
अगर कमजोर चुनाव आयुक्त हुए तो कैसे ले पाएंगे कठोर फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में केंद्र सरकार के वकील से कहा कि फर्ज किया जाए कि अगर पीएम के खिलाफ कुछ आरोप हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त को उन पर एक्शन लेना है। अगर वो कमजोर होंगे तो वो एक्शन नहीं ले सकते। ऐसे में क्या यह सिस्टम को ध्वस्त करने वाला नहीं माना जाएगा? सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में (उदाहरण के तौर पर) यह भी कहा कि जरूरत ऐसे चीफ इलेक्शन कमिश्नर की है जो यहां तक कि पीएम के खिलाफ भी एक्शन ले सकता हो। बेंच ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजनीतिक दखलअंदाजी से अलग पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर जताया ऐतराज
सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने फाइल देखे जाने की कोर्ट की मंशा पर ऐतराज जताया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी आपत्ति खारिज कर दी। वेंकटरमानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित व्यापक मसले को देख रहा है। ऐसे में उसे किसी व्यक्तिगत केस को नहीं देखना चाहिए। मेरा इस पर सख्त ऐतराज है। इस पर बेंच ने कहा कि मामले की सुनवाई पिछले गुरुवार से शुरू हुई है और गोयल की नियुक्ति उसके बाद 19 नवंबर को हुई है। ऐसे में हम देखना चाहते हैं कि आखिर इस कदम को उठाने के पीछे कारण क्या है। हम देखना चाहते हैं कि इस नियुक्ति में क्या मैकेनिजम रहा है।
CJI भी हों CEC की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल
बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने टिप्पणी में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में देश के चीफ जस्टिस को शामिल किया जाना चाहिए ताकि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो सत्ताधारी दल, अपनी सत्ता बचाए रखना चाहता है, इसलिए वह मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था में हां में हां मिलाने वाला यस मैन की नियुक्ति कर सकता है।
केंद्र ने दिया कानून का हवाला, सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को केंद्र ने दलील दी कि 1991 के एक्ट में यह तय किया गया है कि चुनाव आयोग को अपने सदस्यों के वेतन और उनके कार्यकाल को लेकर स्वतंत्रता होगी। दिनेश गोस्वामी समिति की रिपोर्ट को संसद ने कानून द्वारा पारित किया है। ऐसे में ऐसा कोई कारण नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल दे। पांच जजों की बेंच ने कहा कि स्वतंत्र संस्थान ऐसा होना चाहिए जिसमें नियुक्ति के एंट्री लेवल स्कैन हो। सभी सत्ताधारी पार्टी अपना पावर चाहती है। हम चाहते हैं कि ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया हो जिसमें चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी शामिल हों ताकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता कायम रह सके।
जान लीजिए सुप्रीम कोर्ट की दलील
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1991 के जिस कानून का अटॉर्नी जनरल जिक्र कर रहे हैं, वह सिर्फ सर्विस रूल से संबंधित है क्योंकि यह नाम से क्लियर है। बेंच ने कहा कि मान लिया जाए कि सरकार से हां में हां मिलाने वाले शख्स की नियुक्ति होती हो जो उन्हीं की विचारधारा से है तो फिर संस्था में कोई कथित स्वतंत्रता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को उस जनहित याचिका को संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया था जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम होना चाहिए। संविधान को लागू हुए 72 साल हो गए लेकिन अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है।