मनोज बाबू कहते हैं कि वह एक तरफ इतने उच्च शिक्षा हासिल कर देश के बड़े ओहदे तक पहुंचे थे, वहीं दूसरी तरफ गांव की परंपराओं से इस कदर जुड़े थे कि आखिरी वक्त तक वे बेटी के घर का बना सामान नहीं खाते थे। राजेंद्र प्रसाद के बड़े भाई महेंद्र बाबू की बेटी श्यामा देवी की शादी रफीपुर निवासी नर्मदेश्वर प्रसाद से हुई थी। राजेंद्र बाबू ने ही भतीजी श्यामा देवी को कन्यादान दिया था। इसलिए वे हमेशा रफीपुर को बेटी का गांव मानते थे।
जब राष्ट्रपति ने कहा ‘का हो भोजपुरी भुला गइलअ का’
रिश्ते में नाती लगने वाले मनोज बाबू नाना राजेंद्र प्रसाद की गोद में खेलते हुए बड़े हुए हैं। इस दौरान उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी उनके साथ रहने का सौभाग्य मिला। उनदिनों को याद करते हुए मनोज बाबू ने बताया कि राजेंद्र प्रसाद को सादा भोजन और सादगी भरा जीवन पसंद था। जब भी गांव-इलाके से कोई उनसे मिलने जाता तो वह बड़े आत्मीयता से उससे मिलते थे। सबसे खास बात कि राष्ट्रपति रहते हुए भी अपने लोगों से वह भोजपुरी में ही बातें किया करते थे।
इस संबंध में उन्होंने एक प्रसंग सुनाया। जब गांव से एक व्यक्ति उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंचा। राजेंद्र बाबू उससे मिले। इस दौरान वह भोजपुरी में बात कर रहे थे जबकि मिलने आया व्यक्ति हिंदी बोल रहा था। कुछ देर सुनने के बाद वे उसे झिड़कते हुए बोले ‘भोजपुरी भुला गइलअ का हो’ (भोजपुरी बोलना भूल गए हो क्या)? तब वह झेंपते हुए भोजपुरी में ही बात करने लगा। मनोज बाबू ने बताया कि राजेंद्र बाबू के समय राष्ट्रपति भवन में भोजपुरिया समाज का होली मिलन समारोह का आयोजन होता था। जहां फगुआ (बिहार का होली का गीत) गाया जाता था। इस दौरान वे सबसे मिल कर होली की शुभकामनाएं देते थे।
रिपोर्ट: दीनबंधु सिंह