नई दिल्ली: पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगे के दौरान एक गुरुद्वारे को जलाने से संबंधित एक मामले में मुख्य उकसाने वाला शख्स करार देते हुए दिल्ली की एक अदालत ने उनके खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं। वहीं 1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े दूसरे मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने 2018 में सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। वह तिहाड़ जेल में बंद हैं। विशेष न्यायाधीश एम. के. नागपाल ने कहा’आरोपी सज्जन कुमार भी उस भीड़ का हिस्सा थे जिसका मकसद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए उक्त गुरुद्वारे में आग लगाना, वहां लूटपाट करना और उस क्षेत्र में रह रहे सिखों के घरों में आगजनी, लूटपाट और समुदाय के लोगों की हत्या करना था’। आरोप तय होने के बाद दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर सज्जन कुमार की चर्चा हो रही है। एक वक्त सज्जन कुमार की दिल्ली की सियासत में तूती बोलती थी। सज्जन कुमार से कुछ साल पहले ही कांग्रेस ने दूरी बना ली थी। सज्जन कुमार के नाम को लेकर जब कांग्रेस की आलोचना हुई तब 5 साल पहले ही उन्होंने राहुल गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। जिस कांग्रेस से सज्जन कुमार ने इस्तीफा दिया एक वक्त उसी पार्टी में और दिल्ली की सियासत में उनकी तूती बोलती थी। दिल्ली की राजनीति में वह लंबे वर्षों तक कांग्रेस पार्टी के भीतर किंगमेकर की भूमिका में रहे। सज्जन कुमार की एक वक्त दिल्ली में पहचान दबंग नेता के रूप में भी होती थी।सियासत में कदम रखने से पहले सज्जन कुमार चाय की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। सज्जन कुमार ने दिल्ली नगर निगम का चुनाव जीतकर सियासी दुनिया में कदम रखा। सज्जन कुमार को कांग्रेस का टिकट दिलाने में चौधरी हीरा सिंह ने अहम भूमिका निभाई। हीरा सिंह जाट समुदाय के उस वक्त बड़े नेता माने जाते थे। हीरा सिंह ने कांग्रेस नेता एचकेएल भगत के जरिए सज्जन कुमार को टिकट दिलवाया। निगम चुनाव में सज्जन कुमार की जीत भी हुई और उसके बाद वह पीछे मुड़कर नहीं देखे। वह बाहरी दिल्ली सीट से जीतकर तीन बार लोकसभा भी पहुंचे। 77 में जब देश में कांग्रेस विरोधी लहर चली उसका असर दिल्ली में भी हुआ। दिल्ली में भी इसका व्यापक असर हुआ। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी काफी कमजोर हो गई। इसके बाद दिल्ली में सज्जन कुमार को अगले चुनाव में लोकसभा का प्रत्याशी बनाया गया और वह बाहरी दिल्ली से जीत गए। इस चुनाव में सज्जन कुमार की जीत बड़ी थी। सज्जन कुमार ने दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री और दिल्ली के शेर कहे जाने वाले चौ. ब्रह्म प्रकाश को मात दी थी। हालांकि 1984 में सिख विरोधी दंगों के बाद पार्टी ने अगले चुनाव में टिकट काट दिया। 1991 के चुनाव में उन्हें फिर टिकट मिला और वह जीतकर लोकसभा पहुंचे। साल 2009 की बात है जब सज्जन कुमार पार्टी ने लोकसभा का टिकट दिया लेकिन सिख पत्रकार की ओर से तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम की ओर जूता उछाले जाने की घटना के बाद पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। सज्जन कुमार अपने भाई रमेश कुमार को दक्षिण दिल्ली से टिकट दिलाने में कामयाब रहे और रमेश कुमार ने जीत भी हासिल की। हालांकि 2014 के चुनाव में रमेश कुमार को हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद के चुनाव में सज्जन के भाई को टिकट भी नहीं मिला।