मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) झाबुआ जिले में रविवार को एक नए अवतार में नजर आए. हाथीपावा की पहाड़ी पर चल रहे हलमा में श्रमदान करने के लिए सीएम गैती (फावड़ा) लेकर पहुंचे. इस दौरान जल, जंगल और जमीन के संरक्षण का संदेश देते हुए मुख्यमंत्री ने गैती से मिट्टी की खुदाई कर श्रमदान किया.
शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया, ‘हलमा समन्वय, साझेदारी और परमार्थ की अद्भुत परंपरा है. भील समाज की यह महान परंपरा सामूहिकता से विश्व कल्याण का रास्ता दिखा रही है और अक्षय विकास का मॉडल हमें बता रही है. इस परंपरा के तहत जल, जंगल और जमीन के संरक्षण, संवर्द्धन हेतु श्रमदान किया. सीएम ने कहा कि आज मैंने हलमा के अवसर पर झाबुआ के हाथीपावा क्षेत्र की पहाड़ी पर जनजातीय भाई-बहनों के साथ श्रमदान कर जल संरक्षण व पौधरोपण के लिए आह्वान किया. इसका एक वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें सीएम अपने हेलीकॉप्टर से गैती लेते हुए निकलते हुए दिखाई देते हैं.
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झाबुआ में हलमा की शुरुआत
बता दें कि झाबुआ में शनिवार से दो दिवसीय हलमा की शुरुआत हुई है. शनिवार को गोपालपुरा हवाई पट्टी पर शिवगंगा के इस आयोजन का शुभारंभ राज्यपाल मंगुभाई पटेल की ओर से किया गया था. आज यानि रविवार को सुबह सात बजे से ही हाथीपावा की पहाड़ियों पर काफी संख्या मेंग्रामीण श्रमदान करने आए हैं. ग्रामीणों ने आज करीब 40 हजार जल संरचनाएं बनाने का लक्ष्य रखा है.
‘हलमा’ हमारे जनजाति समाज की विशेष परंपरा है। यह जल संरक्षण और प्रकृति सेवा का सामूहिक संकल्प है।इसमें परमार्थ का पुण्य भाव निहित है।
आज मैंने भी हलमा के अवसर पर झाबुआ के हाथीपावा क्षेत्र की पहाड़ी पर जनजातीय भाई-बहनों के साथ श्रमदान कर जल संरक्षण व पौधरोपण के लिए आह्वान किया। pic.twitter.com/kvJnllJZ17
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) February 26, 2023
यह परंपरा अपने आप में अनोखी : शिवराज सिंह
सीएम शिवराज सिंह ने कहा कि यह परंपरा अपने आप में अनोखी है. इसके तहत अगर कोई अपने कार्य में पिछड़ गया हो, तो उसकी मदद होती है. जैसे कोई घर बनाने में पिछड़ गया हो तो उसका घर बनवा दो. कोई कुआं खोदने में पिछड़ गया हो ता श्रमदान कर कुआं बनवा दो. अगर कोई खेती में पिछड़ गया हो तो सब मिलकर खेती में मदद करवा दो. यह परंपरा वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार करती है.
सीएम ने कहा कि इस परंपरा को सामाजिक स्वरूप यहां के लोगों ने मिलकर दिया है. हाथीपावा पहाड़ी पर 2007 से हलमा प्रारंभ हुआ. यहां के लोग सरकार की प्रतिक्षा नहीं करते. सरकार के पास संसाधन है. लेकिन, यहां के लोगों के पास भावनाएं हैं. संसाधन और भावनाएं दोनों मिल जाएं तो चमत्कार किया जा सकता है. इसलिए हलमा की इस परंपरा को पूरे प्रदेश में लेकर जाएंगे.
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