वो आखिरी रास्ता! जब अपराधी मुंह नहीं खोलता, तब दिमाग लिख देता है क्राइम कुंडली

नई दिल्ली: जरा सोचिए, अगर किसी क्राइम में कोई गवाह या सबूत न मिल रहा हो तो अपराधी को सजा कैसे दिलाई जाएगी? इंसान का दिमाग तो चालाक होता है लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि ब्रेन भी अपराध में भागीदार होता है। आपके मन में सवाल उठेगा कैसे? इसे समझते हैं। पिछले दो दशकों से एक टेक्निक का नाम आपने काफी सुना होगा- ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन सिग्नेचर (BEOS) प्रोफाइलिंग या संक्षेप में कहें तो ब्रेन मैंपिंग या ब्रेन फिंगर प्रिंटिंग। हां, सच में यह ब्रेन से सिग्नल लेकर अपराधी के विचारों की प्रिंटिंग करता है। अपराधियों के राज उगलवाने के लिए यह एक जबर्दस्त फॉरेंसिक टूल बनकर उभरा है। जब भी जांच के पारंपरिक तरीके फेल हो जाते हैं तब इस ‘ब्रह्मास्त्र’ का इस्तेमाल किया जाता है।ब्रेन मैपिंग क्या हैबेंगलुरु के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज के न्यूरोसाइंटिस्ट सीआर मुकुंदन ने इसे विकसित किया है। यह तकनीक ब्रेन से इलेक्ट्रिक सिग्नल के जरिए सच्चाई सामने लाती है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में यह टेक्नोलॉजी 20 साल पहले से इस्तेमाल की जा रही है। हाल में एक लिव इन पार्टनर द्वारा कथित रूप से 36 साल की सरस्वती वैद्य की हत्या कर शव के टुकड़ों को पकाने की बात सामने आई तो इस तकनीक के इस्तेमाल की चर्चा होने लगी। आरोपी मनोज साने कह रहा है कि वैद्य ने खुद जहर खा लिया। ऐसी स्थिति में कैसे पता चलेगा कि मर्डर है या सुसाइड? इस बात की जांच करने के लिए अधिकारियों के पास यही आखिरी रास्ता बचता है।आरोपी को पहनाई जाती है स्पेशल कैपअब अगला सवाल आपके मन में उठेगा कि ब्रेन मैपिंग से अपराधी के दिमाग की जांच कैसे होती है? फॉरेंसिंक साइंस लेबोरेट्री (FSL) महाराष्ट्र की पूर्व निदेशक डॉ. रुक्मणि कृष्णमूर्ति बताती हैं, ‘जब कोई प्रत्यक्ष गवाह न हो, तब बीईओएस के साथ-साथ साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग, पॉलिग्राफ और नार्को-एनालिसिस के जरिए सबूत जुटाए जाते हैं।’ एक प्राइवेट फॉरेंसिक लैब की चेयरपर्सन कृष्णमूर्ति कहती हैं कि प्रक्रिया के दौरान आरोपी को एक स्पेशल कैप पहनाई जाती है जिसमें 32 इलेक्ट्रोड ब्रेन के अलग-अलग हिस्सों से अटैच किए जाते हैं। व्यक्ति को आंखें बंद करके बैठाया जाता है और उससे कहा जाता है कि वह चुपचाप सवालों और बयानों को सुने। इन सवालों के जरिए ही जांच की जाती है और रिजल्ट को कंप्यूटर में रिकॉर्ड किया जाता है। कृष्णमूर्ति बताती हैं, ‘आरोपी को बोलकर सवालों का जवाब देने की जरूरत नहीं होती है। इसके बजाय उसके अपराध के अनुभव को हासिल करना मकसद होता है और यह ब्रेन में होने वाली इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी से पहचाना जाता है।’मैंने शरीर के टुकड़े किए…फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. दीप्ति पुराणिक बताती हैं कि कैसे क्राइम सीन को फिर से तैयार किया जाता है। जैसे ‘मैंने चाकू लिया’ या ‘मैंने शरीर के टुकड़े कर दिए’ इन आवाजों के जरिए आरोपी के दिमाग में क्राइम को लेकर छिपी याददाश्त को जगाया जाता है। जब आरोपी इन घटनाओं को याद करता है तो उसके ब्रेन में इलेक्ट्रिकल पैटर्न बनने लगते हैं और इससे सुराग मिलने लगता है। दूसरी तरफ जो निर्दोष होता है उसके दिमाग में कोई मेमरी होती ही नहीं है और उसके दिमाग में कोई पैटर्न भी नहीं बनता है।पुराणिक आरुषि तलवार डबल मर्डर और मालेगांव बम ब्लास्ट जैसे चर्चित मामलों में ब्रेन मैंपिंग में शामिल रही हैं। उन्होंने कहा कि इसकी मदद से ही अलग-अलग सूचनाओं को जोड़कर कोर्ट में पेश करने लायक सबूत तैयार किया गया। 2008 में पहली बार महाराष्ट्र में बीईओएस प्रोफाइलिंग की गई और दो हत्याओं में आरोपी को उम्रकैद की सजा मिली। पहले केस में एमबीए स्टूडेंट अदिति शर्मा और उसके प्रेमी प्रवीण खंडेलवाल को शर्मा के पूर्व बॉयफ्रेंड उदित भारती को आर्सेनिक मिला हुआ ‘प्रसाद’ देने का दोषी पाया गया। दूसरे केस में अमीन को अपने साथी रामदुलार सिंह की सोते समय हत्या करने का दोषी ठहराया गया।पहले केस में जब ब्रैन मैपिंग की गई तो जांच में साफ हो गया कि उसने याद किया था, ‘मैंने आर्सेनिक खरीदा था।’ प्रोटोकॉल के तहत ब्रेन मैपिंग टेस्ट के लिए कोर्ट का आदेश जरूरी होता है। मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में संदिग्ध की लिखित सहमति भी लेनी होती है।ब्रैन मैपिंग का तरीका जान लीजिए1. जिस संदिग्ध की ब्रेन मैपिंग होती है उसे केमिकल या इंजेक्शन लगाने की जरूरत नहीं होती।2. सेंसर वाली कैप लगाई जाती है। यह एक उपकरण से जुड़ा होता है जिसे ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग डिवाइस कहते हैं। इससे व्यक्ति के ब्रेन में होने वाले इलेक्ट्रिकल बिहैवियर का अध्ययन किया जाता है। 3. फॉरेंसिक एक्सपर्ट संदिग्ध के सामने क्राइम से जुड़ीं चीजों की आवाज सुनाते हैं। ब्रेन मैपिंग में ऑडियो आरोपी के सामने लगे सिस्टम पर सुनाई देता है। इन्हें सुनने के बाद आरोपी के दिमाग में क्या प्रतिक्रिया होती है, उसे फॉरेंसिक एक्सपर्ट मॉनिटर करते हैं। मशीन पर आ रही तरंगों को देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह कितना सच या झूठ बोल रहा है।