
वीरभद्र सिंह का नाम हिमाचल की जनता की जुबान पर आज भी चढ़ रहता है। उन्हें भुला पाना आसान नहीं है। उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य सिंह प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं। उनका परिवार हिमाचल की राजनीति में अलग स्थान रखता है। यही कारण है कि जब छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र का निधन हुआ तो जनता ने उनकी पत्नी को झोली भर-भरकर वोट दिए। उसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने भी उन पर भरोसा जताकर पार्टी की बागडोर प्रतिभा के हाथों में सौंपी। हालांकि, इससे कई वरिष्ठ नेता नाखुश थे। गनीमत सिर्फ इतनी रही कि यह नाखुशी पंजाब या राजस्थान की तरह बाहर नहीं आई। कांग्रेस महंगाई और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों को लेकर चुनाव मैदान में उतरी। मुख्यमंत्री का चेहरा कोई नहीं था। कांग्रेस शुरू से दावा करती रही कि वह बीजेपी को सत्ता से बाहर कर देगी। वह इसमें सफल भी हुई।
कांग्रेस बीते कुछ समय से काफी उथल-पुथल का सामना कर रही है। ऐसे में वह अपनी छवि को लगातार बदलने की भी कोशिश में जुटी हुई है। इसी के तहत हाल में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ। इसमें पार्टी की बागडोर मल्लिकार्जुन खरगे को दी गई। गांधी परिवार ने खुद को पीछे कर लिया। हिमाचल में जीत उसके लिए राहत की सांस लेकर आई। सुक्खू को सीएम बनाकर उसके पास यह मैसेज देने का मौका था कि पार्टी परिवारवाद की राजनीति को आगे नहीं बढ़ाएगी। दरअसल, इस मुद्दे को लेकर बीजेपी उस पर लगातार हमलावर रही है। ऐसे में कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की विरासत को साफ तौर पर इग्नोर किया। उसने यह दिखाने की कोशिश की कि कांग्रेस अब इन चीजों से ऊपर उठने वाली है। जो चीज केंद्रीय नेतृत्व पर लागू होती है, उसे नीचे भी अमल में लाया जाएगा।