नई दिल्ली: हाल ही में चेन्नई की सॉफ्टवेयर कंपनी जोहो ने तमिलनाडु में कमर्शियल प्लांट लगाने की योजना के बारे में ऐलान किया। भारत ने 2029 तक दुनिया भर में टॉप 5 सेमीकंडक्टर चिप मैन्यूफैक्चरर में शामिल होने का लक्ष्य रखा है। जोहो का कदम उसी के अनुरूप है। यह इस महत्वपूर्ण इंडस्ट्री में देश की क्षमताओं को मजबूत करने के बड़े ट्रेंड को दर्शाता है। भारत को अब तक ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिन्होंने उसकी प्रगति में बाधा पैदा की है। आखिर चांद तक पहुंच गया में क्यों झंडे गाड़ नहीं पाया? चिप मैन्यूफैक्चरिंग कैसे होती है? इसमें कौन से देश आगे हैं? आइए, यहां ऐसे ही सवालों के जवाब जानते हैं। सेमीकंडक्टर चिप कैसे बनती हैं?इसमें सबसे पहली बात खास डिजाइन पर निर्णय लेना है। सभी चिप एक तरह से नहीं बनते हैं। आवश्यकताओं के अनुसार डिजाइन बनाने के लिए कुशल इंजीनियरों का होना, गहन शोध और विकास करना और बौद्धिक संपदा यानी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी तक आवश्यक पहुंच जरूरी है। उदाहरण के लिए इंटेल ने पेंटियम प्रोसेसर के विकास के लिए कई साल दिए। इस दौरान इंटेल के इंजीनियरों को चिप के आर्किटेक्चर का कॉन्सेप्ट और डिजाइन बनाना था। लॉजिक गेट्स और मेमोरी सेल की व्यवस्था तय करनी थी। यह सुनिश्चित करने के लिए गहन परीक्षण करना था कि यह अपेक्षित रूप से काम करें। यह सब सिर्फ डिजाइन है। बिना फैब्रिकेशन यूनिट के इन चिप्स का बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं किया जा सकता है। फैब्रिकेशन यूनिट को आमतौर पर फैब के नाम से जाना जाता है। फैब में सादा सिलिकॉन (आम रेत जैसा) फोटोलिथोग्राफी, नक्काशी, जमाव और डोपिंग जैसी सटीक तकनीकों का उपयोग करके एक चिप के तौर पर बदलता है। यह बताने और सुनने में सरल लग सकता है। लेकिन, वास्तव में यह काफी जटिल प्रक्रिया है। केवल चंद कंपनियों के पास जटिल चिप्स डिजाइन करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता और संसाधन हैं। उनमें से भी कम कंपनियों के पास उन्हें बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की क्षमता है।भारत क्यों रह गया पीछे?सबसे पहली बात है कि चिप मैन्यूफैक्चरिंग महंगा काम है। एक फैब यूनिट लगाने के लिए 10 अरब से 20 अरब डॉलर तक के निवेश की जरूरत हो सकती है। यह किसी भी तरह से छोटी राशि नहीं है। इसके अलावा भले ही आपके पास आवश्यक संसाधन हों, लेकिन अत्याधुनिक माइक्रोचिप्स का उत्पादन करने में काफी समय लगता है। उदाहरण के लिए TSMC (ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड) का उदाहरण लेते हैं। यह कंपनी दुनिया के लगभग 90% अत्यधिक उन्नत सेमीकंडक्टर चिप्स के निर्माण के लिए जिम्मेदार है। वह भविष्य में 3 नैनोमीटर चिप्स बनाने की राह पर है। ये चिप्स सबसे छोटी और सबसे उन्नत चिप्स में से हैं। 3 माइक्रोमीटर से 3 नैनोमीटर तक की यात्रा में उसे 3 दशक से अधिक का समय लगा। यह बदलाव कुछ ऐसा है जिससे हर निर्माण इकाई को गुजरना होगा।बेशक, बड़े डिजाइन वाली चिप्स अभी भी लोकप्रिय हैं। डिस्प्ले ड्राइवर, ऑडियो चिप्स और ऑटोमोटिव में इनका इस्तेमाल होता है। ऐसे में बड़े आकार से शुरू करके धीरे-धीरे छोटे आकार की ओर बढ़ना होगा। इसके अलावा सहायता की आवश्यकता है। सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग में शामिल प्रक्रियाएं बहुत जटिल हैं। विशेष मशीनें जरूरी हैं। उन्नत गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएं आवश्यक हैं। इसके अलावा अत्यधिक कुशल इंजीनियरों की जरूरत है। सरकारी सहायता भी इस पहलू में महत्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकती है। अगर सरकार इन लागतों में से कुछ को साझा कर सकती है या निजी कंपनियों को फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है तो हम इस लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त कर सकते हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि पूंजी निवेश की कमी, अनुभवी श्रमिकों का न होना, अनुसंधान और विकास में कमी और नीतिगत अनिश्चितता इस क्षेत्र में भारत के पीछे रहने के कारण बने।2026 तक चिप बनाने लगेगा भारतमार्च 2024 में भारत ने सेमीकंडक्टर विनिर्माण के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। भारत ने तीन सेमीकंडक्टर संयंत्रों के लिए आधार तैयार किया है। इनमें गुजरात के धोलेरा में एक चिप निर्माण संयंत्र और गुजरात के साणंद और असम के मोरीगांव में दो ATMP सुविधाएं शामिल हैं। दिसंबर 2026 तक धोलेरा सुविधा में उत्पादित पहली चिप तैयार हो जाएगी, जो भारत के विनिर्माण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि को दर्शाता है।भारत की ओर से इस फैब्रिकेशन प्लांट में 10 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किए जाने की उम्मीद है। यह फैब्रिकेशन प्लांट टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स और पीएसएमसी के बीच सहयोग से बनाया जाएगा। पीएसएमसी, जिसे पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन के नाम से भी जाना जाता है, एक ताइवानी सेमीकंडक्टर कंपनी है जो मेमोरी चिप्स बनाने में अपनी दक्षता के लिए प्रसिद्ध है। उनसे फैब्रिकेशन प्लांट की स्थापना और संचालन में अपनी विशेषज्ञता का योगदान देने की उम्मीद है, जो 28 एनएम चिप्स का उत्पादन करने के लिए अनुमानित है।ये चिप्स बहुत उन्नत नहीं हैं जो AI अनुप्रयोगों को शक्ति प्रदान करते हैं। हालांकि, यह एक शुरुआत है। शायद भारत में अरबपति उद्यमियों के अतिरिक्त निवेश के साथ हम जल्द ही 22 एनएम चिप्स या यहां तक कि 20 एनएम चिप्स का निर्माण कर सकते हैं।कौन से देश आगे हैं?वर्तमान में सेमीकंडक्टर निर्माण पर कुछ ही देशों का दबदबा है। इनमें शामिल हैं:अमेरिका: अमेरिका सेमीकंडक्टर निर्माण में सबसे आगे है। Intel, AMD और Nvidia जैसी प्रमुख कंपनियां यहां स्थित हैं।दक्षिण कोरिया: दक्षिण कोरिया का सेमीकंडक्टर उद्योग Samsung Electronics संचालित है, जो दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता है।ताइवान: ताइवान TSMC का घर है, जो दुनिया की सबसे बड़ी अनुबंध चिप निर्माता है।चीन: चीन सेमीकंडक्टर निर्माण में तेजी से बढ़ रहा है और वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का लक्ष्य रख रहा है।