अननैचरल सेक्स, एडल्ट्री पर सुप्रीम कोर्ट के साथ गई सरकार, समिति की सिफारिश नजरअंदाज

नई दिल्ली: पति, पत्नी और वो का चक्कर अब अपराध नहीं होगा। सरकार ने इस संबंध में के फैसले का विरोध करने की बजाय उसका ही साथ दिया है। व्यभिचार (एडल्ट्री) के साथ-साथ समलैंगिक या बनाना भी अपराध नहीं रहा है। सरकार ने संशोधित भारतीय न्याय संहिता विधेयक में की सिफारिशों पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ही तवज्जो दी है। सरकार ने संसदीय समिति की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए मंगलवार को लोकसभा में पेश किए गए भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता विधेयक, 2023 से आईपीसी की धारा 377 और धारा 497 को बाहर रखा है। धारा 377 कुदरती रिवाज के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध से संबंधित है, तो धारा 497 व्यभिचार से संबंधित है। इन दोनों धाराओं को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही खारिज कर दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में व्यभिचार को अपराधमुक्त कर दिया था, हालांकि यह तलाक का एक आधार बना हुआ है। उच्चतम न्यायालय ने उसी वर्ष समलैंगिक जोड़ों के बीच सहमति से यौन संबंधों को भी अपराधमुक्त कर दिया था। हालांकि, बीएनएस विधेयक में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने वाले प्रावधानों में एक नई धारा 73 जोड़ी गई है। इसका मकसद विशेष रूप से बलात्कार और यौन अपराधों के पीड़ित लोगों की पहचान या उनसे संबंधित जानकारी को सार्वजनिक करने से बचाना है। धारा 73 में प्रावधान है, ‘जो कोई ऐसी अदालत की पूर्व अनुमति के बिना धारा 72 में उल्लिखित किसी अपराध के संबंध में किसी अदालत के समक्ष कोई कार्यवाही से संबंधित कोई भी मामला छापता या प्रकाशित करता है, उसे दो साल तक की अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी देना होगा।’