अयोध्या: अयोध्या में शालिग्राम की शिलाएं () पहुंच गई हैं। ये नेपाल से भारत लाई गई हैं। इन्हें नेपाल की काली नदी या गंडकी से निकाला गया है। भगवान राम और माता जानकी की प्रतिमाएं इन्हीं शिलाओं से तैयार होंगी। ये नेपाल () के जनकपुर से चलकर बिहार के रास्ते अयोध्या पहुंची हैं। रास्ते भर श्रद्धालुओं ने इन्हें भगवान राम की तरह पूजा। मान्यता है कि भगवान राम () की श्यामल प्रतिमा नेपाल की इस नदी में पाए जाने वाले शालिग्राम पत्थर से ही बनाई जाती थी। शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप समझा जाता है और मर्यादापुरुषोत्तम को भगवान राम का अवतार इसलिए भी शालिग्राम पत्थर से भगवान राम की प्रतिमा बनाने की परंपरा रही है। लेकिन खास बात यह है कि यह पत्थर करीब 6 करोड़ साल पुराना है। इस तरह इस पत्थर के इतिहास को समझने के लिए हमें धरती का इतिहास समझना होगा। भूवैज्ञानिकों ने पृथ्वी के विकास को कई युगों में बांटा है। आज से छह करोड़ साल पहले डेवोनियन युग था। इसे मछलियों का युग कहा जाता था। उस समय समुद्र में विशाल मछलियां और दूसरे जीव होते थे। यह कितनी पुरानी बात है इसे इस चीज से समझा जा सकता है कि मौजूदा समय के आधुनिक मानव का इतिहास आज से महज 2 लाख साल पहले तक जाता है। मतलब इंसानों के पूर्वज आज से दो लाख साल पहले अफ्रीका में विकसित हो रहे थे। जीवाश्म यानि धरती के साइन बोर्ड यह भी रोचक तथ्य है कि भगवान राम की प्रतिमा के लिए जिस शालिग्राम पत्थर का इस्तेमाल होता है दरअसल वह एक समुद्री जीव का जीवाश्म है। जीवाश्म हमारी धरती की विकास यात्रा में साइन बोर्ड या टाइम कैप्सूल की तरह होते हैं। इनमें वे सारे संकेत छिपे होते हैं जिन्हें पढ़कर समझा जा सकता है कि करोड़ों-अरबों साल पहले धरती कैसी थी। सरल शब्दों में, जब युगों पहले जीवों का शरीर धूल, मिट्टी, लावा, गोंद, कीचड़ जैसे पदार्थों में फंसकर धीरे-धीरे पत्थर की तरह सख्त हो गया और अंतत: जीवाश्म बन गया। शालिग्राम पत्थर मौलस्क नाम के समुद्री जीवों के बाहरी खोल के जीवाश्म हैं। इन खोलों को वैज्ञानिक एमोनाइट शैल कहते हैं। आज जो शंख होते हैं वे भी मौलस्क प्रजाति के जीवों के ही बाहरी खोल हैं। करोड़ों साल पहले ये काफी विशाल आकार के होते थे।जहां हिमालय है वहां कभी समुद्र था अब सवाल उठता है कि ये केवल हिमलाय की गोद में बसे नेपाल की गंडकी नदी में ही क्यों मिलते हैं। असल में ये अनोखे पत्थर हिमालय के क्षेत्र में बहुत बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन हिमालय तो दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत है फिर यहां समुद्री जीवों के अवशेष मिलने का क्या मतलब? इसकी वजह यह है कि जहां आज हिमालय है वहां एक जमाने में विशाल समुद्र था। वैज्ञानिकों का कहना है कि आज से करीब 6 करोड़ साल पहले इंडियन टेक्टॉनिक प्लेट और यूरेशियन टेक्टॉनिक प्लेटों की आपसी टक्कर हुई उसी समय उनकी टक्कर से हिमालय की उत्पति हुई। चूंकि टक्कर जिस जगह हुई वहां विशाल टेथीस सागर था। हिमालय जिस मिट्टी, पत्थर और दूसरे मलबे से बना है वह कभी इसी सागर की तलहटी में था। उसी तलहटी में ये जीवाश्म थे जो हिमालय का हिस्सा बन गए और आज नदी की जलधारा में बहते हुए मिल जाते हैं। इसलिए कुल मिलाकर कह सकते हैं कि हमारी आस्था के बिंदु भगवान राम की प्रतिमा 6 करोड़ साल पहले के इस पत्थर से उकेरी जाएगी। वैसे साधु संत कहते भी हैं कि कण कण में भगवान विराजते हैं।