कारण बताओ नोटिस का मतलब
आखिर क्या वजह रही है कि नीतीश कुमार के लगातार निशाने पर सुधाकर सिंह रहे हैं? इसके पहले भी नीतीश जी नाराज हुए तो सुधाकर सिंह को मंत्री पद छोड़नी पड़ी। इस बार कार्रवाई हुई तो विधायक का पद भी छोड़ना पड़ सकता है।
नीतीश-सुधाकर में 36 का आंकड़ा
राजनीतिक गलियारे में ये चर्चा है कि कभी जगदानंद सिंह और नीतीश कुमार में काफी अच्छी दोस्ती थी। लेकिन लालू प्रसाद को छोड़ कर जब नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाई तो उन्हें उम्मीद था कि जगदा बाबू भी आएंगे। मगर जगदा बाबू ने लालू का हाथ थामे रखा। यही से 36 का रिश्ता शुरू हुआ। इसकी परिणति मानते हैं कि चावल घोटाले में सुधाकर सिंह पर केस हुआ और जेल भी गए। सुधाकर सिंह इसे लेकर पहले से ही जले-भुने थे। इस वजह से सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार की कृषि नीति का विरोध किया था। ये विरोध राजद के कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ, जो कृषि मंत्री बनने के बाद भी जारी रहा।
ये रास्ता बीजेपी की तरफ जाता है क्या!
बहरहाल, महागठबंधन के बीच सुधाकर सिंह, जो टकराहट का कारण बने हैं, उन पर कार्रवाई का हंटर तो चल गया। ये रास्ता किस ओर जाएगा, इस पर राजनीतिक घमासान छिड़ा है। कोई कह रहा है कि वार्निंग लेटर दे दी जाएगी और कुछ को उम्मीद है कि दल से छुट्टी भी मिल सकती है। दल से छुट्टी मिलने के बाद तो सुधाकर सिंह का रास्ता भाजपा की तरफ खुलता है। इसके पहले भी वे अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध भाजपा में शामिल हुए और रामगढ़ विधानसभा से चुनाव भी लड़े। इस चुनाव में पिता जगदानंद सिंह इनके विरुद्ध प्रचार किया और परास्त भी किया। ऐसे में सुधाकर सिंह जब नीतीश कुमार के विरुद्ध लगातार बोल रहे थे, तभी से ये कहा जाने लगा कि सुधाकर सिंह भाजपा की भाषा बोल रहे हैं। कई तो भाजपा का एजेंट तक कहते रहे। लेकिन एक सच तो ये है कि पार्टी उन्हें निकालती है तो उनके पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई चारा शायद नहीं है।
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ?
वरिष्ट पत्रकार अरुण पाण्डेय कहते हैं कि ये करवाई मुझे तो जदयू के दबाव से मुक्त होने की कोशिश है। संभव है निलंबित कर कार्रवाई के नाम पर महागठबंधन की गाड़ी खिंचती रहे। शायद नीतीश कुमार भी नहीं चाहते होंगे, उन्हें दल से निकाल दिया जाए। ऐसा कर एक बना बनाया नेता को भाजपा की गोद में फेंकना होगा। ऐसे भी सुधाकर सिंह के भाजपा से पुराने रिश्ते हैं। वे विधानसभा का चुनाव भाजपा की टिकट पर लड़ चुके हैं। सुधाकर सिंह तभी भाजपा में जाएंगे, जब राजद उन्हें बाहर का रास्ता दिखाती है।