कचरे के ढेर से कैसे निकाला ‘लाल सोना’, दिल जीत लेगी कश्मीर के इस वकील की 19 दिन वाली कहानी

नई दिल्ली: कचरे से केसर, नामुमकिन सा लगता है न? लेकिन, जम्मू-कश्मीर के एक वकील और पूर्व सरपंच ने ये अनोखा कारनामा कर दिखाया है। ने अपने घर के सब्जियों के कचरे से बनी खाद का इस्तेमाल करके केसर उगाने में सफलता हासिल की है। गनई ने ये शुरुआत पहले अपने स्तर पर की और जब उन्हें कामयाबी मिल गई, तो उन्होंने इसे गांव के दूसरे लोगों तक भी पहुंचाया। उनकी ये पहल ऐसा रंग लाई कि लोग अब उन्हें ‘गार्बेज मैन’ कहकर बुलाते हैं।पारंपरिक तौर पर दक्षिणी कश्मीर में पुलवामा जिले के पंपोर और आसपास के इलाके में केसर उगाया जाता है। ‘लाल सोना’ कहे जाने वाले केसर को उगाने के लिए खास जलवायु वाली परिस्थितियों की जरूरत होती है। कश्मीर में इसकी खेती जिले के कुछ इलाकों तक ही सीमित रही है। ऐसे में फारूक अहमद गनई को अपने गांव में केसर उगाने का आइडिया आया।फारूक अहमद गनई ने अपनी इस पहल से दिखा दिया कि घर से निकला हुआ कचरा न केवल साफ और हरा-भरा वातावरण दे सकता है, बल्कि कमाई का रास्ता भी खोल सकता है। गनई जिस समय अनंतनाग जिले में सादीवारा गांव के सरपंच थे, तो उन्होंने एक पहल शुरू की, जिसका नाम है-‘मुझे कचरा दो, मैं तुम्हें सोने के सिक्के दूंगा’। इस पहल का मकसद लोगों के बीच ये संदेश देना था कि उनके घर से निकलने वाला कचरा, उनके लिए कितने काम का साबित हो सकता है। गनई पिछले करीब एक साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गनई बताते हैं कि आमतौर पर लोग घर का कचरा नदियों और नालों में फेंक देते हैं, जिससे बरसात के मौसम में नालियां जाम हो जाती हैं और एक परेशानी और बीमारी फैलने वाली स्थिति बन जाती है।घर के कचरे का ऐसा इस्तेमालकेसर उगाने के लिए गनई सबसे पहले अपने घर से निकलने वाले कचरे को अलग करते हैं। प्याज, आलू, केले और संतरे के छिलके, अंडे के छिलके आदि जो भी घरेलू कचरे के रूप में फेंका जाना है, वे उसे गैर-जैविक कचरे से अलग करते हैं। इसका सबसे बड़ा मकसद घरेलू स्तर पर कचरे को अलग करने को बढ़ावा देना और खाद बनाने के लिए खाने के कचरे का इस्तेमाल करना है।’नहीं’ वाले उस जवाब ने दे दिया मिशनगनई बताते हैं कि एक बार उनके एक दोस्त ने उनसे पूछा कि क्या उनके गांव में केस उगाया जा सकता है, इसपर उन्होंने जवाब दिया- नहीं। उन्होंने ये जवाब दे तो दिया, लेकिन इस जवाब ने गनई को झकझोर कर रख दिया। गनई ने ठान लिया कि वो अपने गांव में केसर उगाकर दिखाएंगे। इसके बाद उन्होंने अवंतीपोरा के एक किसान से केसर के कुछ कंद लिए और अपने मिशन को पूरा करने में जुट गए। 19 दिनों के भीतर खिल गया फूलवो 2 अक्तूबर 2023 का दिन था, जब उन्होंने अपने घर के कचरे और दूसरी चीजों का इस्तेमाल कर केसर के 60 कंद बोये। इसके बाद जो रिजल्ट मिला, वो किसी चमत्कार से कम नहीं था। केवल 19 दिनों के भीतर ही केसर का पहला फूल खिल गया। गनई अभी तक केसर के 85 फूलों की कटाई कर चुके हैं।हर घर में चार गांवों को लेंगे गोदगनई बताते हैं कि इस रिजल्ट से दो बातें साबित हुईं। पहली- अगर सही से काम किया जाए तो घर के कचरे को कमाई का जरिया बनाया जा सकता है। और दूसरी- पारंपरिक रूप से खास जलवायु में उगने वाली फसलों जैसे केसर, को दूसरे इलाकों में भी उगाया जा सकता है। गनई की अगली योजना हर गांव में चार घरों को गोद लेने और घर के लोगों को कचरा अलग करने के बारे में सिखाने की है।