क्या राज्यपाल बिलों को विधानसभा वापस भेजे बिना अपने पास रख सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

नई दिल्ली: ने राज्य विधानसभा से पारित कई विधेयकों को मंजूरी देने में तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि की ओर से देरी किए जाने पर सोमवार को सवाल उठाया। पूछा कि राज्यपालों को पक्षकारों के अपनी शिकायतें लेकर शीर्ष अदालत के पास जाने तक इंतजार क्यों करना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनवरी 2020 से विधेयक लंबित होने का जिक्र किया और कड़े सवाल करते हुए पूछा कि राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या राज्यपालों के कार्यालय को सौंपे गए संवैधानिक कार्यों के निर्वहन में देरी हुई है। अदालत ने यह भी कहा कि वह इस सवाल पर भी विचार करेगी कि क्या कोई राज्यपाल विधेयकों को विधानसभा को वापस भेजे बिना या राष्ट्रपति को भेजे बिना अपने पास रख सकता है।न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी जिसमें राज्यपाल रवि पर विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाया गया है। पीठ ने राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी का सुनवाई टालने का आग्रह मान लिया।अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल द्वारा लौटाए गए 10 विधेयक फिर से पारित किए हैं।पीठ ने कहा, ‘पहले हम विधेयकों (पुन: पारित) पर राज्यपाल के निर्णय का इंतजार करते हैं।’शीर्ष अदालत ने केरल सरकार की एक अलग याचिका पर केंद्र और केरल के राज्यपाल के कार्यालय से भी जवाब मांगा, जिसमें खान पर विधानसभा की आरे से पारित कई विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाया गया है।पीठ ने तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस तथ्य पर ध्यान दिया कि राज्यपाल रवि ने जवाब में कहा है कि कि शीर्ष अदालत की ओर से 10 नवंबर को नोटिस जारी करने के बाद उन्होंने 10 विधेयक पर अपनी सहमति रोकी।पीठ ने कहा, ‘श्रीमान अटॉर्नी (वेंकटरमणी), राज्यपाल का कहना है कि उन्होंने 13 नवंबर को इन विधेयकों का निपटारा कर दिया है। हमारी चिंता यह है कि हमारा आदेश 10 नवंबर को पारित किया गया था। ये विधेयक जनवरी 2020 से लंबित हैं। इसका मतलब है कि राज्यपाल ने अदालत द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद निर्णय लिया।’उसने कहा, ‘राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे थे? राज्यपालों को पक्षकारों के अपनी शिकायतें लेकर शीर्ष अदालत के पास जाने तक इंतजार क्यों करना चाहिए।’शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि कुछ विधेयक ‘जटिल’ और ‘नाजुक’ मुद्दों से जुड़े हैं क्योंकि वे राज्यपाल की कुछ शक्तियों को छीनने का प्रयास करते हैं।अधिकारी ने उन विधेयकों में से एक का जिक्र किया जो राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को छीनने का प्रावधान करता है।उन्होंने कहा, ‘यह एक महत्वपूर्ण मामला है, इसलिए इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।’अटॉर्नी जनरल ने अदालत के समक्ष कहा कि वर्तमान राज्यपाल ने 18 नवंबर, 2021 को कार्यभार संभाला था और देरी के लिए राज्यपाल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कई विधेयकों में कई ‘जटिल मुद्दे’ अंतर्निहित होते हैं।पीठ ने कहा कि चिंता किसी विशेष राज्यपाल के आचरण से संबंधित नहीं है, ‘मुद्दा यह नहीं है कि क्या किसी विशेष राज्यपाल ने देरी की, बल्कि यह है कि क्या संवैधानिक कार्यों को करने में सामान्य तौर पर देरी हुई है।’तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और अभिषेक सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल संवैधानिक व्यवस्थाओं का उल्लंघन कर काम कर रहे हैं और इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई, जिसके कारण विधानसभा ने 15 में से 10 विधेयक ‘‘दोबारा पारित’’ किए।पीठ ने कहा कि वर्तमान में केवल पांच विधेयक राज्यपाल के समक्ष सहमति के लिए लंबित हैं क्योंकि विधानसभा ने 10 अन्य विधेयक फिर से पारित किए हैं।पीठ ने कहा, ‘दोबारा पारित किये जाने के बाद किसी विधेयक की स्थिति एक अर्थ में धन विधेयक के समान हो जाती है। फिर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को नये सिरे से निर्णय लेने दीजिए।’पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 200 का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर अनुमति दे सकते हैं/ अनुमति रोक सकते हैं या राष्ट्रपति के विचार के लिए उसे आरक्षित कर सकते हैं, वह चाहें तो विधेयक को सदन को पुनर्विचार के लिए वापस कर सकते हैं।पीठ ने सवाल किया कि क्या राज्यपाल विधेयकों को विधानसभा या राष्ट्रपति के पास वापस भेजे बिना इसे अपने पास लंबे समय तक रख सकते हैं, उसने फिर स्वयं ही कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार कर सकती है।तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल आरएन रवि द्वारा लौटाए गए 10 विधेयक कुछ दिनों बाद शनिवार को एक विशेष विधानसभा सत्र के दौरान फिर से पारित कर दिए।