नई दिल्ली: का सोहना से दौसा तक का स्ट्रेच मंगलवार से आम लोगों के लिए खुल जाएगा। प्रधानमंत्री ने एक्सप्रेसवे के पहले चरण का उद्घाटन कर दिया है। दौसा में आयोजित उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री को चित्तौड़गढ़ के विजय स्तंभ की कृति भेंट की गई। इस कृति का विशेष महत्व बताया। चित्तौड़गढ़ के महाराणा कुंभा के सारंग के युद्ध में महमूद खिलजी पर विजय का प्रतीक है विजय स्तंभ। आइए जानते हैं आक्रांता महमूद खिलजी पर महाराणा कुंभा के विजय की वह कहानी जो भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है।मेवाड़ और मालवा की कहानीदरअसल, 15वीं सदी के पूर्वार्ध में तुगलक वंश कमजोर पड़ा तो दिल्ली सल्तनत की केंद्रीय सत्ता की पकड़ भी ढीली हो गई। इस कारण कई प्रांतों में दिल्ली से बगावत करके स्वंत्र सत्ता स्थापित करने की चाह जग गई। मालवा, गुजरात और नागौर भी थे। इन तीनों राज्य मुस्लिम शासन के अधीन थे। लेकिन इनके पड़ोसी प्रदेश मेवाड़ में हिंदू राजा राणा कुंभा का शासन था। मेवाड़ तीनों मुस्लिम शासकों की आंखों की किरकिरी बना हुआ था। महाराणा के नेतृत्व में मेवाड़ दिन-ब-दिन शक्तिशाली होता जा रहा था, इस कारण तीनों मुस्लिम शासक खतरा महसूस कर रहे थे। क्यों थी कुम्भा और खिलजी के बीच दुश्मनी?मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को महाराणा कुंभा से कुछ ज्यादा ही डर सता रहा था। इसके कई कारण थे। इनमें एक तो यह कि मालवा और मेवाड़ की सीमाएं एक-दूसरे से मिलती थीं। इस कारण दोनों शासक सीमा विस्तार में जुटे रहते थे। दोनों के बीच डूंगरपुर, माण्डलगढ़, बदनौर, बिजोलिया और जहाजपुर जैसे इलाकों पर कब्जे की होड़ मची रहती थी। महमूद खिलजी तो मेवाड़ के चित्तौड़ गढ़ को जीतने का सपना पाले हुए था। महाराणा कुंभा महमूद की इस मंशा से अच्छी तरह वाकिफ थे। दूसरी तरफ, दोनों शासक एक-दूसरे के दुश्मनों को शरण देने में हिचकते नहीं थे। महाराणा कुंभा ने महमूद के दुश्मन उमर खां को शरण दे दी तो महमूद ने कुम्भा के पिता के हत्यारों को शरण दे दी। उन्हें सौंपने की मांग ठुकराने के बाद महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के खिलाफ युद्ध की दुदुंभी बजा दी। खिलजी को परास्त कर कुम्भा ने बनावाया कीर्ति स्तम्भवर्ष 1437 में महाराणा कुम्भा और महमूद खिलजी की सेनाएं सारंगपुर में आमने-सामने हो गई। सारंगपुर के इस युद्ध में महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी को धूल चटा दी और उसे बंदी बना लिया। हालांकि, बाद में कुम्भा ने खिलजी को रिहा भी कर दिया। इतिहासकारों में इस बात को लेकर विवाद है कि महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी को छोड़कर गलती की थी या यह उनकी सही रणनीति थी। जो भी हो, लेकिन इस जीत के बाद महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी की जीत की स्मृति में चित्तौड़गढ़ में कीर्ति स्तम्भ का निर्माण करवाया। भगवान विष्णु को समर्पित यह कीर्ति स्तम्भ 37.19 मीटर ऊंचा है। यह नौ मंजिला स्तंभ चित्तौड़गढ़ किले में ही स्थित है। वर्ष 1448 में बने इस कीर्ति स्तम्भ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसी की प्रतिकृति भेंट की गई है।