अंकारा: सोमवार छह फरवरी को तुर्की में इतना जोरदार भूकंप आया कि सबकुछ तबाह हो गया। इस भूकंप में तुर्की का एक शहर अंटाक्या भी सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। ये वह शहर है जिसका इतिहास सिकंदर महान से जुड़ा है। यह प्राचीन शहर पूरी तरह से मॉर्डन हो चुका था। मगर भूकंप के बाद स्ट्रीट लाइट से लेकर छोटे-छोटे पार्क, यहां तक कि किंडरगार्टन स्कूल भी अब तबाह हो चुके हैं। अंटाक्या तुर्की का वह शहर भी जहां पर सबसे पहले चर्च बनने शुरू हुए थे। जानिए सिकंदर महान के साथ इस शहर का वह रिश्ता जो अब सिर्फ किताबों में मिलेगा। सिकंदर के जनरल ने बसाया अंटाक्या, हाटे प्रांत की राजधानी है। हर बार भूकंप में इस शहर पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। लेकिन इस बार आए भूकंप ने इसे पूरी तरह से तबाह कर दिया। अब यहां के लोगों के पास न तो घर बचा है, न कोई संपत्ति, न कोई यादें और कुछ के लिए तो यहां भविष्य भी नहीं बचा है। तुर्की ट्रैवल प्लानर वेबसाइट की तरफ से जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक यह अंटाक्या 2000 साल पुराना शहर है। इस शहर को सिकंदर महान के उत्तराधिकारी सेल्यूकस I निकोटो ने इसका प्लान तैयार किया था। बाद में यह शहर मैसेडेनिया से करीब भारत तक फैलै सील्यूसिड साम्राज्य की राजधानी बना। इस वेबसाइट के मुताबिक सेल्यूकस जो सिकंदर के जनरल थे, उन्होंने उनके सपनों के आधार पर ही इसे बसाया था। इस शहर की योजना 300 ईसा पूर्व में बनाई गई थी। सिल्क रोड का अहम प्वाइंट इस शहर से जमकर व्यापार होता था और यह जगह सिल्क रोड का महत्वपूर्ण बिंदु थी। सिल्क रोड पुराने समय में मध्य एशिया का व्यापार मार्ग हुआ करता था। इस रास्ते से कई लग्जरी सामानों की सप्लाई होती थी। रोमन्स के शासन के तहत यह जगह सीरिया की राजधानी था। इसकी आबादी करीब पांच लाख थी। देखते ही देखते यह रोम और सिकंदर के बाद महान शहरों में शामिल हो गया। यहां पर थोड़ी आबादी यहूदियों की भी थी। अंटाक्या वह जगह थी जहां पर सेंट पीटर उपदेश देने आए थे। इसके अलावा सेंट पॉल और बारनबास ने भी यहां पर ईसाई धर्म का प्रसार किया। फ्रांस का गुलाम अंटाक्या को बीजान्टिन शासन के लिए भी जाना जाता है। 500 ईसा पूर्व तक यह जगह काफी फल फूल रही थी। लेकिन इसी समय यहां पर एक भूकंप आया जिसमें दो लाख लोगों की मौत हो गई। इसके बाद फिर फारसी, अरब, और सेल्जुक तुर्क ने यहां पर शासन किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब ओटोमान शासन का पतन हुआ तो यह फ्रांस के अधीन आ गया। सन् 1939 में एक जनमत संग्रह के बाद इसे तुर्की को वापस किया गया।