मध्य प्रदेश के धार्मिक नगरी उज्जैन मे प्रत्येक 12 सालों मे सिंहस्थ मेले का आयोजन होता है. इस मेले के आयोजन की प्रमुख जिम्मेदारी उज्जैन नगर निगम के पास रहती है. लेकिन पुण्य लाभ अर्जित करने के इस महापर्व में भी कुछ लोग घोटाला करने से बाज नही आते हैं. घोटाले की पुष्टि उज्जैन जिला न्यायालय के अष्टम अपर सत्र न्यायाधीश संतोष प्रसाद शुक्ल के एक अहम फैसले से हुई है.
सिंहस्थ 2004 मेले से करीब एक महीने पूर्व कोतवाली थाना पुलिस ने 25 मार्च 2004 को अपराध क्रमांक 247/2004 में धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है. नगर निगम के तत्कालीन कार्यपालन मंत्री मुकुंद पटेल, रूपेंद्र उर्फ भोला, आनंद तिवारी, लेखाधिकारी राधेश्याम, व लिपिक धर्मेंद्र सोनी एवं लिपिक कैलाश दिसावल के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा 420 आईपीसी, व साजिश रचने की धारा 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया था.
19 सालों से विचाराधीन था यह मामला
यह मामला 19 सालों से न्यायालय में विचाराधीन था. इस पर अष्टम अपर सत्र न्यायाधीश शुक्ल ने सारी सुनवाई करते हुए 16 जनवरी 2023 को निर्णय सुरक्षित कर लिया था. इस पर उन्होंने अपना फैसला सुनाया है. न्यायालय में 19 साल तक चली सुनवाई के बीच में दो आरोपियों की मौत हो चुकी और एक आरोपी को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया था. जबकि तीन आरोपियों को 4-4 साल सश्रम कारावास की सजा एवं 1,50,000 – 1,50,000- रुपए का जुर्माना लगाया गया.
जांच मे मिलीं थीं ये गड़बड़ियां
उप-संचालक अभियोजन डॉक्टर साकेत व्यास ने बताया कि नगर पालिका निगम उज्जैन मे सिंहस्थ-2004 मद से क्रय की गई सामग्री से संबंधित प्रकरण पत्रिकाओं के फिजिकल सत्यापन के दौरान पाया गया था कि फ्लाईक्लीन एवं सोल्फेक्स पाउडर के क्रय करने की नस्ती स्टोर मे नही थी. इस मामले में जांच करने पर पाया गया कि उक्त साम्रगी के बिलों पर अंकित जानकारी गलत है. क्योंकि स्टोर रजिस्ट्रर के अनुसार पेज संख्या 311 नहीं है. जांच में यह भी पाया गया की सामग्री प्राप्त किये बिना ही अंकित इंटरप्राईजेस फर्म को 8,22,269/- रुपए राशि का भुगतान कर दिया गया. जो की फर्म की ओर से रूपेन्द्र कैथवास ने जिला सहकारी बैंक टावर चौक के माध्यम से प्राप्त किया. उपरांत अभियोग पत्र न्यायालय मे प्रस्तुत किया गया. न्यायालय द्वारा अभियोजन के तर्कों से सहमत होकर आरोपी को दंडित किया गया है.