मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी है मुंबई। यहां बॉलिवुड है। इसे मायानगरी भी कहते हैं। लेकिन यहां के कुछ आंकड़े हमें डरा रहे हैं। आंकड़े हैं बच्चियों से बलात्कार के। जी हां, नाबालिग मासूमों से घिनौनी हरकतों के आंकड़े बताते हैं कि मायानगरी की चकाचौंध में महिलाओं-बच्चियों की जिंदगी कभी भी घुप्प अंधेरे से भर सकती है। दरअसल, गैर-सरकारी संगठन (NGO) प्रजा फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2022 के बीच मुंबई में दर्ज हुए रेप के कुल मुकदमों में 61 फीसदी मामले पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिगों के यौन शोषण के थे। जांच में पॉक्सो कानून की भी अनदेखीरिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में शहर की पुलिस पॉक्सो एक्ट के 3,360 मामलों की जांच कर रही थी जिनमें कुल 2,438 मामलों (73%) की जांच साल के अंत तक पूरी नहीं हो पाई थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन भयावह आंकड़ों के मद्देनजर मानव संसाधनों के बेहतर बुनियादी ढांचे जैसे कि ज्यादा विशेष अदालतों, जजों और प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों की मांग की है। पॉक्सो एक्ट में यह प्रावधान है कि अपराध की संज्ञान से एक साल के भीतर मामलों का निपटारा किया जाना चाहिए ताकि शीघ्र न्याय सुनिश्चित किया जा सके और लंबी कार्यवाही को रोका जा सके ताकि पीड़िता की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाई आवाजबाल और महिला अधिकार कार्यकर्ता प्रीति पाटकर ने कहा, ‘हमारे फील्ड वर्क से यह भी पता चला है कि पॉक्सो एक्ट मामलों की जांच में समय लग रहा है और कोर्ट की कार्यवाही भी चल रही है। कुछ मामले ऐसे हैं जो पांच साल से ज्यादा समय से चले आ रहे हैं। पॉक्सो एक्ट में पीड़िता की अनिवार्य मदद का प्रावधान है, इसलिए यह सहायता उसे उपलब्ध कराई जानी चाहिए। सिस्टम को अधिक बाल सुरक्षित और पीड़ित हितैषी बनाया जाना चाहिए। जब मामला ट्रायल के लिए जाता है तो पीड़िता की सुरक्षा के लिए अधिक जगह होनी चाहिए।’ कुछ मामले ऐसे भीवहीं, प्रजा फाउंडेशन के सीईओ मिलिंद मासके ने कहा, ‘बाल यौन शोषण को रोकने के लिए जागरूकता पैदा करने और लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।’ कार्यकर्ताओं के मुताबिक, ऐसे भी कई मामले हैं जहां नाबालिग लड़कियां रोमांटिक रिश्तों में हैं, लेकिन चूंकि सहमति की कानूनी उम्र 18 साल है, इसलिए इसे बलात्कार माना जाएगा और अपराध दर्ज किया जाएगा।10 साल में दोगुने से भी ज्यादा हो गए रेप के मामलेप्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 तक के 10 सालों में रेप के मामलों में 130% की वृद्धि हुई (391 से 901 तक) जबकि छेड़छाड़ के मामलों में 105% की वृद्धि (1,137 से 2,329 तक) हुई। मासके ने कहा, ‘जुलाई 2023 तक अपराध की जांच में शामिल पुलिस अधिकारियों की 22 फीसदी कमी है, जैसे एसिस्टेंट इंस्पेक्टर, इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर। इससे अपराध की समय पर जांच और जांच की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।’ लैब में हजारों मामले लंबितकानून-व्यवस्था के जॉइंट कमिश्नर सत्यनारायण चौधरी ने बताया कि 2022 में 1,957 से 2023 में अब तक 1,782 तक छेड़छाड़ के मामलों में 9% की कमी आई है। उन्होंने कहा कि इसी अवधि में पता लगाने की दर में 13% की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कैलिना स्थित राज्य विज्ञान प्रयोगशाला में द्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की 46% कमी भी बताई गई है। 2022 के अंत में प्रयोगशाला में 25,390 से अधिक मामले लंबित थे।