जयपुर : चुनाव के दौरान मौकापरस्त नेता दल बदलते हैं। टिकट नहीं मिलने पर राजनैतिक पार्टियां बदलने और बागी होने में कई नेता जरा भी देर नहीं लगाते। किस नेता की विचारधारा कब बदल जाये, कोई नहीं जानता। केवल नेता ही नहीं राजनैतिक दल भी मौकापरस्त होते हैं। केन्द्रीय स्तर पर जो राजनैतिक दल साथ साथ हैं, वह राजस्थान विधानसभा चुनाव में आमने सामने हैं। उनकी विचारधारा मेल खाती है या नहीं, किसी को नहीं पता क्योंकि अगर वह एकजुट हैं तो राजस्थान में आमने सामने प्रत्याशी क्यों उतारे हैं। आइये जानते हैं कुछ उदाहरण।बीजेपी, जेजेपी और शिवसेनाकेन्द्र में जनता जननायक पार्टी और शिवसेना भाजपा के साथ गठबंधन में है। महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के साथ मिलकर सत्ता में है लेकिन राजस्थान में भाजपा और शिवसेना आमने सामने चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा 200 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि शिवसेना के प्रत्याशी के रूप में राजेंद्र गुढ़ा उदयपुरवाटी से चुनाव मैदान में है। इसी तरह जेजेपी केन्द्र में भले ही एनडीए के गठबंधन में है लेकिन प्रदेश में वह भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। हरियाणा में जेजेपी और भाजपा की संयुक्त सरकार है लेकिन राजस्थान विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने भाजपा के खिलाफ 20 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं।कांग्रेस, आप और सीपीएमइंडिया एलायंस में कांग्रेस ने कई राजनैतिक दलों के साथ हाथ मिलाया है लेकिन केन्द्रीय स्तर पर कांग्रेस जिन दलों के साथ हैं। राजस्थान में वही राजनैतिक दल आमने सामने हैं। राष्ट्रीय लोकदल से कांग्रेस ने राजस्थान में सिर्फ एक सीट पर गठबंधन किया है। राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया एलायंस में भले ही कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टियां साथ साथ हैं लेकिन राजस्थान विधानसभा चुनावों में ये तीनों राजनैतिक दल एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। आप ने 88 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 17 प्रत्याशी कांग्रेस के सामने उतारे हैं। रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़