वॉशिंगटन: भारत का चंद्रयान मिशन जल्द ही चांद पर उतर सकता है। भारत के साथ ही रूस का लूना-25 स्पेसक्राफ्ट भी चांद पर उतरने वाला था, लेकिन वह फेल हो गया। अब पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी हैं कि वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करे। भारत के इस मिशन की सफलता नासा समेत दुनिया की स्पेस एजेंसियों के काम आएगी। नासा साल 2025 तक इंसानों को एक बार फिर चांद पर भेजना चाहता है। चांद का दक्षिणी ध्रुव इसलिए खास है क्योंकि यहां पर इंसानों को पानी मिल सकता है। चंद्रयान मिशन इसकी और बेहतर तरीके से पुष्टि कर सकेगा।वैज्ञानिक मानते हैं कि बर्फ के रूप में चंद्रमा के क्रेटर में पानी भरा है। दुनिया की स्पेस एजेंसियां यहां पर अपना बेस बनाना चाहती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पानी के साथ-साथ दुर्लभ खनिजों का विशाल भंडार है, जो पृथ्वी पर ऊर्जा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा यहां पर बस्तियां बसाने के पीछे मंगल ग्रह है। मंगल ग्रह और चंद्रमा दोनों ही निर्जन है। मंगल क्योंकि एक ग्रह है, इसलिए वैज्ञानिक यहां जीवन की संभावना ज्यादा देखते हैं।चांद पर जाना क्यों जरूरीमंगल पर जाना अभी एक लंबा सफर है। ऐसे में वहां जाने से पहले चांद पर रह कर कुछ हद तक यह सीखा जा सकता है कि किसी निर्जन जगह पर इंसान कैसे रहेंगे और उनके सामने क्या-क्या चुनौतियां होंगी? नासा दोनों ही जगहों पर इंसानों को भेजने का इच्छुक है। इसी वजह से नासा ने साल 2023 में ‘द मून टू मार्स प्रोग्राम ऑफिस’ स्थापित किया है। नासा के चीफ बिल नेल्सन ने मार्च में था कि ‘चंद्रमा से मंगल ग्रह तक ऑफिस’ नासा को चंद्रमा पर एक साहसिक मिशन को अंजाम देने और मंगल पर पहले इंसान को उतारने में मदद करेगा।चांद के लिए नासा का मिशननासा एक बार फिर इंसानों को चांद पर भेजने के लिए आर्टेमिस मिशन चला रहा है। आर्टेमिस 1 मिशन पूरा हो चुका है, जिसके तहत एक खाली कैप्सूल को चांद का चक्कर लगाने के बाद वापस पृथ्वी पर लाया गया। नासा अब आर्टेमिस 2 मिशन पर काम कर रहा है, जिसके तहत 2024 के अंत तक इंसानों को कैप्सूल में बिठाकर चांद तक ले जाया जाएगा और फिर वापस लाया जाएगा। आर्टेमिस-3 मिशन के तहत नासा का लक्ष्य है कि 2025 के अंत तक फिर इंसान चांद पर उतरें।