इसका एक फायदा यह भी हो सकता है कि एविएशन सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बढ़े, जिससे यात्रियों को सस्ती सेवा मिलने की आशा की जा सकती है। अभी इंडिगो देश की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी है। टाटा ग्रुप उम्मीद कर रहा होगा कि विलय के बाद इंडिगो को एयर इंडिया मजबूत टक्कर दे पाएगी। इसमें विलय की वजह से सिंगापुर एयरलाइंस की ओर से लगाई जाने वाली पूंजी से मदद मिलेगी। सिंगापुर एयरलाइंस, एयर इंडिया में 5,020 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। एयर इंडिया इसका इस्तेमाल नए विमान खरीदने में कर सकती है। अभी कंपनी के पास जो विमान हैं, वे पुराने पड़ चुके हैं।
खुद टाटा ग्रुप आसानी से पूंजी जुटा सकता है। इसका मतलब यह है कि एयर इंडिया को आधुनिक बनाने में पैसा आड़े नहीं आएगा। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि विलय के बाद एयर इंडिया की मुश्किलें खत्म हो जाएंगी। पहले यह पब्लिक सेक्टर की कंपनी थी, जैसा कि अक्सर ऐसी कंपनियों में होता है, इनमें कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है। हो सकता है कि विलय के बाद एयर इंडिया का ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रक्चर बेहतर हो और इससे कंपनी को लागत घटाने में भी मदद मिल सकती है। एविएशन बहुत चुनौतीपूर्ण इंडस्ट्री है। ऐसे में लागत कम होने से भविष्य में एयर इंडिया के विस्तार में टाटा ग्रुप को मदद मिलेगी।
दुनिया के दूसरे देशों का सबक भी बताता है कि एविएशन इंडस्ट्री में संख्या कम होने से कंपनियों के लिए कारोबारी मौके बेहतर होते हैं। भारत में पहले किंगफिशर और जेट एयरवेज जैसी कंपनियां दिवालिया होने की वजह से कारोबार से बाहर हो गई थी, जिनमें से जेट एयरवेज को फिर से रिवाइव करने की कोशिश हो रही है। इससे खासतौर पर इस क्षेत्र में बची हुई कंपनियों के लिए बेहतर मौका बना है। एयर इंडिया इसका लाभ लेने की कोशिश तो कर ही रही है, विस्तारा के साथ विलय के बाद वह विदेशी कंपनियों से भी बाजार छीनने की पहल कर सकती है।