केरल के आदिवासी की मेहनत से सुरक्षित हैं स्‍थानीय चावल की 54 किस्‍में

वायनाड (केरल): चेरुवयल रामन () की उम्र 72 साल है। पहली नजर में वह केरल के कुरिचिया आदिवासी समुदाय के एक आम सदस्‍य की तरह ही लगते हैं। लेकिन वह पूरे केरल में स्‍थानीय धान प्रजातियों के संरक्षक के तौर पर मशहूर हैं। पिछले 20 साल की कड़ी मेहनत और देखरेख के बल पर उन्‍होंने धान की 54 स्‍थानीय प्रजातियों को बचाकर रखा है।

आज जब पूरी दुनिया में हाइब्र‍िड प्रजातियों का जोर है, हर फसल की स्‍थानीय फसलें दम तोड़ रही हैं। वह दिन भी दूर नहीं जब वे महज किस्‍सों, कहानियों में रह जाएंगी और एक दिन भुला दी जाएंगी। लेकिन रामन ने अपने हिस्‍से की जिम्‍मेदारी निभाई और सुनिश्चित किया कि कम से कम धान की ये 54 प्रजातियां उनके जीते जी बनी रहें। उनके इस काम के लिए उन्‍हें केरल सरकार ने सम्‍मानित भी किया है।

वैसे तो पूरी जिंदगी रामन ने धान की ही खेती की है। लेकिन उन्‍हें बड़ा कष्‍ट होता था जब देशी-विदेशी कंपनियों के हाइब्रिड वैरायटी के धान स्‍थानीय प्रजातियों को हाशिए पर धकेलते जा रहे थे। इसी बीच उन्‍होंने फैसला किया कि वह डेढ़ एकड़ में स्‍थानीय प्रजाति ही उगाएंगे।

रामन कहते हैं, 2000 के दशक के शुरू में मैंने यह यात्रा शुरू की। वायनाड हमेशा से अपने खुशबूदार चावलों की स्‍थानीय प्रजातियों के मशहूर रहा है। लेकिन धीरे-धीरे जेनेटिकली मॉडिफाइड और हाइब्रिड प्रजातियों ने जडे़ं जमानी शुरू कर दी थीं। रामन दस साल की उम्र से खेती कर रहे हैं। जब उनके चाचा का देहांत हुआ तो उनकी 40 एकड़ जमीन भी रामन के ही हिस्‍से में आई।

रामन को चावलों की इतनी परख है कि वह महज चावल के दाने देखकर बता देते हैं कि यह फलां प्रजाति का है। सदियों से उस क्षेत्र में उग रहे धान की फसल के लिए उनका पूरा जीवन समर्पित सा लगता है। वह अपनी फसल को काटकर उसे लगभग 150 साल पुराने मिट्टी के बने अपने पुश्‍तैनी घर में रखते हैं। यही घर उनका भंडारगृह भी बन गया है।

धीरे-धीरे दूसरे युवा किसानों को भी स्‍थानीय प्रजातियों की अहम‍ियत पता चली। अब वे इनकी खेती की बारीकियां सीखने के लिए रामन के पास आते हैं। रामन उन्‍हें वह सब तो सिखाते ही हैं, इन अनूठी स्‍थानीय प्रजातियों के बीज भी उन्‍हें देते हैं वह भी बिल्‍कुल मुफ्त। लेकिन, केवल एक शर्त होती है। वह कहते हैं, मैं उनसे कहता हूं जब तुम्‍हारी फसल हो तो जितना धान मैंने आपको बीज के तौर पर दिया वह मुझे उस फसल से लौटा देना।

हम जैव विव‍िधता की बातें करते हैं, लेकिन 72 साल का यह आदिवासी असल मायनों में जैव विविधता के लिए काम कर रहा है। रामन के इसी योगदान के लिए उन्‍हें प्‍लांट जीनोम सेवियर अवॉर्ड और केरल सरकार के पीके कलान अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया है।