स्वॉर्म ड्रोन यानी आसमानी आफत
सर्दी के महीनों में लद्दाख में तापमान शून्य से 40 डिग्री तक नीचे चला जाता है और दिसंबर के महीने में करीब 40 फीट बर्फ गिरती है। ऐसे वक्त में दुश्मन ने कोई हरकत की तो कैसे जवाब दिया जाएगा? इसके लिए सेना ने चीन बॉर्डर पर स्वॉर्म ड्रोन तैनात कर दिए हैं। इसकी खासियत यह होती है कि निगरानी रखने के साथ-साथ यह दुश्मन की गाड़ियों, हथियारों, कमांड और कंट्रोल सिस्टम को भी टारगेट कर सकता है। वास्तव में, स्वॉर्म ड्रोन प्रणाली में कई ड्रोन की फौज शामिल होती है, जो दूर कंट्रोल सिस्टम के संपर्क में रहते हैं। बंकर में बैठे सैनिक भी इन्हें ऑपरेट कर सकते हैं। जैसे सैनिक मिशन के दौरान अपना-अपना टास्क बांटकर काम करते हैं, वैसे ही ये ड्रोन भी काम बांट लेते हैं। सैनिकों की तरह ड्रोन का भी एक कमांडर होता है, जो बाकी ड्रोन को निर्देश देता है।
अगर बॉर्डर पर हालात बिगड़ते हैं तो ये काफी मददगार साबित हो सकते हैं। सटीक निशाना लगाने के साथ ही ये सैनिकों की जान सुरक्षित रखते हैं। इस तरह की फाइट में खर्चा भी कम आता है। यूं समझ लीजिए जिस जगह सैनिक देख नहीं पाते, वहां ये उनकी आंख बनकर दुश्मन की हरकतों की पल-पल की रिपोर्ट देते हैं।
जंग के सारे सामान
सेना की तैयारी इस तरह से है कि दुश्मन के इलाके में अटैक मिशन को अंजाम दिया जा सके। लंबी दूरी के रॉकेट, दूर बैठकर संचालित किए जाने वाले हवाई सिस्टम और बख्तरबंद गाड़ियों के चलते लद्दाख सेक्टर में सेना की क्षमता बढ़ी है। इसके साथ ही सेना भविष्य की जंग के लिहाज से भी तैयारी कर रही है। पहाड़ों पर युद्ध के लिए हल्के टैंक का विकास हो या सेना के लिए भविष्य के जंगी वाहन (FICV) और नई कार्बाइन खरीदने की दिशा में सेना बढ़ रही है। ये तैयारी ऐसे समय में हो रही है जब LAC पर चीन की फौज के साथ 30 महीने से जारी गतिरोध आज भी बरकरार है। कई पॉइंट्स पर मामला सुलझ गया है लेकिन कुछ पर चीन मान नहीं रहा है।
पिछले दिनों इंडोनेशिया में जी-20 बैठक से इतर डिनर के दौरान कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत भी हुई। गलवान झड़प के बाद यह इस तरह की पहली मुलाकात थी। समझा गया कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल सकती है लेकिन बर्फीले मौसम में भी सेना अपनी पोजीशन से टस से मस नहीं होने वाली है।
आमतौर पर बर्फबारी के समय जवान दूसरी जगहों से पहरा देते थे लेकिन पिछले करीब तीन साल से हालात ऐसे नहीं हैं। चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और ऐसे में उसकी फौज (PLA) की किसी भी चुनौती का जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने अपनी तैयारी पूरी कर रखी है। एलएसी पर चीन का मुकाबला करने की सेना की रणनीति के केंद्र में क्षमता विकास है। सेना अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए बहुआयामी रणनीति पर काम कर रही है। इमर्जेंसी खरीद हो रही है, विभिन्न प्रोजेक्ट के लिए सरकारी मंजूरी दी जा रही है और क्षमता बढ़ाने के लिए स्वदेशीकरण पर भी विशेष फोकस है।
बॉर्डर, बर्फ और तैयारी
माइनस तापमान में आवागमन भी आसान नहीं रहता है। लेकिन दुश्मन इस मौके का फायदा न उठा पाए, इसके लिए सेना को तैयारी करनी पड़ती है। पूरे मौसम के लिए सैनिकों के लिए सभी जरूरी चीजें जमा कर ली गई हैं। हेलिकॉप्टर और खच्चरों के जरिए फॉरवर्ड पोस्ट तक सर्दी के सामान पहुंचा दिए गए हैं।
15 हजार फीट पर तालाब
ठंड के लिए जो शेल्टर बने हैं, वो ऐसे हैं कि एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट भी किए जा सकते हैं। 15 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर माइनस वाले तापमान में इस शेल्टर में मौजूद सैनिकों को तापमान सामान्य मिलेगा। सोलर बिजली से रोशनी और पीने के लिए तालाब बनाया गया है। जी हां, पानी का ऊपरी हिस्सा भले ही बर्फ बन जाए लेकिन नीचे पानी रहता है। पंप से सैनिकों को ताजा पानी उपलब्ध कराया जाता है।
वज्र से लेकर पिनाक सब तैनात
बॉर्डर पर सेना ने 155एमएम/52 कैलिबर स्वचालित के9 वज्र-टी गन, 155एमएम/45 कैलिबर धनुष गन, नया 155एमएम/52 कैलिबर अत्याधुनिक आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS), अपग्रेडेड सारंग तोप, लंबी दूरी का पिनाक रॉकेट सिस्टम, सटीक हमला करने वाले हथियार तैनात किए गए हैं। रात में जंग के हिसाब से तैयारी, एंटी-ड्रोन हथियार, खुफिया एवं निगरानी प्रणाली से आने वाले समय में सेना की ताकत और बढ़ने वाली है।