनाओं पर अपना दावा पेश कर रही है।